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Dr.Narendra Gadge
नज़र का धोका 31दिसंबर22©नरेंद्र पल कैसे गुजर गए पता ही नही चला, इस सफ़र में था मैं एकदम से अकेला। कई बसंत देखे मैंने अपने इस सफ़र में, दुख सुख, छाव धूप सभी थे मेरे साथ में। हर साल लगता था कुछ तो नया होगा, फर्क नजर नही आया सिर्फ था नज़र का धोका। सिर्फ उम्र कम हो गई इस नए नवेले साल में, कोई तो नयी बात बताए इस आनेवाले साल में। आते जाते सालो की गिणती करते ना बैठें, कुछ तो मंजिल हो हमारी ना रहें ऐसे रूठे रूठे। कवी:डॉ. नरेंद्र गाडगे सहयोगी प्राध्यापक, नागपुर ©Dr.Narendra Gadge Narendra Gadge Poetry