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Naveen Bothra

पुण्य का अवसर #विचार

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Hasanand Chhatwani

पुण्य का अहंकार ##

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 #पुण्य का अहंकार ##

Parasram Arora

पाप पुण्य का संतुलन #कविता

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पाप  मैंने  कई  किये
और उनके  फल भी
उसी अनुपात में भुगते
फिर पश्चाताप  करने के लिये
मैंने पुण्यो की तरफ  कदम भी बढ़ाये
किन्तु मेरे किसी भी पुण्य का  मुझे
कोई अनुकूल  नतीजा नही मिला
यध्यपि  जरूरी है   कि.
जीवन में  पाप  और पुण्य का
एक संतुलन   हमेशा कायम रहे

©Parasram Arora पाप पुण्य का संतुलन

Parasram Arora

# पाप पुण्य का लेखा जोखा

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हिसाब लगा रहा हूँ आज 
उन पापों का 
जो अब तक मुझसे  हुए  ही नहीं 
और  उन . पुण्यों  का नए सिरे से  
मूल्यांकन करने का  कदाचित   समय    भी यही  है 
जिन्हे अर्जित  किया है  मैंने  अनजाने  मे 
जिनके   लिए   मै   अधिकृत भी  था नहीं #
पाप  पुण्य  का  लेखा जोखा

ANSARI ANSARI

पुण्य का भी ख्याल कर #Thoughts

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Prashant Mishra

मेरे पुण्य का पारितोषक हो तुम

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तन बहकने लगा, इतनी रोचक हो तुम
मन चहकने लगा, इतनी पोषक हो तुम
तुमको पाकर के यूँ  लग रहा है मुझे
के मेरे 'पुण्य' का पारितोषक हो तुम

--प्रशान्त मिश्रा मेरे पुण्य का पारितोषक हो तुम

HP

👉 आत्म-निर्माण का पुण्य-पथ

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👉 आत्म-निर्माण का पुण्य-पथ (भाग ३)

महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में रहने वाले प्रत्येक आश्रम वासी को अपनी डायरी रखनी पड़ती थी जिसमें उनके विचारों और कार्यों का विवरण रहता था। गांधी जी के सामने वे सभी डायरियां प्रस्तुत की जाती थीं और वे उन्हें ध्यान पूर्वक पढ़कर सभी को आवश्यक परामर्श एवं मार्ग दर्शन प्रदान करते थे। यह पद्धति उत्तम है। परिवार की व्यवस्था सम्बन्धी समस्याओं पर विचार करने के लिये घर के सब सदस्य मिलकर विचार कर लिया करें और उलझनों को सुलझाने का उपाय सोचा करें तो कितनी ही कठिनाइयां तथा समस्याएं आसानी से हल हो सकती हैं।
मन में उठने वाले कुविचारों की हानि भयंकरता तथा व्यर्थता पर विचार करना तथा उनके प्रतिपक्षी सद्विचारों को मन में स्थान देना, आत्म सुधार के लिए एक अच्छा मार्ग है। विचारों को विचारों से ही काटा जाता है। सद्विचारों की प्रबलता एवं प्रतिष्ठा बढ़ाने और कुविचारों का तिरस्कार एवं बहिष्कार करने से ही उनका अन्त हो सकता है। आत्म निर्माण के लिए इस मार्ग का अवलम्बन करना आवश्यक है।
जिस प्रकार सांसारिक कला कौशल एवं ज्ञान विज्ञान की शिक्षा के लिए व्यवहारिक मार्ग दर्शन करने वाले शिक्षक की आवश्यकता होती है उसी प्रकार आत्म निर्माण के लिये भी एक ऐसे मार्ग दर्शक की आवश्यकता होती है जिसे आत्म निर्माण का व्यक्तिगत अनुभव हो। गुरु की आवश्यकता पर आध्यात्म ग्रन्थों में बहुत जोर दिया गया है, कारण कि अकेले अपने आपको अपने दोष ढूंढ़ने में बहुत कठिनाई होती है। अपने आप अपने दुर्गुण दिखाई नहीं देते और न अपनी प्रगति का ठीक प्रकार पता चल पाता है। जिस प्रकार छात्रों के ज्ञान और श्रम का अन्दाज परीक्षक ही ठीक प्रकार लगा सकते हैं इसी प्रकार साधक की आन्तरिक स्थिति का पता भी अनुभवी मार्ग दर्शक ही लगा सकते हैं। रोगी अपने आप अपने रोग का निदान और चिकित्सा ठीक प्रकार नहीं कर पाता उसी प्रकार अपनी प्रगति और अवनति को ठीक प्रकार समझना और आगे का मार्ग ढूंढ़ना भी हर किसी के लिए सरल नहीं होता। इसमें उपयुक्त मार्ग दर्शक की अपेक्षा होती है। प्राचीन काल में आत्म निर्माण की महान शिक्षा हर व्यक्ति के लिए एक नितान्त अनिवार्य आवश्यकता मानी जाती थी और तब गुरु का वरण भी एक आवश्यक धर्म कृत्य था। आज की और प्राचीन काल की अनेक परिस्थितियों और आवश्यकताओं में यद्यपि भारी अन्तर हो गया है फिर भी आत्म निर्माण के लिए उपयुक्त मार्ग दर्श की आवश्यकता ज्यों की त्यों बनी हुई है। जिसने यह आवश्यकता पूर्ण करली उसने इस संग्राम का एक बड़ा मोर्चा फतह कर लिया, ऐसा ही मानना चाहिए।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य 👉 आत्म-निर्माण का पुण्य-पथ

