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Anu Verma
मंज़िल कुछ भी नहीं है साहब ये वहम है अपना सोचो आप कुछ भी लेकिन हकीकत यही है मिट्टी में है मिलना.. ©Anu Verma vairagi #बे
Lata Sharma सखी
*बे* यूँ ही बैठी थी, मेरी दोस्त आई और बोली, *अबे!* का कर रही *बे*.. सच अजब लगा.. उसका ये *बे* कर करे बोलना.. और दिमाग सोचने लगा.. कितना बकवास होता है न ये *बे* शब्द भी.. जहां भी लगता है वहीं या तो दर्द देता है या बेड़ा गर्क कर देता है.. परवाह में लगे तो *बेपरवाह* बना देता है, ख्याल में लगे तो किसी को *बेख्याल* कर देता है दखल में लगे तो *बेदखल* कर देता है फिक्र में जो लगे तो *बेफ़िक्र* कर दर्द से दिल भर देता है.. मुरव्वत में लगे तो *बेमुरव्वत* बनाये, वफ़ा में लगे तो *बेवफा* बना दे.. शर्म में लगे तो *बेशर्म* बना लाज ही छीन ले.. गैरत में लगे तो *बेगैरत* बना दे.. और नाम में लगे तो *बेनाम* बना दे, पहचान ही छीन ले.. और तो और अपनी जान में ही लगे तो, सांस छीन *बेजान* बना देता है.. सच ही है ये *बे* शब्द बेड़ा गर्क कर देता है, मन को दर्द से भर देता है... ©Lata Sharma सखी #बे
Sagar Naggrewal
बे रंग सी इस ज़िन्दगी में, अब क्या होली के रंग भरूँ,,, जब चाँद ही चला गया तन्हा छोड हमें, इन अँधेरो से फिर क्या शिकवा करूँ,,,✍ ©Sagar Naggrewal बे रंग
Juber Khan
जिंन्दगी कुत्ते सी हो गई कुत्ता तो हड्डी के पीछे भाग ता है मगर हम एक बेवफा के पीछे बहगते है वह रे जमने तेरी हद हो गई बे सरमी के आगे दुनिया रद हो गई बे सरमी
Sarla singh
सिकवा तेरी बेवफाई का तुम्ही से करेगे अगर गिला है तुमसे तो सिकायत भी तुम्ही से करेगे जब अपना कहाँ है तुम्हे तो इज्जत भी देगे हम वो चहाने वाले नही ऐ सनम जो रूसवा तुम्हे गैरो में करेगे बे वफाई
Anuj Ray
बे वजह क्यों अभी भी देखते हो सपना ? सब कुछ तो ख़त्म हो गया अपना.. ज़िंदगी मुफ़्त में बर्बाद न करो, "बे वजह" मुझको अब याद न करो.. भुला चुकी हूं तुमको दिल से 'मैं,' अब तुम भी मुझको भूल जाओ ... यूं देकर के हिचकियां कभी-कभी, " बे वजह नींद से जगाया न करो... मेरी मर्जी 'मैं 'कहीं भी रहूं , जिसको चाहूं उसको प्यार करूं.. एक बार ना कह दिया न तुमसे , "बे वजह" इतनी फरियाद न करो ... बे वजह
Poonam Jain
तेरे साथ में अकेलेपन जैसा मजा कहा था, इसीलिए तुझ से ज्यादा time मैं अकेले में बिताती हूं, तुझे पा सकूं मेरे हाथ में ऐसी लकीर कहा, ये बात अलग है कि तुझे आज भी बे इंतेहा चाहती हूं ©Poonam Jain बे इंतेहा
Rakesh Kumar
रात चाँद की, बात बरसात की, यादें फरेब की : और सब फिज़ूल || इस बूंदाबांदी के हिरासत में सिर्फ रातें नहीं, कईं शामें भी कैद होंगी || सर्द का एहसास सिर्फ समा को नहीं, शायद चंद दिलों को भी आगाज़ होंगी || कुछ खैयालों में उलझें, करवटों का सहारा लेंगे || कुछ चाँद को ताकते, अपने यादों को आंक लेंगे || फिर , कुछ गुफ्तगू व रूबरू के फरेब से खेल जाएंगे|| यूँ तो यादें फिजूल हैं, पर नादान भी, कोई नहीं, इसको भी ज़रा सा झेल जाएंगे ||🤭 #बे-रंग