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Ravendra
Ravendra
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
Black बहुत सुकून में हूं जबसे मुनाफिको का साथ छोड़ दिया सो मैंने झूठों की *शिरकतों का साथ छोड़ दिया//१ उम्मीद थी के वो मुझसे बुगज़ ना रखेंगे,सो मैंने देखी ये अदा तो उनकी फितरतों का साथ छोड़ दिया//२ जो दिलशिकन दिल का कत्ल करे,वो कातिल ही है,सो मैने ऐसो की*अजीयतो का साथ छोड़ दिया//३ तकलीफ जिनसे बरसों बरस के पूर मलाली याराने थे, सो मैंने अब ऐसे अदू की*फहरिस्तो का साथ छोड़ दिया//४ जो थे अपने मुनाफिकत में शुमार,सो "शमा"ने सुकू ए एवज ऐसी *वाहियातो का साथ छोड़ दिया//५ #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #Thinking #Nojoto बहुत सुकून में हूं जबसे*मुनाफिको का साथ छोड़ दिया,सो मैंने झूठों की *शिरकतों का साथ छोड़ दिया//१ *धोखेबाज*साझेदारी उम्मीद
ARTI JI
दीपा साहू "प्रकृति"
'मौत की ख़बर' ये कौन सा शहर आ गया ये कौन सी गलियाँ आ गई। अजनबी सी क्यों लग रही , ये धुंध कैसी छा गई। रास्ते अपरिचित है नज़र गली तुम्हारी वो कहाँ गई बरस बीत गए आँखों में नमी, है सिकन की एक रेखा आ गई। है खंडहर सी पड़ी ये दीवारें, संग रंग सारे बिखरा गई। तुम नहीं मिले कहीं,वो घर तुम्हारा एक ताला देख मन भरमा गई। किसी उम्मीद में कि तुम मौजूद होंगे, नामौजूदगी तुम्हारी वहाँ समा गई। कि उल्टे कदम लौट आने लगे, तभी मौत की तुम्हारी खबर आ गई। ©दीपा साहू "प्रकृति" #Prakriti_ #deepliner #poetry #love #SAD #you hj 'मौत की ख़बर' ये कौन सा शहर आ गया ये कौन सी गलियाँ आ गई। अजनबी सी क्यों लग रही , ये धुं
ARTI DEVI(Modern Mira Bai)
Shivkumar
आँखों में कोई ख़्वाब सुनहरा नहीं आता इस " झील " पे अब कोई परिन्दा नहीं आता हालात ने चेहरे की चमक देख ली वरना दो-चार बरस में तो बुढ़ापा नहीं आता मुद्दत से तमन्नएँ सजी बैठी हैं दिल में इस घर में बड़े लोगों का रिश्ता नहीं आता इस दर्ज़ा मसायल के जहन्नुम में जला हूँ अब कोई भी मौसम हो पसीना नहीं आता मैं रेल में बैठा हुआ यह सोच रहा हूँ इस दैर में आसानी से पैसा नहीं आता अब क़ौम की तक़दीर बदलने को उठे हैं जिन लोगों को बचपन ही कलमा नहीं आता बस तेरी मुहब्बत में चला आया हूँ वर्ना यूँ सब के बुला लेने से ‘राना’ नहीं आता ©Shivkumar #lakeview #झील #नदियाँ #Nojoto #nojotohindi #आँखों में कोई #ख़्वाब सुनहरा नहीं आता इस झील पे अब कोई परिन्दा नहीं आता हालात ने चेहरे क
Desibala123k
Rishika Srivastava "Rishnit"
शीर्षक:- "आओ सखी ,खेले फ़ाग " ................................ मार-मार पिचकारी रगों की फुहार से उड़ा के अबीर के रंग, भीगें हर अंग रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे...! थोड़ा सा ग़ुलाल मैं लगाऊं, थोड़ा तुम लगाना.. लपक-झपक ग़ुलाल के रंगों से, रंगे दोनों संग रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..! ना जाने कहाँ होंगे अगले बरस, एक दूसरे को देखने को नजरें जाएगी तरस.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..! आगे की चिंता की शिकन ना आने दे हमारे दरमियान, तू और इस रंग-बिरंगे रंगों संग जिंदगी में भरे हर रंग रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..! बरस-बरस भीगेंगे आँचल, भिगोए जलते तन-मन रे.. आओ सखी, बुझा दे प्रेम से हर पीड़ा की चुभन रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..!! ©Rishika Srivastava "Rishnit" शीर्षक:- "आओ सखी ,खेले फ़ाग " ................................ मार-मार पिचकारी रगों की फुहार से उड़ा के अबीर के रंग, भीगें हर अ
Poet Kuldeep Singh Ruhela
खेल रहे हैं होली देखो मेरे कान्हा रंग तोहे में अपनी प्रीत का लगाऊंगी तेरे ही मनमोहन रंग में रम जाऊंगी अब के बरस तुमरे संग ही मेरे प्यारे रंग रशियां में होली मनाऊंगी ! ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #Holi खेल रहे हैं होली देखो मेरे कान्हा रंग तोहे में अपनी प्रीत का लगाऊंगी तेरे ही मनमोहन रंग में रम जाऊंगी अब के बरस तुमरे संग ही मेरे प्