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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- लड़ सको तो लड़ो भ्रष्ट सरकार से । पेट तुम भी भरो अब चमत्कार से ।।१ लाघतें जो नहीं चौखटे थे कभी । पूजते अब उन्हें हम सभी प्यार से ।।२ मान सम्मान का अब कहाँ है चलन । हो गये घर सुनो अब ये बाजार से ।।३ नाचतीं हैं बहन बेटियाँ झूमकर । ये मिली आज सौगात संसार से ।।४ मानता कौन है यार माँ बाप की । हैं सभी आज वंचित तो अधिकार से ।।५ रानियां वीर जिनकी हुई कल तलक । नाचतीं आ रही देख दरबार से ।।६ इस मकाँ पर उन्हे देखकर खुश हुआ । गिर गये बस हमीं उनकी दरकार से ।।७ डोलता आज ईमान सबका यहाँ । सोंचकर मर गया बाप शर्मसार से ।।८ यह प्रखर भी मिटा वक्त के हाथ से । छूट फिर सब गया देख संसार से ।।९ १४/०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- लड़ सको तो लड़ो भ्रष्ट सरकार से । पेट तुम भी भरो अब चमत्कार से ।।१ लाघतें जो नहीं चौखटे थे कभी । पूजते अब उन्हें हम सभी प्यार से ।।२
N S Yadav GoldMine
उन समस्त श्रेष्ठ महारथियों के मन मैं उस समय क्या दशा हुई थी वीर ! पढ़िए महाभारत !! 📖📖 महाभारत: स्त्री पर्व विंष अध्याय: श्लोक 18-35 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 उन क्रूरकर्मा कृपाचार्य, कर्ण और जयद्रथ को धिक्कार है, द्रोणाचार्य और उनके पुत्र को भी धिक्कार है। जिन्होंने मुझे इसी उम्र में विधवा बना दिया। आप बालक थे और अकेले युद्ध कर रहे थे तो भी मुझे दु:ख देने के लिये जिन लोगों ने मिलकर आपको मारा था, उन समस्त श्रेष्ठ महारथियों के मन उस समय क्या दशा हुई थी? वीर। 📜 आप पाण्डवों और पान्चालों के देखते-देखते सनाथ होते हुए भी अनाथ की भांति कैसे मारे गये। आपको युद्धस्थल में बहुत से महारथियों द्वारा मारा गया देख आपके पिता पुरुषसिंह वीर पाण्डव कैसे जी रहे हैं? कमलनयन। प्राणेष्वर। पाण्डवों को यह विशाल राज्य मिल गया है, उन्होंने शत्रुओं को जो पराजित कर दिया है, यह सब कुछ आपके बिना उन्हें प्रसन्न नहीं कर सकेगा। 📜 आर्यपुत्र। आपके शस्त्रों द्वारा जीते हुए पुण्य लोकों में मैं भी धर्म और इन्द्रिय संयम के बल से शीघ्र ही आऊंगी। आप वहां मेरी राह देखिये। जान पड़ता है कि मृत्यु काल आये बिना किसी का भी मरना अत्यन्त कठिन है, तभी तो मैं अभागिनी आप को युद्ध में मारा गया देखकर भी अबतक जी रही हूं। 📜 नरश्रेष्ठ। आप पितृलोक में जाकर इस समय मेरी भी तरह दूसरी किस स्त्री को मन्द मुस्कान के साथ मीठी वाणी द्वारा बलायेंगे? निश्चय ही स्वर्ग में जाकर आप अपने सुन्दर रूप और मन्द मुस्कान युक्त मधुर वाणी के द्वारा वहां की अप्सराओं के मन को मथ डालेंगे। 📜 सुभद्रानन्दन। आप पुण्य आत्माओं के लोकों में जाकर अप्सराओं के साथ मिलकर विहार करते समय मेरे शुभ कर्मों का भी स्मरण किजियेगा। वीरं इस लोक में तो मेरे साथ आपका कुल छह महिनों तक ही सहवास रहा है। सातवें महिने में ही आप वीरगति को प्राप्त हो गये। 