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Kamlesh Kandpal
जानवर की वृतियाँ नहीं बदलती शेर, शेर रहता हैं, चील भी चील। भूख लगने पर जानवर हैं खाता, इंसान भरे पेट में सब जाता हैं लील। राक्षस, चींटी, हाथी, भेड़िया, चीता बन जाने की वृति में हैं इंसान सक्षम जानवर सदा जानवर ही रहते वृति से भी इंसान वृति महान से भी बना देती हैं अधम। जानवर, जानवर ही रहता हैं अगर उठे ना इंसान गिरकर बन जाता हैं जानवर भी। विवेक जागृत न हुआ तो पशु, पक्षी कुछ भी विवेक जागृत कर ले तो बन जाता हैं ईश्वर भी। ©Kamlesh Kandpal #वृतियाँ
मेरे ख़यालात.. (Jai Pathak)
दुःख-सुःख जैसा कुछ नहीं सब मनोवृति की अवस्था है जो अपने मुताबिक वो सुःख और जो मन को ठीक न लगे वो दुःख। इसलिए ज्ञानियों ने सम-अवस्था की चर्चा कि है। ©Jai Pathak #वृति
Kulbhushan Arora
*गीता ज्ञान का राजपथ* भीतर छिपी कौरवों सी, असंख्य आसुरी वृतियां, कितनी अधिक हो चाहे, भीतर ही रहती है सदा, सद्वृतियों की अल्प्सेना, पांडवों की सशक्त सेना *कृष्ण* के नेतृत्व में, सदाअपने *कृष्ण* के, संपर्क में सचेत रहिए, अपनी अल्प सेना को, सदा संगठित रखिए, सब महाभारत में, विजय पाओगे निश्चित।। *गीता ज्ञान का राजपथ* भीतर छिपी कौरवों सी, असंख्य आसुरी वृतियां, कितनी अधिक हो चाहे, भीतर ही रहती है सदा, सद्वृतियों की अल्प्सेना, पांडवों क
Kulbhushan Arora
*गीता*...मेरे लिए हो सकता है आपमें से कोई भी, मेरी बातों से सहमत न हो। मैंने कभी भी *गीता* को उस दृष्टि से नहीं देखा है, कि *गीता* को एक सुंदर से वस्त्र में बांध कर एक साफ सुथरी जगह पर उस तरह सुस्सजित किया जाए.... शेष अनुशीर्षक में पढ़िए 🙏 *गीता*...मेरे लिए हो सकता है आपमें से कोई भी, मेरी बातों से सहमत न हो। मैंने कभी भी *गीता* को उस दृष्टि से नहीं देखा है, कि *गीता* को एक स
Rupam Jha
❤गांव❤🏠 गांव की वसुधा भी स्नेहिल है एवं है अपरिमित, सूरज की पहली किरणें यहाँ करता है मुख-मंडल ओजित, सुप्रभात की बेला में यहाँ भँवरे गाते सुंदर गीत, आमों की डाली पर बैठी कोयलें करती वातावरण गूँजीत, मधुर स्वरों में गीत सुनाकर करती तन-मन को हर्षित, तितलियों के मीत-प्रीत यहाँ करती बागों को सुरभित, और रंग-बिरंगी पुष्पों की खुशबू करती पर्यावरण सुगंधित, पंछियों के कलरव कानों में गूँजते,अहा!कितना अद्भुत है प्रकृति, कलकल करती नदियाँ यहाँ समझाती हमें जीवनगति, पेड़ हरे-भरे देता है हमें वायु एकदम प्रदूषण रहित, और लहराती फसलें खेतों को करती है शोभित, इतने मनमोहक प्रकृति पर करते हैं हम तन-मन अर्पित, बृह्ममुहूर्त में यहाँ सब जाग जाते,होता है जिससे शरीर का हित, स्त्रीगण की टोली सुबह मंदिर को जाती,करती हैं वो पूजा नित, देवालयों की सांझ-आरती सुन,मन-मस्तिष्क को होती है शांति की अनुभूति, इन सारे सकारात्मकता के कारण होता है सबका भाग्य उदित, बड़े-बुजुर्गों की हँसी-ठिठोली करता है मन को आह्लादित, उनके आशीर्वादों से ही तो होता है हमारा जीवन प्रकाशित, इतने सारे सदगुणों से गांव रहता है सुसज्जित, गांव की महिमा है अगम्य-अपार,सब हैं इसकी खूबी से परिचित, गांव स्नेहों से है भरा,ये बात तो है सर्वविदित, यहां की इस सुंदरता को देख अंतर्मन भी होता है चकित, वजह यही है गांव से स्नेह का,गांव है मेरे ह्र्दयपटल पर अंकित!!💓 PLEASE READ FULL QUOTE HERE🙏👇🤓 ममत्व जहाँ कण-कण में रहता निहित, जहाँ आते ही होता है प्रसन्न चित्त, मिट्टी की सौंधी खुशबू से जहाँ मन होता है
Anita Saini
मैं कामिनी हूँ मैं दामिनी भी मैं स्त्री हूँ मैं सृष्टि भी मैं श्रुति हूँ मैं स्मृति भी मैं तृप्ति हूँ मैं तृष्णा भी मैं प्रेम हूँ किंचित घृणा भी मैं उषा हूँ मैं निशा भी मैं दशा भी हूँ दिशा भी मैं उत्त्पति हूँ मैं विकास भी
lalitha sai
वो बंद कमरा..... कुछ जीवन के कुछ अनकही कहानियाँ ये है बंद कमरा...... (अनुशीर्षक) हर लड़की लिए अपने युक्त दशा में पहले फूल खिलते ही वो बंद कमरा... हल्दी कुमकुम से भरी महोल्ले के सभी महिलाओ से गीत से शुरू होकर ग्यारहा दिन तक
vishnu prabhakar singh
कभी तो साथ होंगे हम संबंध से और आगे आभाव में टीस के स्मृति विहीन दया वृति की उपेक्षा में लाभ को छोड़ते शुभ को मानते कभी तो साथ होंगे हम। कभी तो साथ होंगे हम व्यवस्था से विचार की और आभाव में प्रविधि के प्रकृति रहित कृषि पर पूर्णतः आश्रित जमा को छोड़ते जीविका को मानते कभी तो साथ होंगे हम। दूरदृष्टि एक मृगतृष्णा कभी तो साथ होंगे हम संबंध से और आगे आभाव में टीस के स्मृति विहीन दया वृति की उपेक्षा में लाभ को छोड़ते
Rakesh Ranjan Nirala
CalmKrishna
.............. ©CalmKrishna स्त्री-पुरुष से ऊपर भी कुछ हैं हम। कब तक सिर्फ़ प्रकृति/वृति/माया का काम आसान करते रहेगें? नारी पुरुष की स्त्री, पुरुष नारी का पूत यहि ज्ञा