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Mahadev Son
ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी माँ का डेरा वैसे तो रोज भटकाता है आज मेरा भी ज़ी करता तुझे भटकाने को बस अब ले चल सपनों में सही बस तू ले चल अब उस बस्ती में जहाँ माँ का डेरा है ©Mahadev Son ये चंचल मन ले चल तू आज मुझे उस बस्ती में जहाँ जगदम्बे माँ का डेरा है आज दिल बेताब मेरा मिलने को तड़पता है बस ले चल तू ये चंचल मन जहाँ मेरी म
दूध नाथ वरुण
हे मात भवानी जगदम्बे,मुझे आके मां अब दर्शन दे। मेरी विनती सुन ले मां अम्बे,मेरी झोली खाली मां भर दे।। ©दूध नाथ वरुण #हे#मात #भवानी#जगदम्बे
Bharat Bhushan pathak
देव घनाक्षरी विधान-१६-१७ वर्णों पर यति तथा पद के अंत में तीन लघु आना अनिवार्य मापनी-८,८,८,९ जगदम्बे जय तेरी लो हर विपदा मेरी, बालक अबोध माँ,स्वीकार ले मेरा नमन। राह कोई नहीं दिखे आऊँगा बाहर कैसे, हर ओर अँधेरा है ,प्रकाश माँ करो गहन। रोग-दोष घेर रहे मन ये अशान्त हुआ, अरि दल चहुँओर, आज माता करो दमन। हार-जीत देते सीख तैयार भी लेने शिक्षा, आत्मबल बना हुआ, करो भय बस शमन।। भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏 ©Bharat Bhushan pathak #घनाक्षरी#देव_घनाक्षरी#कविता#छंद देव घनाक्षरी विधान-१६-१७ वर्णों पर यति तथा पद के अंत में तीन लघु आना अनिवार्य मापनी-८,८,८,७ जगदम्बे जय तेर
Ashutosh Mishra
दुष्टों का करने संहार, जगदम्बा फिर से आ जाओ। त्राहि-त्राहि मचा है जग में, जगह जगह हो रहें नर संहार। नारी थी नरायणी, पूजित थी जहां घर घर कन्या। उसी देश में आज वो रहती है डर कर। बढ़ रहा पाप पुण्य दिनों दिन क्षीण हो रहा। संरक्षक ही अब करते हैं मनमानी। आज आदमी बना खिलौना,खेल रचा ये कैसा। कौन है अपना कौन पराया समझ नहीं ये आता। अल्फ़ाज़ मेरे 🙏🙏 ©Ashutosh Mishra #navratri दुष्टों का करने संहार जगदम्बा फिर से आ जाओ। त्राहि-त्राहि है मचा जगत में,जगह जगह हो रहे नर संहार। #NojotoTrending #nojotothought
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मुक्तक :- अम्बें तुम्हारे भक्त देखो सब झुकाएँ शीश जगदम्बें । तुम्हारे नित्य दर्शन से मिले आशीष जगदम्बें । भटक कर योनियाँ सारी बने इंसान यह सब हैं - इन्हें भी मुक्ति दे दो माँ तुम्हीं वागीश जगदम्बें ।। बुरे अब कर्म हो जिसके करो संहार जगदम्बें । भले हो जो यहाँ मानव करो उद्धार जगदम्बें । यही विनती करूँ मैं माँ तुम्हारे आज दर पर मैं - प्रखर भी है बुरा तो अब दियो दुत्कार जगदम्बें ।। १६/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *🙏🌹सादर समीक्षार्थ🌹🙏* मुक्तक :- अम्बें तुम्हारे भक्त देखो सब झुकाएँ शीश जगदम्बें । तुम्हारे नित्य दर्शन से मिले आशीष जगदम्बें । भटक कर यो
Rajesh vyas kavi
नवरातों के नो दिन आए _ छाई खुशियां घर _ घर में। आन विराजी मैया रानी _ आज सभी के घर _ घर में।। जय हो मां जय हो मां _ जय हो आपकी अंबे मां।। © Rajesh vyas kavi जय मां अंबे __ जय जगदम्बे_ #जय #मां #माता #रानी #नवरात्रि #nojohindi #yqdidi #navratri
Anjali Singhal
rajkumar
जय श्री राधे कृष्णा ©rajkumar 🙏🌹जय जय श्रीराधे🌹🙏 श्रीमद्नित्यनिकुंजबिहारिण्यै नमः🌹🙏 जय जय श्रीराधा बल्लभ जय श्रीहरिवंश 🙏🌹श्रीहरीदास🌹🙏 हे सर्वव्यापक सदासच्चिदानंद भगवन्...
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- जीवन की नित बगिया महके , माँग रहा मैं ईश । सफल रहे वैवाहिक जीवन , खुशियां दो जगदीश ।। जीवन की नित बगिया महके ... आँगन में महुआ रस बरसे , पुष्प खिले कचनार । राम-सिया सी जोड़ी लागे , देखे सब संसार ।। दूर पीर परछाई गिरधर , रखना इनके द्वार । अपने दोनो हाथों से वर , सुनों कोसलाधीश ।। नित जीवन की बगिया महके .... दो पक्षी का एक बसेरा , करने को तैयार । सरल बना दो जीवन नैय्या , थामों तुम पतवार ।। आँगन इनके फूल खिलाकर , चहका दो परिवार । आस तुम्हीं से माँ जगदम्बा , हर लो इनकी टीश । नित जीवन की बगिया महके .... मेंहदी यूँ ही खिलती रहे , चमके नित सिंदूर । समय नही वह आने पाये, हो जाये मजबूर ।। पल भर में टूटे ये बंधन , हो जाये फिर दूर । नहीं प्रभु कभी ऐसा करना , कहता है वागीश नित जीवन की बगिया महके .... नित जीवन की बगिया महके , माँग रहा आशीष । सफल रहे वैवाहिक जीवन , खुशियां भर दो ईश ।। १८/०४/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- जीवन की नित बगिया महके , माँग रहा मैं ईश । सफल रहे वैवाहिक जीवन , खुशियां दो जगदीश ।। जीवन की नित बगिया महके ... आँगन में महुआ रस ब
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
*राधेश्यामी छन्द* नव कन्या आँगन मे मेरे , रूप लिए नव दुर्गा आई । आज खुशी का नही ठिकाना , इतनी हमने खुशियाँ पाई ।। चरण पखारूँ भोग लगाऊँ , उनको कैसे आज मनाऊँ । आदि शक्ति जगदम्बा वह है , जिनका अब मैं दास कहाऊँ ।। हाथ जोड़ करता हूँ वंदन , माँ तेरा है एक सहारा । शरण लगा लो मुझको माता , पार करूँ मैं जीवन धारा ।। क्षमा करो सब अवगुण मेरे , तुम हो जग की एक विधाता । तेरे ही गुण गाता फिरता , दे दो दर्शन मेरी माता ।। *विष्णुपद छन्द* राम लला के दर्शन करके , सब सुख मिल जाता । कष्ट सभी फिर मिट जाते , इच्छित वर पाता ।। शरण उन्हीं की मैं हूँ आया , लेकर अभिलाषा । हो जाये अब दर्शन उनके , मन की यह भाषा ।। ३०/०३/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखरः ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *राधेश्यामी छन्द* नव कन्या आँगन मे मेरे , रूप लिए नव दुर्गा आई । आज खुशी का नही ठिकाना , इतनी हमने खुशियाँ पाई ।। चरण पखारूँ भोग लगाऊँ ,