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Vidhi

पूंजीवाद:

भेड़ का जीवन
अफ़ीम का दर्शन
अब खुशियाँ मिलती हैं
बाज़ारों में
चाहे तो डिस्काउंट मांग लो
जो जिंदगी अभी जी ही नहीं
उसका इन्शुरन्स भी करा लो #बाज़ारवाद #पूंजीवाद #YQbaba #YQdidi

Gopal Lal Bunker

लगता है 'सहीफों' को बंद किया जा रहा है
पूंजीपतियों की भीड़ में सौदा किया जा रहा है
लिफ़ाफे सिले जा रहे हैं अब नोटों के लिए 
लगता है 'तालीम' को बड़ा बाजार किया जा है
 #तालीम #पूंजीवाद #बिकतीशिक्षा #glal #restzone #yqdidi #rzलेखकसमूह

Vidhi

अच्छे बनो मत
अच्छे दिखो बस
देखो शायद फिर
तुम्हारे भी दिन बहुर जाएं..  #cinemagraph #अच्छेदिन #दिखावा #सफेदपोशी #सभ्यता_का_रहस्य #पूंजीवाद #सामंती_जीवन

Motivational indar jeet group

#जीवन दर्शन 🌹 शत्रुओं के आक्रमण , मित्रों के छल प्रपंच , एवं स्वजनों के असहयोग , से इतना ही हो सकता कि सफलता की संभावना विलम्बित हो जाए !.i. #विचार

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जीवन दर्शन 🌹
शत्रुओं के आक्रमण , मित्रों के छल प्रपंच , एवं स्वजनों के असहयोग , से इतना ही हो सकता कि सफलता की संभावना विलम्बित हो जाए !.i. j

©Motivational indar jeet guru #जीवन दर्शन 🌹
शत्रुओं के आक्रमण , मित्रों के छल प्रपंच , एवं स्वजनों के असहयोग , से इतना ही हो सकता कि सफलता की संभावना विलम्बित हो जाए !.i.

Ashraf Fani【असर】

छद्म राष्ट्रवाद की आँधी में राष्ट्र हुआ बरबाद मंहगाई,बेरोजगारी,अशिक्षा अब कुछ न रहेगा याद कुछ न रहेगा याद अफीमी धर्म की गोली है जिंदा नही रह #Drops

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छद्म राष्ट्रवाद की आँधी में
राष्ट्र हुआ बरबाद
मंहगाई,बेरोजगारी,अशिक्षा
अब कुछ न रहेगा याद
कुछ न रहेगा याद
अफीमी धर्म की गोली है
जिंदा नही रही जनता
चलती लाशों की टोली है
धर्म-राष्ट्र के नाम पर
नफ़रतें बो दी जाएगी
पूंजीवाद चरम पे है तो
हर वस्तु बिक जाएगी

©Ashraf Fani Kabir🌷 asar छद्म राष्ट्रवाद की आँधी में
राष्ट्र हुआ बरबाद
मंहगाई,बेरोजगारी,अशिक्षा
अब कुछ न रहेगा याद
कुछ न रहेगा याद
अफीमी धर्म की गोली है
जिंदा नही रह

मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *

कभी-कभी लगता है कविता हम कवियों का ढोंग है हम होते है कुछ और पर कविता लिखते समय कुछ और हो जाते हैं क्यों नहीं लिख पाते हैं बिना लाग-लपेट #poem

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कभी-कभी लगता है  कविता 
हम कवियों का ढोंग है
हम होते है कुछ और
पर कविता लिखते समय 
कुछ और हो जाते हैं
क्यों नहीं लिख पाते हैं
बिना लाग-लपेट के 
आज पूंजीवाद पनप रहा है 
फासीवाद का सहारा लेकर
कब तक छायावाद की छाँव में रहेगे
क्यों डरते हैं हम यथार्थवाद से
कठिन समय में और.कठिन होता
कविता का होना
काफी नहीं है कविता के लिए सिर्फ रोना
या सिर्फ विरोध, आक्रोश या गाली…
कविता को अपने शब्दों के औजार को 
दुरुस्त और  पैना करना होगा
शायद किसी को आपत्ति हो
मुझपे नहीं, मेरे शब्दों पर उनके मिजाज पर,
उनके  बड़बोले पन पर 
कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सच्चाई यही है
और इसे कहने में
सिर्फ कविता ही समर्थ है ।।

©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) कभी-कभी लगता है  कविता 
हम कवियों का ढोंग है
हम होते है कुछ और
पर कविता लिखते समय 
कुछ और हो जाते हैं
क्यों नहीं लिख पाते हैं
बिना लाग-लपेट

अम्बुज बाजपेई"शिवम्"

एक स्वप्न सा कौंधा है मेरे अंतर्मन में जो यह सत्य हो जाता तो क्या होता? इस पूंजीवाद और साम्राज्यवाद दोनों का ही अंत हो जाता तो क्या होता? #yourquote #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqhindi #yqquotes

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एक स्वप्न सा कौंधा है मेरे अंतर्मन में
जो यह सत्य हो जाता तो क्या होता?

इस पूंजीवाद और साम्राज्यवाद 
दोनों का ही अंत हो जाता तो क्या होता?

न यूं विभेद होता जीवन के स्तर पर
जगत विचारों से धनाढ्य हो जाता तो क्या होता?

शिक्षा व्यापार बन बंद हो गई है संदूकों में
हर मस्तिष्क को ज्ञान का अधिकार हो जाता तो क्या होता?

ना नारी का उत्थान हुआ है न पुरुषों का
मानवता का उत्थान अगर हो जाता तो क्या होता?

