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Yudi Shah
People die but, तिम्रा झलझलि यादहरु सम्झी सम्झी रुन खोज छु किन मुटु मान्दैन बिर्सिएर फेरि तिम्रै यादहरु भित्र पुग्छु... ©Yudi Shah तिम्रा झलझलि यादहरु सम्झी सम्झी रुन खोज छु किन मुटु मान्दैन बिर्सिएर फेरि तिम्रै यादहरु भित्र पुग्छु... Yudi Shah Poetry #Memories
Yudi Shah
It was your mistake हामी टाढा थियौ यो किसमतको गल्ती थियोे र हामी भेट्यौ यो हाम्रै गल्ती थियोे तर फेरि हामी टाढियौ यो हाम्रै गल्ती भयो... ✍️ Yudi Shah🇳🇵 हामी टाढा थियौ यो किसमतको गल्ती थियोे र हामी भेट्यौ यो हाम्रै गल्ती थियोे तर फेरि हामी टाढियौ यो हाम्रै गल्ती भयो... ✍️ yudi shah #ourmist
हामी टाढा थियौ यो किसमतको गल्ती थियोे र हामी भेट्यौ यो हाम्रै गल्ती थियोे तर फेरि हामी टाढियौ यो हाम्रै गल्ती भयो... ✍️ yudi shah ourmist #CTL #ourmistakes
read moreLaba Gorkha Poudyal
#छोरा छोरा,भरपुर यौवन बाटनै हाम्रो जाति माथि चतुर दाउपेच खेल्ने शासक र जाति भित्रै रहेका पाखण्डी शोसक हरूलाई ठीक लगाउने अदम्य साहस, विश्वास
#छोरा छोरा,भरपुर यौवन बाटनै हाम्रो जाति माथि चतुर दाउपेच खेल्ने शासक र जाति भित्रै रहेका पाखण्डी शोसक हरूलाई ठीक लगाउने अदम्य साहस, विश्वास #nojotophoto
read morevasundhara pandey
श्री गजानन हिँय धरौं, सुमिरूँ शारदा माय। यह पाती अति गोप है, बांचियो ह्रदय लगाय।। वीरन मेरे पहिचानियो ,यामेंही प्रीति अपार । केहू दिन राखी ना मिले दूजे घर सम्हारात।। जानियो ना बंधन सूत को, एतनोही संदेस रखो सम्हारि ।। सखा तुम्हहिं हौं का कहउँ, तू दीपक हौं छाँह। जिम जिम ज्योति लौ लसे, जिमि तम तल गेहराहि।। " मैं परायी कब हुई" जियत राम को नाम ल्यूँ, मरत राम के धाम। जब लौं ये जीवन चले राखूँ दया धरम को मान।। कशी में विश्वनाथ बसें, द्वारे नंदी सं
" मैं परायी कब हुई" जियत राम को नाम ल्यूँ, मरत राम के धाम। जब लौं ये जीवन चले राखूँ दया धरम को मान।। कशी में विश्वनाथ बसें, द्वारे नंदी सं #yqdidi #Betiyaan #hindisahitya #yqpoetry #Awadhi #bestyqhindiquotes #sahityakaksh
read moreSahitya Vikas Manch
साहित्य विकास मंच के whatsapp group में आज का विषय - रचना भेजने या जुड़ने के लिये - 9714292905 whatsapp number. (साथ ही अनुप्रास अलंकार की जानकारी के लिये यह पोस्ट पढें ) धन्यवाद ©Sahitya Vikas Manch *दैनिक विषयानुसार काव्य सृजन* *दिनांक : 15/03/2021* *वार- सोमवार* *विषय क्रमांक - 44* *विषय - अलंकार* ( अनुप्रास अलंकार ) *परिभाषा -*
*दैनिक विषयानुसार काव्य सृजन* *दिनांक : 15/03/2021* *वार- सोमवार* *विषय क्रमांक - 44* *विषय - अलंकार* ( अनुप्रास अलंकार ) *परिभाषा -* #Light
read moreVikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 24 राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता है इसलिए इसकी पूंछ में तेल से भीगे हुए कपडे लपेट कर आग लगा दो ॥24॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी की पूँछ में राक्षसों द्वारा आग लगाने का प्रसंग रावण हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने का हुक्म देता है पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥ जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई। देखेउँ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥1॥ जब यह वानर पूंछ हीन होकर (बिना पूँछ का होकर) अपने मालिक के पास जायेगा,तब अपने स्वामी को यह ले आएगा॥इस वानर ने जिसकी अतुलित बढाई की है,भला उसकी प्रभुता को मैं देखूं तो सही कि वह कैसा है?॥ राक्षस हनुमानजी की पूँछ में आग लगाने की तैयारी करते है बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना॥ जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥2॥ रावन के ये वचन सुनकर हनुमानजी मन में मुस्कुराए और मन में सोचने लगे कि मैंने जान लिया है कि इस समय सरस्वती सहाय हुई है क्योंकि इसके मुंह से रामचन्द्रजी के आने का समाचार स्वयं निकल गया॥तुलसीदास जी कहते है कि वे राक्षस लोग रावण के वचन सुनकर वही तैयारी करने लगे अर्थात तेल से भिगो भिगोकर कपडे उनकी पूंछ में लपेटने लगे॥ हनुमानजी पूँछ लम्बी बढ़ा देते है रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥ कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥3॥ उस समय हनुमान जी ने ऐसा खेल किया कि अपनी पूंछ इतनी लंबी बढ़ा दी कि जिसको लपेटने के लिये नगरी में कपडा, घी व तेल कुछ भी बाकी न रहा॥नगर के जो लोग तमाशा देखने को वहां आये थे,वे सब बहुत हँसते हैं॥ राक्षस हनुमानजी की पूँछ में आग लगा देते है बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥ पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघु रुप तुरंता॥4॥ अनेक ढोल बज रहे हे, सब लोग ताली दे रहे हैं,इस तरह हनुमानजी को नगरी में सर्वत्र फिरा कर फिर उनकी पूंछमें आग लगा दी॥हनुमानजी ने जब पूंछ में आग जलती देखी तब उन्होने तुरंत बहुत छोटा स्वरूप धारण कर लिया॥ हनुमानजी छोटा रूप धरकर बंधन से छूट जाते है निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं। भई सभीत निसाचर नारीं॥5॥ और बंधन से निकल कर पीछे सोने की अटारियों पर चढ़ गए,जिसको देखते ही तमाम राक्षसों की स्त्रीयां भयभीत हो गयी॥ आगे शनिवार को ...., विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 933 से 944 नाम 933 अनन्तश्रीः जिनकी श्री अपरिमित है 934 जितमन्युः जिन्होंने मन्यु अर्थात क्रोध को जीता है 935 भयापहः पुरुषों का संस्कारजन्य भय नष्ट करने वाले हैं 936 चतुरश्रः न्याययुक्त 937 गभीरात्मा जिनका मन गंभीर है 938 विदिशः जो विविध प्रकार के फल देते हैं 939 व्यादिशः इन्द्रादि को विविध प्रकार की आज्ञा देने वाले हैं 940 दिशः सबको उनके कर्मों का फल देने वाले हैं 941 अनादिः जिनका कोई आदि नहीं है 942 भूर्भूवः भूमि के भी आधार है 943 लक्ष्मीः पृथ्वी की लक्ष्मी अर्थात शोभा हैं 944 सुवीरः जो विविध प्रकार से सुन्दर स्फुरण करते हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 24 राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता
🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 24 राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता #समाज
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