📜 इस तरह की बातें कहकर दु:ख में डूवी हुई इस उत्तरा को जिसका सारा संकल्प मिट्टी में मिल गया है, मत्स्य राज विराट के कुल की स्त्रियां खींचकर दूर ले जा रही हैं। शोक से आतुर ही उत्तरा को खींचकर अत्यंत आर्त हुई वे स्त्रियां राजा विराट को मारा गया देख स्वंय भी चीखने और विलाप करने लगी हैं। 📜 द्रोणाचार्य के बाणों से छिन्न-भिन्न हो खून से लथपथ होकर रणभूमि में पड़े हुए राजा विराट को ये गीध, गीदड़ और कौऐ लौंच रहे हैं। विराट को उन विहंगमों द्वारा लौंचे जाते देख कजरारी आंखों वाली उनकी रानियां आतुत हो होकर उन्हें हटाने की चेष्टा करती हैं पर हटा नहीं पाती हैं। 📜 इन युवतियों के मुखार बिन्दु धूप से तप गये हैं, आयास और परिश्रम से उनके रंग फीके पड़ गये हैं। माधव। उत्तर, अभिमन्यु, काम्बोज निवासी सुदक्षिण और सुन्दर दिखाई देने वाले लक्ष्मण- ये सभी बालक थे। इन मारेगये बालकों को देखो। युद्ध के मुहाने पर सोए हुए परम सुन्दर कुमार लक्ष्मण पर भी दृष्टिपात करो। ©N S Yadav GoldMine #GarajteBaadal उन समस्त श्रेष्ठ महारथियों के मन मैं उस समय क्या दशा हुई थी वीर ! पढ़िए महाभारत !! 📖📖 महाभारत: स्त्री पर्व विंष अध्याय: श्लो
N S Yadav GoldMine
गान्धारी बोलीं- माधव जो काबुल के बने हुए मुलायम बिछौनों पर सोने के योग्य हैं पढ़िए महाभारत !! 📝📝 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 1-17 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 गान्धारी बोलीं- माधव। जो काबुल के बने हुए मुलायम बिछौनों पर सोने के योग्य हैं, वह बैल के समान हष्ट-पुष्ट कन्धों वाला दुर्जय वीर काम्बोज राज सुदक्षिण मरकर धूल में पड़ा हुआ है। उसकी चंदन चर्चित भुजाओं को रक्त में सनी हुई देख उसकी पत्नि अत्यन्त दुखी हो करुणा जनक विलाप कर रही है। 📜 वह कहती है- प्राणनाथ। सुन्दर हथेली और अंगुलियों से युक्त तथा परिघ के समान मोटी ये वे ही दोनो भुजाऐं हैं, जिनके भीतर आप मुझे अंग में भर लेते थे और उस अवस्था में मुझे जो प्रसन्नता होती थी, उसने पहले कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा था। जनेष्वर। अब आपके बिना मेरी क्या गति होगी। श्रीकृष्ण। अपने जीवन बन्धु के मारे जाने से अनाथ हुई यह रानी कांपती हुई मधुर स्वर से विलाप कर रही है। 📜 घाम से मुर्झाती हुई नाना प्रकार की पुष्प मालाओं के समान यह राज रानियां धूप से तप गयी हैं, तो भी इनके शरीरों को सौन्दर्य श्री छोड़ नहीं रही हैं । मधुसूदन। देखो, पास ही वह शूरवीर कलिंगराज सो रहा है, जिसकी दोनों विशाल भुजाओं में चमकीले अंगद (बाजूबन्द) बंधे हुए हैं। जनार्दन। 📜 उधर मगध राज जयत्सेन पड़ा है, जिसे चारों ओर से घेरकर उसकी पत्नियां अत्यन्त व्याकुल हो फूट-फूट कर रो ही हैं। श्रीकृष्ण। मधुर स्वर वाली इन विशाल लोचना रानियों का मन और कानों को माह लेने वाला आर्तनाद मेरे मन को मूर्छित सा किये देता है। इनके वस्त्र और आभूषण अस्त व्यस्त हो रहे हैं। 