HP

👉 आत्म-निर्माण का पुण्य-पथ

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👉 आत्म-निर्माण का पुण्य-पथ
किस व्यक्ति में क्या दुष्प्रवृत्तियां हैं और उनका निवारण किन विचारों से, किस स्वाध्याय से, किस मनन से, किस चिन्तन से, किस साधन अभ्यास से किया जाय, इसकी विवेचना यहां नहीं हो सकती। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की मनोभूमि में दूसरों की अपेक्षा कुछ भिन्नता होती है और उस भिन्नता को ध्यान में रखकर ही व्यक्ति की अन्तःभूमिका को शुद्ध करने का मार्ग दर्शन संभव हो सकता है। इसी प्रकार किस व्यक्ति में कौन-सी सत्प्रवृत्तियां विकासोन्मुख हैं और उनका अभिवर्धन करने के लिए इस प्रकार का स्वाध्याय, सत्संग, मनन, चिन्तन, ध्यान, संकल्प एवं अभ्यास आवश्यक है इसका विवेचन भी लेख रूप में नहीं हो सकता क्योंकि व्यक्ति की मनोभूमि का स्तर पहचान कर ही उनका भी निर्णय हो सकना संभव है।
साधना का उद्देश्य है—मनोभूमि का परिष्कार। आत्मा के गुह्य गह्वर में बहुत कुछ ही नहीं सब कुछ भी भरा हुआ है। परमात्मा की सारी सत्ता एवं शक्ति उसके पुत्र आत्मा को स्वभावतः प्राप्त है। मनुष्य ही ईश्वर का उत्तराधिकारी युवराज है। उसकी संभावनाएं महान हैं। वह महान पुरुष, नर रत्न, ऋषि महर्षि, सिद्ध समर्थ, देव अवतार सब कुछ है। उसकी सारी शक्तियों को जिन दुष्प्रवृत्तियों ने दबाकर एक निम्न स्तर के प्राणी की स्थिति में डाल रखा है, उन दुष्प्रवृत्तियों को हटाना एक महान पुरुषार्थ है। इसी से सारे भव बन्धन टूटते हैं। इसी से तुच्छता का महानता में परिवर्तन होता है। इसी से आत्मा की परमात्मा में परिणिति होती है। इस प्रकार की सफलता प्राप्त कर सकना अपार धन, बड़ा पद, विस्तृत यश, विपुल बल और अनन्त ऐश्वर्य प्राप्त करने से भी बढ़कर है। क्योंकि यह वस्तुएं तो जीवन काल तक ही सुख पहुंचा सकने में समर्थ हैं पर दुष्प्रवृत्तियों से छुटकारा प्राप्त जीवनमुक्त आत्मा तो सदा के लिए ही अनन्त आनन्द का अधिकारी हो जाता है।

आत्म शुद्धि की साधना, भौतिक दृष्टि से, लौकिक उन्नति और सुख सुविधा की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। इस पथ पर चलने वाला पथिक दिन-दिन इस संसार में अधिकाधिक आनन्द दायक परिस्थितियां उपलब्ध करता जाता है। उसकी प्रगति के द्वार तेजी से खुलते जाते हैं। पारलौकिक दृष्टि से तो यह आत्म शुद्धि की साधना महान पुरुषार्थ ही है। जीवन लक्ष की पूर्ति इसी में है। मुक्ति और स्वर्ग का एक मात्र मार्ग भी यही है।

.... समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 👉 आत्म-निर्माण का पुण्य-पथ

मेरे ख़यालात.. (Jai Pathak)

RAVI KUMAR

#झुकने का अर्थ# #Motivational

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