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Sunil Singh
Dhanraj Prajapati
उजाले कल को चल दिये हैं मेरे पाँव घर को चल दिये हैं मुसाफिर बने फिर रहें हैं आज-कल सालों से भटके आज फिर से गाँव को चल दिये हैं शरीर थक चुका है पाँव घिस चुके हैं फिर भी अपने घर जाना है यही सोच कर कदम चलें हैं तो बस चल दिये हैं क्या मुसीबत है शहर में भी बेहतर थे नया रोग आया है सारे के सारे गाँव चल दिये हैं मुसाफिर बन बैठे हैं अपने ही घर के बन्जारे बन कर सारे बादशाह चल दिये हैं #DHANRAJ #banjare
Ramakant Jee
तय जीत क्या करेगी बंजारों की मुकाम सब हार कर खड़े हैं नई लेने को उड़ान परहीन हम उड़ेगे छूने को आसमान हम लड़ेंगे बेहतरी को जब तक है जान जब तक है जान जब तक है जान © Banjare
Banjare #कविता
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