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Preeti Parashar
ये जरूरी शब्द इतना जरूरी क्यों है? Full piece in the caption..👇 ©Preeti Parashar जब जिंदगी तेरी है, तो कायदे जमाने के सुनना इतना जरूरी क्यों है, जब सपने तेरे है, तो रास्ते ओरों के दिखाए चुनना इतना जरूरी क्यों है, जब हाल
Technocrat Sanam
ख़्वाबों में जागता हूँ नींदों में सोना छोड़ दिया कोई भी मेरा हो जाए हर किसी का होना छोड़ दिया दर्द-तकलीफ़ लाख हो फ़र्क नहीं गैरों के सामने रोना छोड़ दिया न मलाल है न आस है किसी की पाकर हर बार खोना छोड़ दिया अस्तव्यस्त है पर ज़िंदगी मस्त है दूसरों के हिसाब से ढोना छोड़ दिया ©technocrat_sanam ख़्वाबों में जागता हूँ नींदों में सोना छोड़ दिया कोई भी मेरा हो जाए हर किसी का होना छोड़ दिया दर्द-तकलीफ़ लाख हो फ़र्क नहीं गैरों के साम
Dr. Naveen Prajapati
बदलते रिश्ते Read in caption:)- Note- will enjoy but need patience 😊 #badalte_rishte #changing_relationship वैसे तो सृष्टि का प्रथम सम्बन्ध अपने रचयिता से ही माना जाना चाहिए, मगर इन्सान अपनी ज़िन्दगी की स्लेट
Kulbhushan Arora
आओ.. अंतर्यात्रा को चलें, आओ, स्वयं से हम मिलें 🚶🚶🚶🚶🏃 आओ मिल अंतर्यात्रा पे चलते हैं यात्रा के लिए ना अतीत का बोझ ना भविष्य की आशाओं को ढोना वर्तमान में क्षण क्षण के साथ चलते हैं
Sarita Shreyasi
मैं चुप हूँ ताकि सही से सुन सकूँ, हर बार शोर नहीं होता, कई बार सन्नाटे में भी स्पष्ट सुनाई नहीं देता। तेज हवा के साथ उड़ता, न ठहरने वाला मन, जिसे चलते रहना है, कहीं भी, कभी भी, दिशाहीन, जाना कहाँ है पता नहीं, बस बिना रूके चलते रहना है। काली घ
Vandana
तेरी दुनिया से मेरी दुनिया अलग थी लाजमी था बीच राह में हाथ छुड़ाकर तेरा चले जाना,,,, तेरी तकदीर से मेरी तकदीर जुदा हो गई शायद खुदा ने मेरे हाथों की लकीरों में तुझे ना लिखा,,, गम जुदाई का इस तरह था जैसे जिस्म से रूह निकल ज
J Narayan
एक वृतांत । (Please read in the caption ⬇️) दो बटें तीन हिस्से की बची हुई मोमबत्ती, कोने की तीरगी को रौशन करती हुई, मुझसे बेखौफ सवाल करती है, मैं भी जली, तुम भी जले, दोनों बराबर जले,
Shayar Regiment
प्यार में सौतेलापन :- कुछ माएं ऐसी भी होती हैं कि सौतेले बच्चे के साथ हर हाल में सौतेला व्यवहार के आलावे कुछ कर ही नहीं सकती... ऐसी माएं जिद्दी होती हैं... अपने औलाद के अलावे उसे किसी और औलाद को बर्दास्त करना भी गवारा नहीं होता....और सौतेले बच्चे को ढोना इस लिए भी मज़बूरी हो जाता कि तथाकथित समाज से सिर्फ ये न सुनना पड़े कि सौतेली माँ है... या फिर ये न कह सके कि ममता का कोष रिक्त हो चुका है....माँ का जो भी मयार है इस दुनिया में... बस उसी मयार का इस्तेमाल बड़ी चालाकी से करने वाले करते हैं ... लेकिन बच्चा किसी भी सूरत में ये मानने को राजी ही नहीं है.... कि माँ सौतेली भी होती है... ये सिर्फ माँ को माँ ही समझता है....