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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
सार छन्द गीत:- पावस की बूँदों में गोरी , कैसे झूम रही है । गोरे-गोरे तन को देखो , केशें चूम रही है ।। पावस की बूँदो में गोरी ... बोल रहे हैं दादुर भी तो , गोरी की अब बोली । मेघो ने अम्बर है घेरा , मन्द पवन फिर डोली । खनक रही हाथों की चूड़ी , भीग गई वह चोली । इस सावन साजन को पाकर , देखो चहक रही है । पावस की बूँदों में गोरी ...... चारो ओर लताए देखो , नव शृंगार किए हैं । महका-महका उपवन सारा , शीतल छाँव किए हैं।। आज प्रकृति के रंगों में , गोरी रमी हुई है । जैसे जल की गगरी यारों , भरकर छलक रही है पावस की बूँदों में गोरी....। नागिन जैसी जुल्फ़े जिसकी , डसना भूल गई है । जैसे कली अधूरी कोई , खिलना भूल गई है ।। आज उसी के अधरो पर तो , कोमल कमल खिले है । पाकर इतनी खुशियों को , झूला झूल रही है ।। पावस की बूँदों में गोरी..... पावस की बूँदों में गोरी , कैसे झूम रही है । गोरे-गोरे तन को देखो , केशें चूम रही है ।। २८/०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सार छन्द गीत:- पावस की बूँदों में गोरी , कैसे झूम रही है । गोरे-गोरे तन को देखो , केशें चूम रही है ।। पावस की बूँदो में गोरी ... बोल रहे ह
Nisheeth pandey
#वो रात बेहया !!!! ----------- वो रात मानो ,बेहया हो गयी थी जब तुम बाल खोल कर घूर रहीं थी ... आधुनिकता में तुम्हारे शर्ट के खुले बटन नाभी के ऊपर से बाँधे शर्ट का कोर... मुझे रिझाती रहीं ... तुम्हारे होठों पर हँसी कातिल निगाहें ... वो रात बन गई थी शराब ... नहीं झेंप रहीं थी ...किसी भी बात पर अपनी अदां तुम ,मैं और वो रात कोई भी हो... मुहब्बत तन मन बेबाक सुनाती अपनी प्यास... दिल की चाहत प्यार बरसे मिटे प्यास.. इश्क़ के गीत...सरेराह गाती तुम बल्ब के घूरने पर... स्विच ऑन ऑफ करती तुम मानो 'आँख मारकर' लुभाती तुम... अपने पारदर्शी पोसाक में...इतना इतराती तुम . हाँ!बेहया सी दिख रहीं थी वो! आधुनिकता जो आज काम वासना ग्लाश में शराब शराब में घुलता बर्फ स्त्री पुरुष के हर गुण अपनाया...ये बेहयापन कैसे निभाया? दरवाज़ा बंद रहा...गैरों के लिए तो ,अपनों से भी... कभी अस्तिव बचाती थी ? धर्म पर अडिग थी हाँ! अब बेहया हो गयी थी आधुनिकता के तलब में वो! जो इरादों से अपनी आधुनिकता की पक्की थी सच में...वो रात ज़िद्दी थी... अब वो भीड़ में भी गम्भीर नही ...भीड़ से लड़ने की हुनर रखती अपनी हर मजबूरी से... हर-हाला लड़ी थी हर तूफ़ान जन्म देकर उड़ जाती जब उसके सर पे वोडका वाइन चढ़ता अपने ही ज़िस्म से चादर फाड़ देती ... ना सूरज की दरकार-ना चाँद का इंतज़ार चिटकती सड़कों पर नशे में झूमकर चलती है... हाँ! आधुनिकता में बेहया होती जा रहीं थी वो रात ! अपने हर ख्वाब को मुक़म्मल करने में हर पुरुष को ठोकर मार... खुद को बराबर जता रहीं ... स्त्रीत्व के चेहरे का नक़ाब नोंच कर पुरुष की तिलिस्म वो रच रहीं ... रात भर जागती-उघियाती , बियर के मगों से बतियाती है... कभी कुछ लिखती तो कभी संस्कार के कैनवास पर खुद को नंगी चित्रित करती है... हाँ! तुम