📜 सुन्दन विछौनों से युक्त शैयाओं पर सयन करने के योग्य ये मगध देष की रानियां शोक से व्याकुल हो रोती हुई भूमि पर लोट रही हैं। अपने पति कौषल नरेष राजकुमार बृहदल को भी चारों ओर से घेरकर उनकी रानियां अलग-अलग रो रही हैं। अभिमन्यु के बाहुबल से प्रेरित होकर कौषल नरेष के अंगों में धंसे हुए बाणों को ये रानियां अत्यन्त दुखी होकर निकालती हैं और बार-बार मूर्छित हो जाती हैं। 📜 माधव। इन सर्वांग सुन्दरी राज महिलाओं के सुन्दर मुख धूप और परिश्रम के कारण मुर्झाये हुए कमलों के समान प्रतीत होते हैं। ये द्रोर्णाचार्य के मारे हुए धृष्टद्युम्न के सभी छोटे-छोटे शूरवीर बालक सो रहे हैं। इनकी भुजाओं में सुन्दर अंगद और गले में सोने के हार शोभा पाते हैं। 📜 द्रोणार्चाय प्रज्वलित अग्नि के समान थे, उनका रथ ही अग्निषाला था, धनुष ही उस अग्नि की लपट था, बाण, शक्ति और गधाऐं समिधा का काम दे रही थीं, धृष्टद्युम्न के पुत्र पतंगों के समान उस द्रोण रूपी अग्नि में जलकर भष्म हो गये। इसी प्रकार सुन्दर अंगदों से विभूषित पांचो शूरवीर भाई कैकय राजकुमार समरांगन में सम्मुख होकर जूझ रहे थे। 📜 वे सब के सब आचार्य द्रोण के हाथ से मारे जाकर सो रहे हैं। इन सबके कवच तपाये हुए स्वर्ण के बने हुए हैं और इनके रथ समूहों ताल चिन्हित ध्वाजाओं से सुशोभित हैं। ये राजकुमार अपनी प्रभा से प्रज्वलित अग्नि के समान भू-तल को प्रकाषित कर रहे हैं। N S Yadav 📜 माधव। देखो, युद्धस्थल में द्रोणाचार्य ने जिन्हें मार गिराया था वे राजा द्रुपद सो रहे हैं, मानो किसी वन में विशाल सिंह के द्वारा कोई महान् गजराज मारा गया हो। ©N S Yadav GoldMine #walkalone गान्धारी बोलीं- माधव जो काबुल के बने हुए मुलायम बिछौनों पर सोने के योग्य हैं पढ़िए महाभारत !! 📝📝 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विं
अनिता कुमावत
पिया म्हारा ईसर जी , म्हें थारीं गणगौर थांके नाम जिन्दगाणी ,म्हारा थें चितचौर वारि जाऊं पिया जी पे, म्हारा जो सिरमौर थांके सिवा कठे कोणी म्हारो और ठौर !! अरज गौरां मां सूं सगलां पे आपणी किरपा बनाए राखजो 🙏🙏 खम्मा घणी सा गौर गौर गोमती, ईसर पूजे पार्वती, पार्वती के आला तीला, सोने का टीला। टीला दे टमका दे, बारह रानी बरत करे, करते करते आस आयो, मास
नेहा उदय भान गुप्ता
टीम कॉम्पटीशन... Poetic Sejal + Neha Uday Bhan Gupta कैप्शन में पढ़े 👇👇 मैंने देखा जग में कृष्ण सा प्रेम नहीं, राधा समता नहीं प्रीत कोई। निश्चल प्रेम है दोनों का,नहीं है इनके समता मीत। दोनों के प्रेम को बंधन मे
Harshita Dawar
Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat एक तूफ़ान है मन में बुझा दी भूख मन में अहम देखकर सहम गई मन में बोटी समझ कर वैशियत की गंदगी मन में वेशिया का बिस्तर खोखला इतिहास रचता मन में बदनामी जिस्म के सौदागरो कि नहीं बिकती जो बाज़ार में ना की मन में इतिहास गवाह है जिस्मों के सौदे के नाम पर हज़ारों रानियां रखी जाती ना की मन में औरत को दबाने ,हवस बुझा ने की कहानी इतिहास में दर्ज़ करावाई गई ना की मन में कर्ज़ के नाम पर हज़ारों बार बे मौत मरती रही औरत अपने ही ज़हन में ना की मन में हिमाकत अगर करती मारी जाती, बाज़ी लगाई जाती, शतरंज में दांव पर लगा दी जाती ना की मन में क्या औरत की हक़ीक़त यहीं रही इतिहास के पन्नों में क्या आज भी औरत को ना दबने को मर्दानी वाली झांसी फिर कहलाएं, तन में मन में हर इतिहास के नए या पुराने पन्नों में ही नहीं गवाह बनी जीवन के दृढ़ निश्चय से हर पहलू में हर कल में। औरत औरत है इज्ज़त का सर का ताज है घर की रौनक है, जीवन का सार है वशाज़ है कृपाल है कृताथ है। Hello Resties❤ हमारे #rzhindi पर Collab करें और इसे अपने शब्दों से पूरा करें | Click by- Adhikari Mann #rztoofanhai #rzhindi #yqrestzone
नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
टीम कॉम्पटीशन... Poetic Sejal + Neha Uday Bhan Gupta कैप्शन में पढ़े 👇👇 मैंने देखा जग में कृष्ण सा प्रेम नहीं, राधा समता नहीं प्रीत कोई। निश्चल प्रेम है दोनों का,नहीं है इनके समता मीत। दोनों के प्रेम को बंधन मे
PARBHASH KMUAR
मनुष्य जब भी प्रेम की परिभाषा के बारे में सोचता है, तो सदैव ही राधा रानी और श्री कृष्ण की एक सुंदर सी छवि उसे अपनी ओर आकर्षित करती है। लेकिन क्या आपको पता है, कि श्री कृष्ण की प्रियतमा राधा नहीं, बल्कि रुक्मिणी उनकी पत्नी थीं? और इस विवाह के लिए देवी रुक्मिणी का हरण किया गया था? वेद-पुराण और साहित्य के अनुसार, श्रीकृष्ण की 8 रानियां थीं, जिनसे उन्होंने विधिपूर्वक विवाह किया था। इन 8 रानियों में सबसे पहली थीं, रानी रुक्मिणी। आइए उनके और श्री कृष्ण के विवाह की कथा को जानते हैं। देवी रुक्मिणी और श्रीकृष्ण के विवाह की कथा बेहद रोचक है। आज हम आपको बताएंगे, कि आखिर कैसे ये दोनों मिले और यह विवाह संपन्न हुआ। मानवजाति को अपनी लीलाओं की क्रीड़ा दिखाने वाले श्री कृष्ण के काल में, विदर्भ के राजा भीष्मक की एक कथा सुनने को मिलती है। भीष्मक के 5 पुत्रों के अलावा, उनकी एक पुत्री भी थीं, रुक्मिणी। अत्यंत सुंदर, बुद्धिमान और सदाचारी व्यवहार वाली रुक्मिणी, बचपन से ही श्री कृष्ण की साहस और वीरता की कायल थीं। ऐसा भी कहा जाता है, कि उन्होंने श्री कृष्ण द्वारा कंस के वध को भी साक्षात देखा था। जब रुक्मिणी की उम्र विवाह योग्य हुई, तो इसके संबंध में उनके भाई रुक्मी और माता-पिता को चिंता होने लगी। एक बार राजमहल के पुरोहित जी, द्वारिका से भ्रमण करते हुए विदर्भ आए। यहां आकर, वह श्री कृष्ण के रूप और गुणों का वर्णन करने लगे और साथ ही, चित्र के माध्यम से सभी को उनके छवि दर्शन भी कराए। उस वक़्त जब देवी रुक्मिणी ने उन्हें