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लंकापति दशानन रावण
#ज़िंदगी 😌 चाहे #एक_दिन ☝ की हो या चाहे #चार_दिन ☺ की, उसे #ऐसे_जियो 😉 जैसे कि #ज़िंदगी_तुम्हें ☝ #नहीं_मिली, 😒 ज़िंदगी 😌 को #तुम_मिले 👫 हो ।। 😘😍 ©लंकापति दशानन रावण लंका पति रावण😎
Deepak
अगर लंका चाहिए तो रावण तो बनना पड़ेगा ना ©Deepak अगर लंका चाहिए तो रावण तो बनना पड़ेगा ना
Axar
ankit saraswat
Ek villain
अनुकूलता और प्रतिकूलता युगल के समान है जो जो गम मनुष्य को संसार में जन्म लेते ही प्राप्त होते हैं यही कारण है कि मां के गर्भ में ममता इसने है और अपन तत्व के लोग में आकार लेते हैं तू जब संसार में आते हैं तब है रोता है शिशु की बंदी हुई मूर्ति का आशय यही है कि गर्भ में उसे परमानंद की जो संपत्ति मिली है वह शिशु छोड़ नहीं पा रहा है संसार में दो तरह की परिस्थितियां हर काल में मौजूद रहती हैं त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को वनवास हुआ और उनकी अर्धांगिनी माता सीता का अपहरण हो गया तो खुद भगवान श्रीराम रोने लगे इस स्थिति को देखकर भगवान शंकर से माता सीता ने पूछा यही श्री राम आप के आराध्य देव हैं जिनके नाम की पूजा करते हैं भगवान शंकर ने कहा हा सती में इन्हीं का नाम जपता हूं सती ने प्रति प्रसन्न किया यह तो सामान्य जन की तरह विपरीत हालात में भी जैसे मनुष्य रोता है वैसे ही रो रहे हैं इस पर भगवान शंकर ने कहा सती तुम्हारे प्रश्न उत्तर भी समाहित है भगवान श्रीराम आसमा जन को यह संदेश दे रहे हैं कि मनुष्य जीवन में विपरीत परिस्थितियां आती रही रहती है मेरे प्रभु नारायण रूप में नहीं बल्कि नर रूप में अमृत हुए हैं इनके रोने का संदेश है कि जब मैं शंकर जी के आराध्य होरोर आ सकता हूं तब मनुष्य रूप लेने में किसी को भी रोने की स्थिति से सम्मान करना पड़ सकता है भगवान शंकर के उत्तर में मनुष्य शब्द पर गौर करना चाहिए जब व्यक्ति मन में स्थित होकर जीवन व्यतीत करता है श्रीराम की तरह मर्यादा में रहता है और वैदिक जीवन जीने में विश्वास रखता है तब उसकी क्रियाशक्ति से प्राप्त उपलब्धियां अपहिद भी हो सकती हैं मन दुखी हो तब भी श्री राम की तरह आदमी बल नहीं छोड़ना चाहिए गौरव विधिक जीवन के पर्याप्त प्रतिकूलता ओं के कारण से मुकाबला करते रहना चाहिए एक दिन उसका समूल विनाश होकर रहेगा ©Ek villain # अनीति की लंका #Love
Uma Shankar
जगदीश निराला
वाकिफ़ तो रावण भी था अपने अंजाम से मगर, उसको जग को ये दिखलाना था. भाई बहिन का बदला ले तो ऐसे। सीता को माता मान रखा वन मेंं. पता था वनोवास वृत मैय्या को। यग्य किया जाकर आशीष भी दी. विजैभवः कहने वाला रावण था मामा भैय्या बेटों का मौक्ष कराने. पश्चात स्वयं भिड़ा बना विद्रोही। मरते हुए बोला मैंअधम हूं पापी. पर भक्त आपका था था स्वामी। प्रीत प्यार ना वश मेंं था मेरे प्रभु. इसलिए युद्ध अपनाया है स्वामी। जानकी जगतजननी मेरी भी मां. आप तो परमब्रह्म हो निज स्वामी। जगदीश निराला मांगरोल #रावण की सोच