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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थी ।।२ हटे कैसे नज़र मेरी हँसी रुख से । जिसे अब देख तर जाने की जल्दी थी ।।३ न था अपना कोई उसका मगर फिर भी । उसे हर रोज घर जाने की जल्दी थी ।।४ सँवरना देखकर तेरा मुझे लगता । तुझे दिल में उतर जाने की जल्दी थी ।।५ बताती हार है अब उन महाशय की । उन्हें भी तो मुकर जाने की जल्दी थी ।।६ नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों । जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।।७ सही से खिल नहीं पाये सुमन डाली । जमीं पे जो बिखर जाने की जल्दी थी ।।८ लगाये आज हल्दी चंदन वो बैठे । न जाने क्यों निखर जाने की जल्दी थी ।।९ किये सब धाम के दर्शन प्रखर ऐसे । खब़र किसको निकर जाने की जल्दी थी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थ
Bharat Bhushan pathak
Beautiful Moon Night सुबह -शाम हो ईश्वर वंदन। संस्कार यही जैसे चंदन।। सुमिरन मन से हरि का कर लो। अपनी चिन्ता उन पर धर लो।। नित्य सवेरे तड़के जगना। नहीं किसी को भूले ठगना।। ©Bharat Bhushan pathak #beautifulmoon सुबह -शाम हो ईश्वर वंदन। संस्कार यही जैसे चंदन।। सुमिरन मन से हरि का कर लो। अपनी चिन्ता उन पर धर लो।। नित्य सवेरे तड़के जगना
AwadheshPSRathore_7773
AwadheshPSRathore_7773
खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे ,कुशलता” की कामना से शुरू होते थे। बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे...!! नन्हें के आने की “खबर”“माँ” की तबियत का दर्द और पैसे भेजने का “अनुनय” विनय।“फसलों” के खराब होने की वजह...!! कितना कुछ सिमट जाता था एक“नीले से कागज में”... जिसे नवयौवना भाग कर “सीने” से लगाती और “अकेले” में आंखो सेआंसू बहाती माँ” की आस थी “पिता” का संबल थी बच्चों का भविष्य थी और ,गाँव का गौरव थी ये “चिठ्ठियां” अब तो “स्क्रीन” पर अंगूठा दौडता हैं,और अक्सर ही दिल तोड़ता है “मोबाइल” का स्पेस भर जाए तो सब कुछ दो मिनट में “डिलीट” होता सब कुछ “सिमट” गया है 6 इंच में ,जैसे “मकान” सिमट गए फ्लैटों में ! जज्बात सिमट गए “मैसेजों” में “चूल्हे” सिमट गए गैसों में और इंसान सिमट गए नोटों में!वाह रे कलयुग वाह क्या बात है तेरी वाह....! ©AwadheshPSRathore_7773 "अंखियों का पानी बड़ा बेजुबा दर्द मेरा कह पाए ना , O साथी O साथी O साथी तेरी चिट्ठी पते पर आए ना" प्रसिद्ध पार्श्व गायक के गाए बोल हे यह,पहच
Anil Ray
खंड-खंड विखंडित रहकर भी अखंडित है औरत टूटकर भी नही टूटे कायनात की ऐसी साकार मूरत.. जन्मपूर्व से जन्मोपरांत तुझसे ही अनिल सृष्टि है मैं तेरी लिखावट हूँ औरत और तुम हो बेहद खूबसूरत.. ©Anil Ray 🙏🏻🙏🏻🙏🏻 💞सादर वंदन💞 🙏🏻🙏🏻🙏🏻 मानव सृष्टि की सृजनहार और पालनहार शक्ति महा मातृशक्ति को चरणवंना संग सादर नमन। भिन्न-भिन्न स्वरूप में जिंदगी क
Niraj Srivastava
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- रूप पल-पल कभी वो बदलते नहीं । साथ दे कर दगा दोस्त करते नहीं ।। नेक इंसान बन दोस्त लगता गले । मैल दिल में रखे लोग मिलते नहीं ।। वो न इंसान है देख संसार में । धूल को जो चंदन समझते नहीं ।। पाँव अपने जमाने अगर हो यहाँ । राह को देख पीछे वो हटते नहीं ।। आसमां की अगर चाहतें जो डगर । बेड़ियों को वो बंधन समझते नहीं ।। चाहतों को हमारी कभी तो समझ । बिन हमारे कभी तुम सँवरते नहीं ।। थक गया है प्रखर राह चलकर तेरी । बात क्या आजकल तुम निकलते नहीं ।। २६/०२/२०२४ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- रूप पल-पल कभी वो बदलते नहीं । साथ दे कर दगा दोस्त करते नहीं ।।
M.k.kanaujiya
कई अर्शे इंतजार करूंगा तुझे पाने की चाह में, तकता रहूंगा रास्ता तेरे आने की राह में, ना दिन को दिन,ना रात को रात सुनूंगा मैं राहें हों कांटो और फूलों भरी बेशक कांटे चुनूंगा मैं, कड़कती धूप हो या सैलाबी बरसात हो, मैं भले रहूं तन्हा बस तेरा जुनून मेरे साथ हो राह शोलों भरी हो फिर भी धूल कहूंगा चिंगारी आग की बरसे फिर भी फूल कहूंगा मैं पालूं जब तक न तुझको ये लख्ते जिगर, तुझको चंदन मैं खुद को बबूल कहूंगा, राहें फूलों भरी हो, या कांटो भरी बेशक मैं कांटे चुनूंगा ।। ©M.k.kanaujiya #कई अर्शे इंतजार करूंगा तुझे पाने की चाह में, तकता रहूंगा रास्ता तेरे आने की राह में, ना दिन को दिन,ना रात को रात सुनूंगा मैं