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PRAVEEN YADAV

यजुर्वेद और सामवेद #पौराणिककथा

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वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

इममू षु त्वमस्माकꣳ सनिं गायत्रं नव्याꣳसम् । 
अग्ने देवेषु प्र वोचः ॥

पद पाठ
इ꣣म꣢म् । ऊ꣣ । सु꣢ । त्वम् । अ꣣स्मा꣡क꣢म् । स꣣नि꣢म् । गा꣣यत्र꣢म् । न꣡व्यां꣢꣯सम् । अ꣡ग्ने꣢꣯ । दे꣣वे꣡षु꣢ । प्र । वो꣣चः ॥

हे (अग्ने) विद्वन् जगदीश्वर वा आचार्य ! (त्वम् उ) आप (इमम्) इस (अस्माकं सनिम्) हमें बहुत बोध देनेवाले (गायत्रम्) गायत्री आदि छन्दों से युक्त वेदज्ञान को वा गायत्र नामक साम को (देवेषु) दिव्य गुणोंवाले सत्पात्रों में (सु प्रवोचः) भली-भाँति उपदेश करते हो ॥

Hey (fire), scholar Jagadishwar or Acharya!  (Tvamu) You (Imam) in this (Asmakam Sanim) teach us Vedigana with verses that give us a lot of knowledge (Gayatram), Gayatri etc., and the Sama (Deveshu) in the satrapas with divine qualities (Suvarocha) very well.

( सामवेद मंत्र १४९७ ) #सामवेद #वेद #ज्ञान

PRAVEEN YADAV

यजुर्वेद और सामवेद #पौराणिककथा

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वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

अमित्रहा विचर्षणिः पवस्व सोम शं गवे । 
देवेभ्यो अनुकामकृत् ॥

पद पाठ
अमित्रहा꣢ । अ꣣मित्र । हा꣢ । वि꣡च꣢꣯र्षणिः । वि । च꣣र्षणिः । प꣡व꣢꣯स्व । सो꣣म । श꣢म् । ग꣡वे꣢꣯ । दे꣣वे꣡भ्यः꣢ । अनुक्राम꣣कृ꣢त् । अ꣣नुकाम । कृ꣢त् ॥

हे (सोम) जगदीश्वर ! (अमित्रहा) काम, क्रोध आलस्य आदि शत्रुओं के विनाशक, (विचर्षणिः) विशेष द्रष्टा, (देवेभ्यः) विद्वानों के लिए (अनुकामकृत्) अभीष्ट सिद्ध करनेवाले आप (गवे) स्तोता के लिए (शम्) शान्तिदायक होते हुए (पवस्व) आनन्द प्रवाहित करो ॥

Hey (Som) Jagadishwar!  (Amitraha) Kama, rage laziness etc. Destroyers of enemies, (devotion:) special seer, (Devebhyah), (scholarly) who proves (favored) for the scholars (Gave) Stuti (Sham) Peaceful (Holy) flow joy.

सामवेद मंत्र १४४७ #सामवेद #मंत्र #परमेश्वर

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

इन्द्र इन्नो महोनां दाता वाजानां नृतुः ।
 महाꣳ अभिज्ञ्वा यमत् ॥

जगदीश्वर ही सबका उत्पादक, पालक, संहारक और कर्मफलों का प्रदाता है ॥

Jagadishwar is the producer, foster, destroyer and the worker of all.

( सामवेद मंत्र 715 ) #सामवेद #वेद #जगदीश्वर #जगदीश

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

त्वामिद्धि हवामहे सातौ वाजस्य कारवः । 
त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः ॥

पद पाठ
त्वा꣢म् । इत् । हि । ह꣡वा꣢꣯महे । सा꣣तौ꣢ । वा꣡ज꣢꣯स्य । का꣣र꣡वः꣢ । त्वाम् । वृ꣣त्रे꣡षु꣢ । इ꣣न्द्र । स꣡त्प꣢꣯तिम् । सत् । प꣣तिम् । न꣡रः꣢꣯ । त्वाम् । का꣡ष्ठा꣢꣯सु । अ꣡र्व꣢꣯तः ॥

हे (इन्द्र) विपत्ति के विदारक और सब सम्पत्तियों के दाता परमेश्वर व राजन् ! (कारवः) स्तुतिकर्ता, कर्मयोगी हम लोग (वाजस्य) बल की (सातौ) प्राप्ति के निमित्त (त्वाम् इत् हि) तुझे ही (हवामहे) पुकारते हैं। (नरः) पौरुष से युक्त हम (वृत्रेषु) पापों एवं शत्रुओं का आक्रमण होने पर (सत्पतिम्) सज्जनों के रक्षक (त्वाम्) तुझे पुकारते हैं। (अर्वतः) घोड़े आदि सेनांगों के अथवा आग्नेयास्त्रों और वैद्युतास्त्रों के (काष्ठासु) संग्रामों में भी त्वाम् (तुझे) पुकारते हैं ॥

O (Indra) God and Rajan, dissecting of calamity and giver of all wealth!  (Karvah) Stutiakarta, Karmayogi We call (Tvam Iti) you (Hawamhae) for the (Vajasya) attainment of the (Vajasya) force.  (Nara:) We (Vritreshu) with Pourush call upon you (Svatipam) the protector of gentlemen (Tvam) ​​when sins and enemies are attacked.  (Arguably) horses also call Tvam (thee) in the warriors of Senangas or in the (Kashtasu) battles of firearms and Vaidutastras.

