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Ravendra
Dr.Vinay kumar Verma
दीप बोधि
जो शख़्स गरीबों का मददगार नहीं है , इन्सान कहाने का वो हक़दार नहीं है। जो शान में नेता की क़सीदे रहे पढ़ता , हरगिज़ वो कोई अच्छा क़लमकार नहीं है। सुनता न रियाया का है दुख-दर्द कभी जो , वो मुल्क़ का मुखिया तो समझदार नहीं है। साज़िश थी रची ऐसी हुए क़त्ल हज़ारों, मुंसिफ़ ने भी ठहराया गुनहगार नहीं है । भाषण में बड़ा तेज कई रँग बदलता , इस मुल्क़ में उस जैसा अदाकार नहीं है । मिलता है गरीबों से वो पोशाक बदल कर, क्यूँ लोग ये कहते वो मिलनसार नहीं है । आज़ाद है अपराध सरेआम जो करता , जो जेल में है बंद ख़तावार नहीं है । ©दीप बोधि 2 2 1 1 2 2 1 1 2 2 1 1 2 2 1. जो शख़्स गरीबों का मददगार नहीं है , इन्सान कहाने का वो हक़दार नहीं है। जो शान में नेता की क़सीदे रह
shayar dilkash ~
हर आदमी जब खुद को खुदा समझने लगता है तब कहीं जाके उसको अहम समझने लगता है और उस घर की नींव खोखली हो जाती हैं जिस घर का प्रत्येक सदस्य खुद को मुखिया समझने लगता है ©shayar dilkash ~ #Childhood #मुखिया #परिवार #अहम #Nojoto
Kaushal Kumar
घर का मुखिया घर का मुखिया अक्सर घर की, मर्यादा में रह जाता हैं। घर में सबकी सुनते-सुनते, अपनी कहता रह जाता हैं।। अक्सर खुद को आगे करके, जो सारा बीड़ा लेता है। जिसके मन में जोड़ भरा हो, तोड़ उसे पीड़ा देता है।। सर्दी, गर्मी, बारिश में जो, डटकर सदा खड़ा रहता है। उसका खुद का दर्द हमेशा, अंदर कहीँ पड़ा रहता है।। अंदर - अंदर चीख रही पर, बाहर लगता खेल रही है। कौन समझता है धरती को, कितनी पीड़ा झेल रही है।। हरा - भरा जो वृक्ष सदा से, फल, छाया देता आता है। टहनी सूखी हो जाने पर, जलने को काटा जाता है।। बोझ उठा लेने वाले पर, बोझ अधिक डाला जाता है। सदा सहज ढल जाने वाला, जगह-जगह ढाला जाता है।। रीत जगत की ऐसी ही है, जो जितना करता जाता है। वही अंत में उम्मीदों के, खंडन से मरता जाता है।। ............कौशल तिवारी . . ©Kaushal Kumar #घर का मुखिया