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Shilpa yadav
भटकते हुए एहसास समेटने के चक्कर में अक्सर भटकते हैं लोग,चींटी जैसे शक्कर में ©Shilpa yadav #JodhaAkbar #आंगन #स्मृति#स्मृति
अशेष_शून्य
पेंसिल से पेन तक का सफ़र सीखता है कि उम्र की हर कक्षा में गलतियां मिटाने का अवसर हर बार नहीं मिलता । बार बार मिटाकर लिखने से पन्ने सिकुड़ जाते हैं और सिकुड़ी हुई रेखाओं में लिखा हुआ सही शब्द भी धुंधला जाता है । इसलिए समय रहते हमें पेन, पैर, जुबान और दिमाग सही दिशा और दशा में पूरी मजबूती से रखना सीखना होता है ।। ताकि हमारा चरित्र कभी लड़खड़ाए न और ना कभी हमारा अस्तित्व धुंधलाए । क्यूंकि ये दो ऐसे सच हैं जिन्हें मिटाकर फिर से कभी नहीं लिखा जा सकता। ~© अंजली राय पोस्ट - अल्पकालिक अर्थात टेंपररी 🤐
Savita Suman
#स्मृति तुम्हारी स्मृति को भूला दूं कैसे यही तो जीवन का आधार है सुख दुःख के हर एक पल को अश्कों से लिखा मैंने संसार है ©Savita Suman #स्मृति
डाॅ राजेश हालुवासिया
उनके साथ बिताए पलों की यादों के कारवां का वो कारिंदा मैं ही हूॅ। मेरे ख्वाबों का क्या, उनके ख्वाबों से अपने दिल को जलाए वो कारिंदा मैं ही हूॅ। उनकी हसरतों को ताज सा सा सजाए वो कारिंदा मैं ही हूॅ। उनके लिखे हुए खतों को आज तक अपने जहन में समाए वो कारिंदा मैं ही हूॅ। वो मिले तो नहो पर उनके मिलने की आश लगाए वो कारिंदा मैं ही हूॅ। स्मृति
Amit Singhal "Aseemit"
बचपन में अंकित हो जाती है, मानस पटल पर जो स्मृति। वही जीवन को बना जाती है, वीभत्स या सुंदर कलाकृति। ©Amit Singhal "Aseemit" #स्मृति
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##स्मृतियों के पन्नों से## वाणी के तीक्ष्ण शरों से जब ये हृदय बिंध हो जाता है तुम याद स्वयं आ जाती हो रह -रह कर कर मन अंकुलाता है तुम बिन रोना भी चाहूँ तो मैं किसके अंक शीश रख दूं अंतस की विकल उदासी को कैसे स्मित पट से ढक दूं मालूम है तुम न आओगी दुनिया की इन दहलीजों पर लेकिन हर बार हृदय मेरा- पागल सा तुम्हें बुलाता है मन कभी कभी थक जाता है दुनिया की दुनियादारी से शीतल सा मन जल उठता है आघातों की चिंगारी से जब प्राणों की सारी कविता यूँ ही उदास हो जाती है जब निर्निमेष बोझिल आंखों में शून्य क्षितिज भर आता है तुम को खोया तो है मैंने लेकिन इक अनुभव पाया है शाश्वत आखिर क्या है जग में जाएगा जो भी आया है मैं शोक नहीं करती फिर भी यादें हैं😔😔 आ ही जाती हैं जब यह मासूम हृदय मेरा दुनिया में ठोकर खाता है इक अरसा गुजर गया लेकिन सब कल जैसा ही लगता है तुम अभी -अभी क्या चली गई हो कुछ ऐसा ही लगता है तुम स्वप्नों में भी मौन सत्य का इक संबल दे जाती हो "स्नेह" तुम्हारे बंधन में मन सुखपूरित दुख पाता है __अभिलाषा पाण्डेय "स्नेह" ©abhilasha pandey #स्मृति#