( सामवेद २३४ ) #सामवेद #वेद #इन्द्र #राजा

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।

परि प्र धन्वेन्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय ॥

पद पाठ
प꣡रि꣢꣯ । प्र । ध꣣न्व । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । सो꣣म । स्वादुः꣢ । मि꣣त्रा꣡य꣢ । मि꣣ । त्रा꣡य꣢꣯ । पू꣣ष्णे꣢ । भ꣡गा꣢꣯य ॥

हे (सोम) रसागार एवं शान्तिमय जगदीश्वर ! (स्वादुः) मधुर आप, मेरे (इन्द्राय) आत्मा के लिए, (मित्राय) मित्रभूत मन के लिए, (पूष्णे) पोषक प्राण के लिए और (भगाय) सेवनीय बुद्धितत्त्व के लिए (परि प्र धन्व) सब ओर से माधुर्य और शान्ति को क्षरित करो ॥

Hey (Mon) Rasagara and Shantimay Jagadishwar!  (Svadhu:) You are sweet, for my (Indra) soul, (Mitraya) for a friendly mind, (Pushane) for nutritious life and (Bhagya) for saintly intellect (Parivar Dhanva) from all sides.  Do it

सामवेद मंत्र ४२७ #सामवेद #वेद #सोम #परमेश्वर

वेदों की दिशा

।। ॐ ।।
प्र सो अग्ने तवोतिभिः सुवीराभिस्तरति वाजकर्मभिः ।
 यस्य त्वꣳ सख्यमाविथ ॥१०८॥

पद पाठ

प्र꣢ । सः । अ꣣ग्ने । त꣡व꣢꣯ । ऊ꣣ति꣡भिः꣢ । सु꣣वी꣡रा꣢भिः । सु꣣ । वी꣡रा꣢꣯भिः । त꣣रति । वा꣡ज꣢꣯कर्मभिः । वा꣡ज꣢꣯ । क꣣र्मभिः । य꣣स्य꣢꣯ । त्वम् । स꣣ख्य꣢म् । स꣣ । ख्य꣢म् । आ꣡वि꣢꣯थ ॥१०८॥

हे (अग्ने) प्रकाशमय, प्रकाशदाता परमात्मन् ! (सः) वह मनुष्य (सुवीराभिः) उत्कृष्ट वीर भावों वा वीर पुत्रों को प्राप्त करानेवाली, (वाजकर्मभिः) बल एवं उत्साह को उत्पन्न करनेवाली (तव) आपकी (ऊतिभिः) रक्षाओं के द्वारा (प्र तरति) भली-भाँति विघ्नों को या भवसागर को पार कर जाता है, (यस्य) जिस मनुष्य की (त्वम्) आप (सख्यम्) मैत्री को (आविथ) प्राप्त हो जाते हो ॥

O (fire) light, God of light!  (S:) That man (Suvirabhi:) who gets excellent valor or heroic sons, (Vajkarmabhi:) who generates strength and enthusiasm (Tav) through your (Utibhih) defenses (nature) well-being obstacles or crossing the Bhavsagar.  He does (Yasya) the person whose (Tvam) ​​your (Sakhyam) friendship (Avith) attains.

( सामवेद मंत्र १०८ ) #सामवेद #अग्नि #God #TrueFreindship

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

स नो वेदो अमात्यमग्नी रक्षतु शन्तमः । उतास्मान्पात्वꣳहसः ॥

पद पाठ

सः । नः꣣ । वे꣡दः꣢꣯ । अ꣣मा꣡त्य꣢म् । अ꣣ग्निः꣢ । र꣣क्षतु । श꣡न्त꣢꣯मः । उ꣣त꣢ । अ꣣स्मा꣢न् । पा꣣तु । अ꣡ꣳह꣢꣯सः ॥

परमात्मा में विश्वास से दिव्य गुण रक्षित होते हैं और पाप नष्ट हो जाते हैं।।

 Belief in the divine preserves divine qualities and sins are destroyed.

( सामवेद मंत्र  १३८१ ) #सामवेद #मंत्र #वेद #परमात्मा

वेदों की दिशा

।। ओ३म् ।।

यज्ञ इन्द्रमवर्धयद्यद्भूमिं व्यवर्तयत् । 
चक्राण ओपशं दिवि ॥

पद पाठ
य꣣ज्ञः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣वर्धयत् । य꣢त् । भू꣡मि꣢म् । व्य꣡व꣢꣯र्तयत् । वि꣣ । अ꣡व꣢꣯र्तयत् । च꣣क्राणः꣢ । ओपश꣢म् । ओ꣣प । श꣢म् । दि꣣वि꣢ ॥

(यज्ञः) परोपकार के लिए किये जानेवाले महान् कर्म ने (इन्द्रम्) परमात्मा को अर्थात् उसकी महिमा को (अवर्धयत्) बढ़ाया हुआ है। परमात्मा के यज्ञ कर्म का एक दृष्टान्त यह है (यत्) कि (दिवि) द्युलोक में (ओपशम्) सूर्यरूप मुकुट को (चक्राणः) रचनेवाला वह परमात्मा (भूमिम्) भूमि को (व्यवर्तयत्) सूर्य के चारों ओर घुमा रहा है ॥

(Yajna:) The great deeds performed for benevolence have increased (Indram) the divine, that is, his glory (Avardhyat).  A parable of the Yajna Karma of the divine is (Yat) that (Divya) in the dulok (opsham) is the creation of the sun (crown) in the sun (Chakraanah).

( सामवेद मंत्र १२१ ) #सामवेद #वेद #सूर्य #चक्र #भूलोक
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