बेहया हो गयी ! खुद को मॉडर्न बनाने में ढलती रात में , वाशना के चाशनी में मिठाई बनती रहीं... जिश्म का प्यार में रमी रहीं , रूह का गला घोंट दिया... आधुनिकता के बाज़ार में जिंदा रहेंगी मेरी साँसों के साथ वो रात और तुम , ये बात दोहराती रहेंगी ... आधुनिकता में परुष से बराबरी करना बराबरी में बेहया होने की जिद्द करना .... आधुनिकता की परिभाषा क्या था तुम्हारे लिये बस पुरुषों के दुर्गुणों का बराबरी करना .... हाँ वो रात बेहया हो गयी थी .... हाँ वो रात बेहया हो गयी थी .... #निशीथ ©Nisheeth pandey #WoRaat वो रात बेहया !!!! ----------- वो रात मानो बेहया हो गयी थी जब तुम बाल खोल कर घूर रहीं थी ... आधुनिकता में तुम्हारे शर्ट के खुले बटन
Nisheeth pandey
जब तुम्हारे नाम का लेता हूँ ज़ाम.....रात की तन्हाई में.. तुम्हारी खुंशबू महकने लगती है आसपास की हवाओं में...… इसलिये कविता मेरी रमी है तुम्हारी तलब में ..... हर पन्ना है मदहोश दीवाना तुम्हारे नाम में .... जब भी तन्हा चाँद देख सोचता हूँ तुम्हें अकेले में.... सुनो लिपटने लगता है मेरा बदन.... चांदनी के चादर में ….. मदहोश मेरे गीत है गुनगुनाते शरारती हवाएं आवारगी में ... गवाही देता हैआसपास जुगनुओं का जगमगाना चांदनी रात में ..... जब तुम्हारे नाम का लेता हूँ ज़ाम.....रात की तन्हाई में.. #निशीथ ©Nisheeth pandey #MainAurChaand जब तुम्हारे नाम का लेता हूँ ज़ाम.....रात की तन्हाई में.. तुम्हारी खुंशबू महकने लगती है आसपास की हवाओं में...… इसलिये कविता
Shree
आप गरिमामयी, ममतामयी, प्रोत्साहन भरी, राम जी में रमी, असीम प्रेम सी भाव की धनी, सकारात्मकता लिए हर सोच, शब्द आपके भले। सुंदर स्वास्थ्य, प्यारी मुस्कान आपके साथ हमेशा रहे। और आपका आंचल सदा स्नेहाशीष लिए हम पर रहे। Dedicating a #testimonial to Satya Harsana 🤗🤗🤗 🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐💐💐♥️♥️♥️ 🌼🌼🌼🍀🍀🍀🌹🌹🌹 आप गरिमामयी, ममतामयी, प्रोत्साहन भरी, राम जी में रमी,
Hrishabh Trivedi
जीवन 😊अनुशीर्षक में पढ़े😊 :- काफी पहले लिखा था उसे repost कर रहा हूं 20 से 30 का जो शुरूआती स्ट्रगल होता है, वो समाज में acceptability बनाने वाला ज्यादा होता है। ऐसा
Hrishabh Trivedi
"जीवन" 😊😊अनुशीर्षक में पढ़े 😊😊 20 से 30 का जो शुरूआती स्ट्रगल होता है, वो समाज में acceptability बनाने वाला ज्यादा होता है। ऐसा क्या कर दूँ कि रिश्तेदार/पड़ोसीयों में धाक ज
Vandana
मैं आजाद हूं तेरे ख्यालों से, बहुत सता लिया खुद को अब तो, सोचा था कुछ असर कर जाएगी मोहब्बत तेरे जहन में कुछ खलबली सी मचा जाएगी,,,, मगर तुझे मंजूर है रहना अपनी बेखुदी में अब थक चुके हैं कोशिशे तमाम
gurmeet_kichhana
Deepak Kanoujia
संजीवनी सौभाग्य— % & इस जनवरी में एक शुरुवात हुई…शुरुवात हुई और संयोगवश उस शुरुवात को इसी जनवरी में होना था जैसे क्योंकि पिछली किताब भी किसी जैसे पूर्व योजना के
Sanket Chaudhary
वफा. दर्द. बेवफ़ाई #अभिव्यक्ति_challange में चलो #collab करें थोड़ा logical थोड़ा mathematical तरीक़े से😊 Venn diagram के दोनों सर्किल (गोले) में दो oppsite word