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Anuj Ray
मैं टुकड़ा टुकड़ा बिकती थी" हर शाम बैठती थी मंडी, मेरी दुकान भी सजती थी। दस बारह हाथों में हर दिन, मैं टुकड़े-टुकड़े बिकती थी। ऐसा ही होता था हर दिन, ख़ून के आंसू रोता था मन। पैनी पैनी चोंचों से घायल हो मैं मरी गाय सी नुचती थी। एक उदर क्षुधा की अग्नि ने, ये कैसी क़िस्मत कर दी थी। हर रोज़ सुबह ज़िंदा होती , हर शाम को तिल तिल मरती थी। ©Anuj Ray #मैं टुकड़ा टुकड़ा बिकती थी
vimlesh Gautam https://youtube.com/@jindgikafasana6684
जब तेरी वर्दी का रोब और प्रताड़ना शुरू होती है, वह तो मेरा शारीरिक व्यायाम ही है ©vimlesh Gautam # पुलिस रौब