मगर बच्चे के हर अरमान हर ख्वाहिश पे सौतेलापन का ऐसा करारा तमाचा मिलता की मानो कलेजा बाहर आ जाये ... प्यार पाने के मोह में बच्चा इतना डूब चुका है कि.... क्या ही कहें.....अगर बाहर निकला... तो अबके वो शांत हो जायेगा....और इस हद तक.... कि किसी का सहारा मांगने से भी कतराएगा... ठीक वैसे ही जैसे इस समाज में एक बेवा किसी से सहारा मांग ले तो नजाने क्या - क्या लालक्षन लग जायेंगे.... क्षणिक ही सही उस बेवा को किसी का कंधा चाहिए होता है... जिसपे सर रख के वो बाकी बची उम्र को काट सके.... कंधा देने वाला शर्तो पर कन्धा देने की बात कहे तो बेवा भी शर्मो हया के मारे अपना सर झुका लेती है... और नीले आकाश में सन्नाटे को अपना सखी मानते हुए आँखे नम कर लेती है...... हैरत तो इस बात की है कि बच्चा अब तो खुदा से ये तक मनाता है कि मौत शमशान घाट में ही हो.... ताकि जनाजा उठाने के लिए चार लोगों का सहारा न लेना पड़े.... जो प्रेम भरा स्पर्श मात्र से भी वंचित रह जाये... जिसे प्रेम का स्पर्श मात्र शर्तो की कसौटी पे बंधा मिले ... वो भला और क्या मांग सकता है... प्यार भरा स्पर्श मात्र की लालसा ने सबकी नजरों में गिरा दिया है... वो खुद भी अपनी नजर में पहलीबार गिरा हुआ महसूस कर रहा है.... खैर जो भी हो.. ममता को बदनाम नहीं होने देगा...समय के साथ ये बच्चा भी बड़ा होने लगता है लेकिन... उतना बड़ा तो शायद कभी नहीं... कि जहां से कोई अपना दिखाई ही न दे... हैरत तो होंगी ही ऐसी सफर में जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की गयी थी.... खैर नसीब की भी कोई खता नहीं💚💔 ©Shayar Regiment प्यार में सौतेलापन :- कुछ माएं ऐसी भी होती हैं कि सौतेले बच्चे के साथ हर हाल में सौतेला व्यवहार के आलावे कुछ कर ही नहीं सकती... ऐसी माएं जिद
AB
Meri Ani,.. Dear Ani Verma, उम्र और तजुर्बे में आप मुझसे बोहत बड़ी हैं, पर सच कभी महसूस ही ना हुआ कभी कि आप बड़ी हैं, इत्तफाक से हुआ था आपसे मिलना और धीर
Sunita D Prasad
#जब मिलूँगी..... तुमसे मिलने पर संभवतः न बता पाऊँ दिवस और तिथियों के व्यतीत होने की असमान गति! पर फिर भी यह तय है कि लंबे दिनों का लंबी रातों में परिवर्तित होना अनायास ही नहीं हुआ! कुछ क्षण पुनः जीने की एक तीव्र उत्कंठा के संग ही विदा हो गए मैं कहाँ नकारती हूँ इच्छाओं के प्रति अपना मोह! पर दिवस के अंत में फिर एक फूल के झरने का दुःख धरा वहन नहीं कर पाती कठिन है परिचित स्मृतियों में स्वयं को ही अपरिचित पाना! तुम भी तो जानते हो कि किसी भी भाषा के लिए आसान नहीं है हृदय से विस्थापित प्रेम की मंथर पीड़ा को आजीवन ढोना! जब मिलूँगी तो तुम्हारे कंधे से सिर टिकाकर शायद तुम्हें समझा पाऊँ एक पुष्प की चिरकालीन यात्रा प्रेम की विरामचिह्नों रहित भाषा और धरा के दुःख!! --सुनीता डी प्रसाद💐💐 #जब मिलूँगी..... तुमसे मिलने पर संभवतः न बता पाऊँ दिवस और तिथियों के व्यतीत होने की असमान गति! पर फिर भी यह तय है कि लंबे दिनों का