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सुसि ग़ाफ़िल
सैकड़ों रेखाएं, अजीबोगरीब आकृतियां, त्रिभुज, वृत्ताकार, गोलाकार, समांतर चलती हुई ट्रेन की पटरी, षट्भुज, अजीबोगरीब सुनसान रास्ते, फूलों से सटे कमरे, कीचड़ से निकलते हवा के बुलबुले, खाली पड़े डब्बे, लाल आंखें, सुजा हुआ चेहरा, दीमक के घर, टेडी मेडी टहनियां, हृदय के बीच से गुजरती तरंगे, लाल कपड़ा, चमकती हुई बिजलियां इन सब को छोड़कर अटक जाता है मेरा मन एक बिंदु पर वह बिंदु मेरे माथे पर ठुकी कील के बिल्कुल नीचे है! मुझे महसूस होता है यहां पर जख्म का जन्म हुआ है | सैकड़ों रेखाएं, अजीबोगरीब आकृतियां, त्रिभुज, वृत्ताकार, गोलाकार, समांतर चलती हुई ट्रेन की पटरी, षट्भुज, अजीबोगरीब सुनसान रास्ते, फूलों से स
atrisheartfeelings
कुछ महत्वपूर्ण बातें .... Please read in caption.... बहुत मेहनत के बाद यह चिन्ह तैयार किया हैं अतः आप से निवेदन हैं कि आप इसे हर students से सहभागिता करें...*✍🏻✍🏻✍🏻 1) + = जोड़
shaifali thewriter
✨🙏 " स्त्री " 🙏✨ 🔺🔺 त्रिभुज कविता 🔺🔺 सुनो तुम हो सदैव वंदनीय हो चाहे कोई स्वरूप गंगा बन कभी निर्मल करतीं बन सरस्वती जीवन में स्वर भरतीं रिद्धि बन रिक्तता को पूर्णता में बदलती जो बन आओ सिद्धि असामान्य कौशल भरतीं धर रूप गौ माता का नस नस में क्षीर की शक्ति देतीं वात्सल्य बरसा कर सब पर अपना तुम जीवन सुदृढ करतीं बन गौरी सी संगिनी हम पुरुषों की तुम पग पग में सरगम भरतीं तुम ही कृष्णप्रिया वृषभानु दुलारी कृष्ण के अस्तित्व को सम्पूर्ण करतीं हे स्त्री !! तुम ही तो विष्णुप्रिया चंचला लक्ष्मी हो सुख और समृद्धि की दाता तुम बिन यज्ञ न होते जगत में कहीं भी न ही अन्य कोई भी पुण्य अर्जित हो पाता ©shaifali thewriter त्रिभुज कविता..... स्त्री #Streaks #DailyStories #Nojoto #Women #RESPECT #Feel
Sunita D Prasad
*मुक्ति द्वार.....* --सुनीता डी प्रसाद💐 *मुक्ति द्वार.....* मेरी उन्मुक्तता का द्वार है.. मेरी कविता..। मुझमें, मेरे,अव्यक्त का उद्गार है.. मेरी कविता..।। मेरी कविता ने जब भी लिख
R.S. Meena
क्या था, क्या हो रहा है, संगठित करने वाला ही, खण्डित हो रहा है। बिना सुने पक्ष-विपक्ष, मन-कल्पित विचार ढो रहा है। नि:स्वार्थ भाव पर छाया कोहरा, 'सर्वहित' शब्दों से बो रहा है । न्यून से अधिक कोण में, समकोण कहीं खो रहा है। क्या था, क्या हो रहा है, संगठित करने वाला ही, खण्डित हो रहा है। ये सब देखकर, बादल भी रो रहा है। संगठित करने वाला ही, खण्डित हो रहा है। क्या था, क्या हो रहा है, संगठित करने वाला ही, खण्डित हो रहा है। बिना सुने पक्ष-विपक्ष, मन-कल्पित विचार ढो रहा है। नि:स्वार्थ भाव पर छाया कोह
Sangeeta Patidar