प्रतिभा दम तोड देती है आरक्षण की बेड़ियों में
अवसरों का संवितरण हो जाता तो क्या होता?

प्रदूषण बहुत है समाज के वातावरण में
थोड़ा संस्कारों का वृक्षारोपण हो जाता तो क्या होता?

है स्वप्न भ्रम का संसार मगर वास्तविकता इनका ध्येय है
काल्पनिकता का वास्तविकता से मेल हो जाता तो क्या होता?
 एक स्वप्न सा कौंधा है मेरे अंतर्मन में
जो यह सत्य हो जाता तो क्या होता?

इस पूंजीवाद और साम्राज्यवाद 
दोनों का ही अंत हो जाता तो क्या होता?

Ashutosh jain

एक समय था जब गांव के बच्चे हो जवान हों बूढ़े हों या महिलाएं हो नदी किनारे बतियाते हुए मिल ही जाया करते थे तब शायद उन्हें इन दृश्यों को तस्वी

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एक समय था जब गांव के बच्चे हो जवान हों बूढ़े हों या महिलाएं हो नदी किनारे बतियाते हुए मिल ही जाया करते थे तब शायद उन्हें इन दृश्यों को तस्वीर में कैद करने की सोचा भी ना होगा क्यों कि ऐसा जीवन उनके लिए बहुत ही आम हुआ करता था ! ताजी हवा के साथ साथ जान पहचान वालों से मिलकर एक दूसरे का हाल भी जान लिया करते थे और सुख दुख भी बांट लिया करते थे ! 
शायद उन्होंने ऐसे समय कि कल्पना भी नहीं की होगी एक समय ऐसा आएगा कि इंसान 5.5 की स्क्रीन में इतना दाखिल हो जायेगा की उसे अपने आस पास क्या घट रहा है उसकी सुध ही ना होगी..यह 5.5 की स्क्रीन आपके भीतर घटित होने वाली तमाम भावनाओं को ध्वस्त कर देगी ! और इतना अकेला पड़ जायेगा कि बात चीत करने के लिए भी किसी एप का सहारा लेना पड़ेगा !
शहर की हवा में तो विष घुल चुका है नदी नाले बन चुके हैं इंसान बीमारियों का घर बन चुका है और फिलहाल हम एक महामारी से पीड़ित हैं ही .!
मुझे लगता है हमने तो जीने का ढंग बनाया है उसे ठीक करने की जरूरत है जीने के लिए हमने जो इस मोबाइल फ़ोन से दोस्ती कर ली है इससे थोड़ा बचने की जरूरत है ! अपनों के साथ उनके सुख दुख बांटने की जरूरत है ! शायद तब हम एक संवेदनशील समाज में रह सकेंगे !
ऐसा समाज जो पूंजीवाद पर नहीं आपसी सहयोग एक दूसरे से प्रेम पर आधारित हो .!
वैसे दुर्भागय है की में ये सब बातें भी 5.5 की स्क्रीन से कर रहा हूं..लेकिन मेरी कोशिश है कि मैं भी ऐसा समय का हिस्सा बनूं जहां एक दूसरे का सहयोग जो बातें हों कुछ मुलाकातें हों!

©Ashutosh jain एक समय था जब गांव के बच्चे हो जवान हों बूढ़े हों या महिलाएं हो नदी किनारे बतियाते हुए मिल ही जाया करते थे तब शायद उन्हें इन दृश्यों को तस्वी

Vidhi

#विषय #शिक्षा #नारी #फेमिनिज्म #नागरिकता #सामाजिकता #yqdidi #yqbaba #NAPOWRIMO उसके शरीर को अपनी भूगोल समझते समझते रिश्तों के गणित ही उसे स

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उसके शरीर को अपनी भूगोल समझते समझते
रिश्तों के गणित ही उसे समझाते रहे
विज्ञान को उसके लिए नामहरम करके
उससे उसका इतिहास छीनते रहे
सोशियोलॉजी में उसकी अहमियत को
देवी-दानवी, पत्नी और बेटी करते रहे

(पूरी कविता कैप्शन में। ये कविता उनके लिए जो रिश्तों के बाहर औरत की पहचान नहीं देख पाते।) #विषय #शिक्षा #नारी #फेमिनिज्म #नागरिकता #सामाजिकता #YQdidi #YQbaba #NaPoWriMo

उसके शरीर को अपनी भूगोल समझते समझते
रिश्तों के गणित ही उसे स

Divyanshu Pathak

किसी की समझ में न आए उसी का नाम माया है। जीवन का आधार कामना है और अत्यन्त तीव्र कामना को ही तृषा या तृष्णा कहते हैं। व्यक्ति जैसे-जैसे अपनी #shweta #Priya #komal #Usha #indu

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मन नित्य नया चाहता है।
जो वस्तु प्राप्त नहीं होती
उसके लिए भटकता है।प्राप्त होते ही
उसके प्रति उदासीन भी शीघ्र ही हो जाता है
और फिर नई वस्तु के प्रति दौड़ने लगता है।
मन की कामना ही ईष्र्या और अहंकार का मूल है।
इसी कारण व्यक्ति मर्यादाओं का लंघन करता है।
येन-केन-प्रकारेण प्राप्ति ही उसका लक्ष्य रहता है।
संग्रहण और फिर उसकी सुरक्षा में लगा ही रहता है।
भय की उत्पत्ति का भी यही कारण बनता है। किसी की समझ में न आए उसी का नाम माया है। जीवन का आधार कामना है और अत्यन्त तीव्र कामना को ही तृषा या तृष्णा कहते हैं। व्यक्ति जैसे-जैसे अपनी
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