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Mahesh Koli
जीवन की डोर तेरे हाथों में तू ही सबका पालन कर्ता हम तो सब माटी के पुतले माटी में ही जाकर मिलना ----mahesh koli---- #माटी के पुतले Sonu Mahawar viNaY KuMaR Satyaprem Upadhyay Prajwal Bhalerao h.m. alam siddiqui
Mahesh meena
💂💂💂उनके हौंसले का मुकाबला🤜🤛 ही नहीं है कोई जिनकी कुर्बानी ⚔⚔का कर्ज 🙏🙏हम पर उधार है आज हम इसीलिए खुशहाल😄😄 हैं क्यूंकि सीमा पे जवान 💂💂💂 बलिदान को तैयार है… Mahesh Meena Athinera Raj. अगर माटी के पुतले देह में ईमान जिन्दा हैं, तभी इस देश की समृद्धि का अरमान जिन्दा हैं, ना भाषण से है उम्मीदें ना वादों पर भरोसा हैं, शह
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
नारी सम्मान में दो बात जिसने हमारे वजुद को बनाया धुंधली सी दुनिया हम माटी के पुतले जिसमें साँसे है,धड़कन भी है... कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश भी है मगर हम बन के रह गए है... एक कठपुतली की तरह जो किसी और के इशारों पे नाचते है इठलाते है... और झूठी मुस्कुराहट लिए खिलखिलाते है कभी अच्छी बेटी कभी अच्छी बहन कभी सर्वगुणसम्पन्न बहू कभी सौंदर्य स्वामिनी पत्नी क्यूँ इतना बोझ लेकर चलतें है हम इतनी प्रतिस्पर्धा किस लिए इंसान बनने की इच्छा क्यूँ मर गयी है हमारी इंसानियत जैसे सो गई है... नारी सम्मान में दो बात जिसने हमारे वजुद को बनाया धुंधली सी दुनिया हम माटी के पुतले जिसमें साँसे है,धड़कन भी है... कुछ कर गुजरने की ख्वाहि
Bharat Bhushan pathak
आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझमें पुरुषार्थ। ओ माटी के पुतले सुन तू, सोचे क्यों तू केवल स्वार्थ।। लील रहा जब दानव बेटी, देखे भला क्यों मौन हुआ। अपना कोई पीड़ित ना था,अरे इस कारण गौण हुआ।। अजी वह बस संख्या में एक ,वहाँ पर तुम तो दर्जन थे। नहीं कम शक्ति अच्छाई में, माना अगर वो दुर्जन थे।। अगर साहस से बस हुँकारा,मुँह को कलेजे आ जाते। भय तुम्हें न ही करना था,सुनो वो उलटे भय खाते।। ©Bharat Bhushan pathak आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझ
Bharat Bhushan pathak
आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझमें पुरुषार्थ। ओ माटी के पुतले सुन तू, सोचे क्यों तू केवल स्वार्थ।। लील रहा जब दानव बेटी, देखे भला क्यों मौन हुआ। अपना कोई पीड़ित ना था,अरे इस कारण गौण हुआ।। अजी वह बस संख्या में एक ,वहाँ पर तुम तो दर्जन थे। नहीं कम शक्ति अच्छाई में, माना अगर वो दुर्जन थे।। अगर साहस से बस हुँकारा,मुँह को कलेजे आ जाते। भय तुम्हें न ही करना था,सुनो वो उलटे भय खाते।। ©Bharat Bhushan pathak आज बर्बरता की,नारी पर अत्याचार की एक तस्वीर समक्ष आई,उस पर कुछ भाव रखकर पुरुषार्थ को ललकारना चाहुँगा:- क्या मानव तू है मृतक हुआ,शेष नहीं तुझ
mayank bhushan shrivastava
VATSA
तीजा ये रास्ता, तीजी ये मंजिलें सफर कटता नहीं, कटते नहीं गिले Full poem in Caption 👇 #मंज़िल #हिंदी_कविता #yqbaba #yqdidi तीजा ये रास्ता, तीजी ये मंजिलें सफर कटता नहीं, कटते नहीं गिले तूने ही, तो बनाए, माटी के पुतले सभी, ज
Govind Soni Mandawa
था जब से उसके गर्भ में! तब से प्रेम-करुणा, मानवता का पाठ पढ़ाती है! बच्चे की पहली गुरु कहलाती है! अपने अंश को, हज़ार गुणा दर्द सहकर! इस संसार से रूबरू करवाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! अपने अबोध नादान को, सूखे में सुलाकर, खुद हँसते हँसते गीले में सो जाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! तेल डाल! काजल लगाकर! माटी के पुतले को, चाँद बताती है!! नजर ना लगे लाल को! काला टिका भी लगाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! खुद भूखी रहकर, हमारे लिए प्यार पकाती है! सबको खिला कर, अंतिम ख़ुद खाती है! एक अच्छी रोटी सिक जाए लाल के लिए कई बार उँगलियों में, गर्म जलन भी सह जाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! फटे कपड़ों को सिलने में, सुई की चुभन को भी फूल बताती है! हर लम्हा हमारे लिए सोचती रहती! हमारी सफलता के लिए ईश्वर से, मनोकामनाओं का भण्डार लगाती! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! जो कभी हो जाते बीमार, तो नजर उतारती! लूँण राई करवाती है! रात रात जग कर, जो हम पर अपना ध्यान लगाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! मेरे अंत बुढ़ापे तक वो मुझे नाम से बुलाती है! भले ही कितना बड़ा हो जाऊँ वो मुझे अभी भी बच्चा बताती है!! वो माँ है आज भी मखमल की छड़ी से मार लगाती है! कुछ पल में मोम रूपी, क्रोध पिघलते ही, लाड़ लड़ाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! ज़नाब, यूँही वो माँ थोड़ी कहलाती है! ©Govind Soni Mandawa था जब से उसके गर्भ में! तब से प्रेम-करुणा, मानवता का पाठ पढ़ाती है! बच्चे की पहली गुरु कहलाती है! अपने अंश को, हज़ार गुणा दर्द सहकर! इस सं
नेहा उदय भान गुप्ता
थक गई हूँ जिन्दगी के बोझ से, हे माँ भगवती अब अपनी गोद में मुझको विश्राम दे। बाक़ी अनुशीर्षक ने पढ़े.....👇👇👇👇 थक गई हूँ जिन्दगी के बोझ से, हे माँ भगवती अब अपनी गोद में मुझको विश्राम दे। इस धरा से दूर सुकूं भरी दुनियाँ में, अपनी नेह को कही आराम दे। थक
नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
थक गई हूँ जिन्दगी के बोझ से, हे माँ भगवती अब अपनी गोद में मुझको विश्राम दे। बाक़ी अनुशीर्षक ने पढ़े.....👇👇👇👇 थक गई हूँ जिन्दगी के बोझ से, हे माँ भगवती अब अपनी गोद में मुझको विश्राम दे। इस धरा से दूर सुकूं भरी दुनियाँ में, अपनी नेह को कही आराम दे। थक