दिल से तुझको जोड़ सीख रही हूँ, मैं धीरे-धीरे प्यार का जोड़, हस्त पर हो हमारे नाम की रेखा, समकोण हो प्यार का मोड़। शून्य सी बिंदी होगी जब मेरे भाल पर अनगिनत बढ़ेगा शृंगार, प्रेम के प्रेमय से जन्मों-जन्मों का जुड़ेगा अटूट बंधन का तार। आयत से आशियाने में गूँजे प्रेम-धुन, तालमेल का देंगे भाग, बिंदुरेख में प्रतिदिन मैं दरसाऊँ हम दोनों का मधुरिम अनुराग। Thank you so much My Dear Mathematician 😊😇 Rest Zone Competition Poem शीर्षक - गणितीय प्रेम शैली - रोमांस दिल से तुझको जोड़ सीख रही हूँ, मै
Swarima Tewari
"आओ कि फिर गले मिलना है तुमसे!" (full in caption) Mathematical hug day❤️📏📐#Repost😃 एक बिंदु से शुरू करें, घूमें और इक वृत्त बनाये, वृत्त जहाँ ख़तम होता है, वहाँ तलक़ घूमते हैं, आओ वहीं फिर
Naveen
**Math Se Pyaar** Physics, Chemistry कुछ समझ ना आए, मन मेरा सिर्फ math को चाहे ! Zero बना शुरूआत का कारण , समझ ना आए तो रटलो उदाहरण ! औसत की हम बात करते है , जो बस योगफल, आंकड़ों में ढलते है ! Physics, Chemistry कुछ समझ ना आए, मन मेरा सिर्फ Math को चाहे ! की LHS, RHS का सब खेल है, थोड़ा LCM, HCF का भी मेल है ! लाभ और हानि का Chapter कमाल है, वर्ग एवम घनमुल का सवाल, बवाल है ! Physics, Chemistry कुछ समझ ना आए, मन मेरा सिर्फ Math को चाहे ! Trigonometric की जब भी बात होगी, इसकी trick से हर मुस्किल आसान होगी ! त्रिभुज , चर्तुभुज तो कभी वर्ग पढ़ते है , हर Chepter आसान , तो कभी Teacher से पीटने के कारण बनते है ! Physics, Chemistry कुछ समझ ना आए, मन मेरा सिर्फ Math को चाहे ! ©Naveen Diariess Physics, Chemistry कुछ समझ ना आए, मन मेरा सिर्फ math को चाहे ! Zero बना शुरूआत का कारण , समझ ना आए तो रटलो उदाहरण ! औसत की हम बात करते है
JALAJ KUMAR RATHOUR
कई दिन बीत गए तुमसे मिले हुए।अब तो तुम्हारी तस्वीर भी मेरी आंखो के सामने धुंधली सी नजर आती है।पता नही किस मंजर से होकर गुजर रहा है मेरा जीवन। कभी कभी लगता है कि तुम जब करीब थी तो सारी दुनिया अपनी थी और आज सारी दुनिया दुश्मनों सा व्यवहार करती है। हमारा जीवन किसी बच्चे और उसके बचपन सा हो गया है। जब करीब था तब कद्र ना रहती थी और आज जब कद्र है तो पास नही हैं।सच बताऊं कभी कभी पास होना दूरियों से ज्यादा दर्द देता है ।तुम्हारी हंसी देख आज भी पुराने दिन याद आ जाते हैं।तुमने ही तो सिखाया था रातों को जागना।अपने सपनों के पीछे भागना।आज जब सपनो के पीछे दौड़ रहा हूं तो तुमसे दूर होता जा रहा हूं।सच बताऊं तो दो प्रेम करने वालों की जिंदगी के रास्ते, त्रिभुज के जैसे होते हैं जहां दोनो की कोशिशों के वर्ग का योग, उनके सपनो के पूरे होने के वर्ग के बराबर होता है। ...#जलज कुमार ©JALAJ KUMAR RATHOUR कई दिन बीत गए तुमसे मिले हुए।अब तो तुम्हारी तस्वीर भी मेरी आंखो के सामने धुंधली सी नजर आती है।पता नही किस मंजर से होकर गुजर रहा है मेरा जीव