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नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर न चाहिए कोई ताज, न तख्त-ओ-ताज, भूख लगी है, नहीं ख्वाब चाहिए। दो वक्त की सिर्फ रोटी, या थोड़ा सा अनाज चाहिए। महल नहीं, एक छत का

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न चाहिए कोई ताज, न तख्त-ओ-ताज,
भूख लगी है, नहीं ख्वाब चाहिए।
दो वक्त की सिर्फ रोटी,
या थोड़ा सा अनाज चाहिए।

महल नहीं, एक छत काफी है,
आराम नहीं, बस राहत काफी है।
सुकून की तलाश में भटक रहा हूँ,
खाली पेट को बस बरकत काफी है।

न शानो-शौकत, न चाहत बड़ी,
बस इंसान की भूख मिट जाए।
जिंदगी की असली हकीकत यही,
कि पेट भरे, तो सुकून आ जाए।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
न चाहिए कोई ताज, न तख्त-ओ-ताज,
भूख लगी है, नहीं ख्वाब चाहिए।
दो वक्त की सिर्फ रोटी,
या थोड़ा सा अनाज चाहिए।

महल नहीं, एक छत का

Suneel Nohara

नमक से भरे है,,, Anshu writer Lalit Saxena अदनासा- Ashutosh Mishra Sethi Ji

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अनुज

सब कुछ पाकर भी क्यों खाली रहता है इंसान स्वप्न के सागर में क्यों डूबा रहता है संसार क्षण भर में छूटेगा तन से प्राण फिर किस चीज का है अभ

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unique writer

कांटे भरे रास्ते को भी पार कर लेता है

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Bhupendra Rawat

#sad_dp रोजगार शब्द मे 'बे' उपसर्ग जोड़कर बनाया गया एक नया शब्द, बेरोजगार शुरुआत मे 'बे' अक्षर के मायने थे, कुछ अलग जैसे कि दिलासा, सहानूभू

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White रोजगार शब्द मे 'बे' उपसर्ग 
जोड़कर बनाया गया
एक नया शब्द, बेरोजगार
शुरुआत मे 'बे' अक्षर के
मायने थे, कुछ अलग
जैसे कि दिलासा, सहानूभूति इत्यादि
परंतु, गुजरते वक़्त के साथ
बदलते गए मायने
उपसर्ग 'बे' के
इस अदने से अक्षर ने
अपने अंदर समाहित किए
अनगिनत अर्थ
 'निठल्ला', आवारा, नकारा, कामचोर इत्यादि
बन गयी विशेषता उपसर्ग 'बे' की
इसी विशेषता ने
आशाओं से भरे जीवन मे
भर दी निराशाएं

©Bhupendra Rawat #sad_dp रोजगार शब्द मे 'बे' उपसर्ग 
जोड़कर बनाया गया
एक नया शब्द, बेरोजगार
शुरुआत मे 'बे' अक्षर के
मायने थे, कुछ अलग
जैसे कि दिलासा, सहानूभू

Vinod Mishra

"दम हो पर मद न हो तो नमन होता है. इसके विपरीत दम हो पर मद हो तो देर सबेर दमन ही होता है." #विनोद #मिश्र #मोटिवेशन ✍️

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Anukaran

#good_night लोग कहते हैं फर्क पड़ता है क्या? जी हाँ ज़नाब फर्क पड़ता है, चाहे वो रिश्ता इंसानियत का हो या दोस्ती का, जब वो कभी मुश्किल में हो,

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White लोग कहते हैं फर्क पड़ता है क्या?
जी हाँ ज़नाब फर्क पड़ता है,
चाहे वो रिश्ता इंसानियत का हो या दोस्ती का,
जब वो कभी मुश्किल में हो,
वो भी अपने आप को वही पाता है,
सच्चा दोस्त उसे,
 उस मुश्किल की निकालने के लिये जी तोड़ कोशिश करता है,
उस मुश्किल भरे पल को अपने अंदर महशूस करता है।
और आप ज़नाब कहते हैं
फर्क पड़ता है क्या?
हाँ बहुत फर्क पड़ता है।

©Anukaran #good_night 
लोग कहते हैं फर्क पड़ता है क्या?
जी हाँ ज़नाब फर्क पड़ता है,
चाहे वो रिश्ता इंसानियत का हो या दोस्ती का,
जब वो कभी मुश्किल में हो,

Anjali Singhal

Love 💞 "आपने ही भरे हैं मुझमें अपने प्यार के रंग, एहसासों में घुल रहे हैं जो मेरी साँसों के संग। कुछ रंग प्यार के तो ले गई हवा बहाकर, फिज़

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संस्कृत लेखिका तरुणा शर्मा तरु

स्वलिखित हिन्दी रचना शीर्षक समय विधा विचार भाव वास्तविक अभी शून्य है तरु समय पक्ष में नहीं अपने जब होगा दुख भरे संघर्षों में थोड़ा सुक

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Ravendra

श्री मद भागवत कथा सुनने में जुटे श्रद्धालु

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