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Rajnish Shrivastava
याद है मुझे वो शायद अमावस की स्याह रात थी । सितारे थे गगन में दिल में अरमानों की बारात थी । धड़क रहा था दिल काबू में न हमारे जज्बात थे । जिसे चाहते थे उसकी मां हमारे घर मेहमान थी । ©Rajnish Shrivastava #हास्य
Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
Shahid0007
Autumn गुलों के रास्ते में, कांटे तो आयेंगे ही, चुभेंगे पावों में,और दिल को दहलाएंगे भी, हो सकता है डर भी लगे,और मन कहे घर लौटने को मगर, ये कांटे ही गुलों तक पहुंचाएंगे भी 🙂 ©Shahid0007 #कविता
Arora PR
Blue Moon ये कविता यूँ ही नहीं कविता बन जाती. ये कविता उतरती है ह्रदय के कैनवास पर.... और आती है ब्रह्माण्ड के अनचीन्हे कोनो से परिंदो के पँख पर बैठ कर. ©Arora PR कविता