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Stories related to झुक झुक रेल गाडी

Faruk

#Sad_Status 🏃📖मंज़िल की ओर बढ़ते रहो रुकना नहीं, थमना नहीं, जो चल पड़े, वो गिरता नहीं। अंधेरों में भी जो जलते रहे, सुबह की किरण से डरता नही

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White मंज़िल की ओर बढ़ते रहो

रुकना नहीं, थमना नहीं,
जो चल पड़े, वो गिरता नहीं।
अंधेरों में भी जो जलते रहे,
सुबह की किरण से डरता नहीं।

हर ठोकर इक सबक सिखाए,
हर मुश्किल हौसला बढ़ाए।
सपने उन्हीं के पूरे होते,
जो गिरकर फिर संभल जाए।

मंज़िल तुम्हें पुकार रही है,
हिम्मत से तुम काम लो।
हर मुश्किल झुक जाएगी,
बस एक और कदम बढ़ा लो!

©Faruk 
  #Sad_Status 🏃📖मंज़िल की ओर बढ़ते रहो

रुकना नहीं, थमना नहीं,
जो चल पड़े, वो गिरता नहीं।
अंधेरों में भी जो जलते रहे,
सुबह की किरण से डरता नही

Faruk

#Sad_Status 🏃📖मंज़िल की ओर बढ़ते रहो रुकना नहीं, थमना नहीं, जो चल पड़े, वो गिरता नहीं। अंधेरों में भी जो जलते रहे, सुबह की किरण से डरता नही

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White मंज़िल की ओर बढ़ते रहो

रुकना नहीं, थमना नहीं,
जो चल पड़े, वो गिरता नहीं।
अंधेरों में भी जो जलते रहे,
सुबह की किरण से डरता नहीं।

हर ठोकर इक सबक सिखाए,
हर मुश्किल हौसला बढ़ाए।
सपने उन्हीं के पूरे होते,
जो गिरकर फिर संभल जाए।

मंज़िल तुम्हें पुकार रही है,
हिम्मत से तुम काम लो।
हर मुश्किल झुक जाएगी,
बस एक और कदम बढ़ा लो!

©Faruk #Sad_Status 🏃📖मंज़िल की ओर बढ़ते रहो

रुकना नहीं, थमना नहीं,
जो चल पड़े, वो गिरता नहीं।
अंधेरों में भी जो जलते रहे,
सुबह की किरण से डरता नही

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर हर दर्द ने मुझसे कहा, अब रुक जा, मैंने हंसकर जवाब दिया, बस थोड़ा और झुक जा। हार और जीत का फ़र्क समझ लिया मैंने, गिरकर भी उठने

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हर दर्द ने मुझसे कहा, अब रुक जा,
मैंने हंसकर जवाब दिया, बस थोड़ा और झुक जा।

हार और जीत का फ़र्क समझ लिया मैंने,
गिरकर भी उठने का हुनर सीख लिया मैंने।

हवा के रुख़ से कभी डर नहीं लगता मुझे,
मेरी मंज़िल ने मेरे इरादों को आज़मा लिया है।

हर जख्म ने मेरे हौसले को और गहरा किया,
हर दर्द ने मेरी जीत का रास्ता दिखा दिया।

अब तूफ़ान भी मुझसे सहम कर गुजरते हैं,
मेरे इरादों से ज़माने के नक़्शे बदलते हैं।

जहाँ कांटे बिछाए गए थे मेरे रास्तों में,
वहीं मैंने अपने सपनों के फूल खिला दिए।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
हर दर्द ने मुझसे कहा, अब रुक जा,
मैंने हंसकर जवाब दिया, बस थोड़ा और झुक जा।

हार और जीत का फ़र्क समझ लिया मैंने,
गिरकर भी उठने

विष्णु कांत

रेल यात्री।

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Sunita Singh

हरी - भरी वसुधा लगे, हरियाली हर छोर। झुक- झुक चलती रेल की, मनभावन यह शोर।।

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