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Ashok Mangal

Image credit: एनडीटीवी #AaveshVaani #JanMannKiBaat

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प्राथमिकता में सत्ता जबरदस्त भूल कर रही है ।
अतिआवश्यक पुल टाल, सड़कों के जाल बुन रही है ।।
 Image credit: एनडीटीवी 
#aaveshvaani #janmannkibaat

Ashok Mangal

Image credit: एनडीटीवी इंडिया #AaveshVaani #kedarnath #God #Plastic

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पवित्र केदार धाम में, प्लास्टिक का अंबार ।
भोले के दरबार में, भूल रहे संस्कार ।।

तीर्थ रहे बस नाम के, घुमन फिरन की मौज ।
अकल बेच के खा रहे, सारे ही हर रोज़ ।। Image credit: एनडीटीवी इंडिया
#aaveshvaani #kedarnath #god #plastic

vibrant.writer

#ndtv #numberone #newschannel2018 मुझे नजर मिला कर बात करने की आदत है, पर सामने अंधेरा है। - रविशकुमार एनडीटीवी इंडिया. झूठ का अंधेरा अब #Truth #पत्रकार #vibrant_writer #pritliladabar #ravishkumar

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मुझे नजर मिला कर बात करने की आदत है, 
पर सामने अंधेरा है। 
- रविशकुमार एनडीटीवी इंडिया.

झूठ का अंधेरा अब जरूर छटेगा,
सच्चाई का सूरज फिर निकलेगा। #ndtv #numberone #newschannel2018
मुझे नजर मिला कर बात करने की आदत है, 
पर सामने अंधेरा है। 
- रविशकुमार एनडीटीवी इंडिया.

झूठ का अंधेरा अब

Sandeep Kothar

वसुधैव कुटुंबकम् दोस्तों, अब तक का सबसे सफल शिखर सम्मेलन G20 रहा है, जहाँ सभी देशों ने 73 मुद्दों पर सहमति व्यक्त की और एक संयुक्त घोषणा (द #ModiJi #G20bharat #g20summit #G20_2023

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Sachin Ratnaparkhe

यह कविता व्यंगतामक है जो कुंभकरण की नींद सोते हुए एवम् अपनी दुनिया में खोए हुए हिन्दुओं के प्रति कटाक्ष करती है जिन्हे अपनी अस्तित्व की कोई #दिल्ली_हिंसा #दिल्ली_हिन्दू_विरोधी_दंगे #delhiantihinduriot #caasupport

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एक कविता दिल्ली के हिन्दू विरोधी दंगे के खिलाफ

नफ़रती आग का तुम मजा लीजिए
अपनी आंखो में आंसू सजा लीजिए,
लाशे बिछती रही और तुम सोते रहे,
मुफ्त में बंट रही वो क़ज़ा लीजिए।

उनसे तुम्हारी लाचारी देखी न गई,
तुमसे तुम्हारी तरफदारी पूछी न गई,
तुम यह वाले हो या फिर वो वाले हो,
मौत देने से पूर्व जानकारी की न गई।

जो सामने आया उनके वो मरते चले,
इक कौम का सफ़ाया वो करते चले,
तुम सोते रहो तुमको फर्क क्या,
वो मारते चले ओ तुम मरते चले।

उनको कभी नहीं था तुमसे कोई वास्ता,
तुमने खुद ही चुना था पतन का रास्ता,
तुम संपोलो को दूध पिलाते रहे मगर,
मौका पाते ही पार कर दी पराकाष्ठा।

तुम उनकी नज़रों में काफ़िर ही हो,
तुम अलग रास्तों के मुसाफिर ही हो,
वो चलते है जब ऐसे चलते है वो,
जैसे लेकर तुम्हारी मौत हाज़िर हो। यह कविता व्यंगतामक है जो कुंभकरण की नींद सोते हुए एवम् अपनी दुनिया में खोए हुए हिन्दुओं के प्रति कटाक्ष करती है जिन्हे अपनी अस्तित्व की कोई
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