देखा, तो वह भी मोहित हो गईं और मन ही मन उन्हें अपना स्वामी मान बैठीं। अब कठिनाई यह थी, कि देवी रुक्मिणी के पिता और भाई रुक्मी का संबंध, सदैव श्री कृष्ण का अहित चाहने वाले जरासंध, कंस और शिशुपाल से था। यही वजह थी, कि रुक्मिणी का विवाह श्री कृष्ण से होना संभव नहीं था। जब राजनीतिक संबंधों को ध्यान में रखकर शिशुपाल से रुक्मिणी का विवाह उनकी मर्ज़ी के विरुद्ध तय हो गया, तब देवी से रहा नहीं गया और उन्होंने प्रेम पत्र लिखकर ब्राह्मण कन्या सुनन्दा के हाथों, श्री कृष्ण तक पहुंचा दिया। भेजे गए उस पत्र में रुक्मिणी लिखती हैं, “हे नंद-नंदन! मैंने आपको ही पति के रूप में वरण किया है। मैं आपके अतिरिक्त, किसी अन्य पुरुष से विवाह नहीं कर सकती। मेरे पिता और भाई, मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरा विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहते हैं और विवाह तिथि भी निश्चित है। मेरे कुल की रीति है, कि विवाह पूर्व दुल्हन की वेशभूषा में वधु नगर के बाहर गिरिजा मंदिर में दर्शन प्राप्ति हेतु जाती है। मैं भी वहां जाउंगी। अतः आपसे मेरा निवेदन है, कि आप आएं और मुझे पत्नी के रूप में वहीं स्वीकार करें। अगर आप नहीं आते हैं, तो मैं अपने प्राणों का त्याग करने की मंशा रखती हूँ।” अब भगवान श्री कृष्ण तो स्वयं सृष्टि के रचयिता हैं, उनसे तो कुछ भी छुपा नहीं था। फिर जब उन्हें यह आभास हुआ, कि देवी रुक्मिणी संकट में हैं, तो उन्होंने एक योजना बनाई। जब शिशुपाल बारात लेकर विदर्भ पहुंचा, उससे पहले ही श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम की मदद से रुक्मिणी का हरण कर के वहां से चले गए। हरण के पश्चात श्री कृष्ण ने शंख की ध्वनि से धरती से आसमान तक, इसकी सूचना दे दी और यह देखकर शिशुपाल भी अत्यंत क्रोध में आ गया। वह तुरंत ही श्री कृष्ण के वध की मंशा से निकल पड़ा, लेकिन यहां भी उसके हाथों हार ही लगी और प्रभु, देवी रुक्मिणी समेत द्वारिका की ओर प्रस्थान कर गए। द्वारिका में श्री कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह की उत्तम तैयारी हुई और यह विवाह संपन्न हुआ। ऐसा कहा जाता है, कि श्री कृष्ण का हर कर्म एक लीला है, जिसमें जीवन के लिए एक सीख व्याप्त है। इसी प्रकार, श्री कृष्ण-रुक्मिणी विवाह से भी हमें यह सीख मिलती है, कि महिलाओं को अपने अधिकार चुनने का पूरा अधिकार है और जब भी मनुष्य अपनी इच्छाओं को प्रभु के समक्ष प्रकट करेगा, तब नारायण स्वयं उसको पूरा करने के लिए अपने आशीष की स्नेह वर्ष करेंगे। अगर आपको यह कथा वृतांत पसंद आया, तो ऐसी ही और भी मनोरम लीलाओं और कहानियों को सुनने के लिए जुड़े रहिये, Sri Mandir के साथ। ©parbhashrajbcnegmailcomm मनुष्य जब भी प्रेम की परिभाषा के बारे में सोचता है, तो सदैव ही राधा रानी और श्री कृष्ण की एक सुंदर सी छवि उसे अपनी ओर आकर्षित करती है। लेकिन