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Stories related to थके हारे परिंदे

theABHAYSINGH_BIPIN

#GoodNight इस तबाही का जश्न कौन मनाएगा, टूटा है दिल मेरा, जाम कौन उठाएगा। सुना है मैखाने हर दर्द का मर्ज हैं यारों, वहाँ तक मुझको कौन ले जा

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White इस तबाही का जश्न कौन मनाएगा,
टूटा है दिल मेरा, जाम कौन उठाएगा।
सुना है मैखाने हर दर्द का मर्ज हैं यारों,
वहाँ तक मुझको कौन ले जाएगा।

ज़ख़्मी दिल की दवा कहाँ मिलती है,
मुझे भी उस गली का पता बताएगा।
जहाँ टूटे अरमानों का सवेरा होता है,
जो ग़म के अंधेरों में चिराग़ जलाएगा।

ग़म का समंदर यहाँ गहरा है बहुत,
डूबते दिल को साहिल कौन दिखाएगा।
जो हारे हैं मोहब्बत की बाज़ी यहाँ,
उनका मुक़द्दर फिर कौन बनाएगा।

इन रास्तों में अकेले ही चलना है अब,
साथ कोई नहीं जो साथ निभाएगा।
फिर भी दिल में यही एक सवाल बाकी है,
इस तबाही का जश्न कौन मनाएगा।

©theABHAYSINGH_BIPIN #GoodNight 
इस तबाही का जश्न कौन मनाएगा,
टूटा है दिल मेरा, जाम कौन उठाएगा।
सुना है मैखाने हर दर्द का मर्ज हैं यारों,
वहाँ तक मुझको कौन ले जा

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर आसमान खुद झुककर सलाम करता है, हम किसी किस्मत का दस्तूर नहीं करते। अपनी मेहनत से सारा जहां बदलते हैं, किसी की बंदिशों का सामना

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आसमान खुद झुककर सलाम करता है,
हम किसी किस्मत का दस्तूर नहीं करते।

अपनी मेहनत से सारा जहां बदलते हैं,
किसी की बंदिशों का सामना नहीं करते।

खुद पर यकीन, किसी और पर गुरूर नहीं करते,
सपनों को सच करने का खुद ही दूर नहीं करते।

ऊंचाई पर जुनून का घर बसता है,
परिंदे हैं, मगर फिजूल का शोर नहीं करते।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
आसमान खुद झुककर सलाम करता है,
हम किसी किस्मत का दस्तूर नहीं करते।

अपनी मेहनत से सारा जहां बदलते हैं,
किसी की बंदिशों का सामना

नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर जिधर जाते हैं सब परिंदे, उधर जाना अच्छा होता, अगर ये सरहदों का फासला मिटाना अच्छा होता। फिज़ाओं में बहती है एक सी खुशबू हर तरफ

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जिधर जाते हैं सब परिंदे, उधर जाना अच्छा होता,
अगर ये सरहदों का फासला मिटाना अच्छा होता।

फिज़ाओं में बहती है एक सी खुशबू हर तरफ,
हर दिल में मोहब्बत का घर बसाना अच्छा होता।

न होता ये बंटवारा जमीं और आसमां का,
हर कोने में बस इंसां बसाना अच्छा होता।

परिंदों की तरह बेखौफ उड़ते रहते हम भी,
हर ख्वाब को अपना बनाना अच्छा होता।

अगर न होते ये फर्क मज़हब और वतन के,
हर साया बस अमन का ठिकाना अच्छा होता।

तू भी मेरा, मैं भी तेरा, ये रिश्ता हो बस,
हर जश्न में शामिल ज़माना अच्छा होता।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
जिधर जाते हैं सब परिंदे, उधर जाना अच्छा होता,
अगर ये सरहदों का फासला मिटाना अच्छा होता।

फिज़ाओं में बहती है एक सी खुशबू हर तरफ

रंगरेज़

उलझी हुई सी जिंदगी, थके हुए से हम, तुमसे थोड़ी गुफ्तगू, और सारे मसले खतम.... Nîkîtã Guptā nayan Rakesh Srivastava puja udeshi Nîkîtã Gup

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उलझी हुई सी जिंदगी, थके हुए से हम,

तुमसे थोड़ी गुफ्तगू, और सारे मसले .
खतम....

©रंगरेज़ उलझी हुई सी जिंदगी, थके हुए से हम,

तुमसे थोड़ी गुफ्तगू, और सारे मसले खतम.... Nîkîtã Guptā  nayan  Rakesh Srivastava  puja udeshi Nîkîtã Gup

आधुनिक कवयित्री

आजाद परिंदे.........।

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नवनीत ठाकुर

#नवनीतठाकुर दोस्ती गर की तो साथ छोड़ा नहीं कभी, हम वो परिंदे हैं जो उजड़ी हुई शाखों पर घरौंदे बनाते फिरते हैं। हाथ जो पकड़ ले, तो फिर उसे छो

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दोस्ती गर की तो साथ छोड़ा नहीं कभी,
हम वो परिंदे हैं जो उजड़ी हुई शाखों पर घरौंदे बनाते फिरते हैं।
हाथ जो पकड़ ले, तो फिर उसे छोड़ते नहीं।
दूरी बेशक हो, साथ का एहसास, कम कभी होने देते नहीं।"

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर दोस्ती गर की तो साथ छोड़ा नहीं कभी,
हम वो परिंदे हैं जो उजड़ी हुई शाखों पर घरौंदे बनाते फिरते हैं।
हाथ जो पकड़ ले, तो फिर उसे छो

Umesh

🌸हारे के सहारे की जय🌸

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gudiya

#NatureQuotes #मातृभूमि #nojotohindi nojotophoto #nojoyopoetry आज इस्लाम जब मैं भेजता खड़ा हूं आसमान और धरती के बीच

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Nature Quotes आज इस्लाम जब मैं भेजता खड़ा हूं आसमान और धरती के बीच 
तब तब अचानक मुझे लगता है यही तो तुम हो मेरी मां मेरी मातृभूमि 

धान के पौधों ने तुम्हें इतना ढक दिया है कि मुझे रास्ता तक नहीं सुझता 
और मैं मेले में कोई बच्चे सा दौड़ता हूं तुम्हारी ओर 
जैसे वह समुद्र जो दौड़ता आ रहा है छाती के सारे बटन खोले हाहाता 


और उठती हैं शंख ध्वनि कंधराओं के अंधकार को हिलोडती 
यह बकरियां जो पहली बूंद गिरते ही भाग और छप गई पेड़ की ओट में 

सिंधु घाटी का वह सेंड चौड़े पत्ते वाला जो भीगा जा रहा है पूरी सड़क छेके 
वे मजदूर जो सुख रहे हैं बारिश मिट्टी के ढीले की तरह

 घर के आंगन में वह  नवोढ़ा भीगती नाचती और 
काले पंखों के नीचे कौवों के सफेद रोए तक भीगते 
और इलायची के छोटे-छोटे दाने इतने प्यार से गुथंम गुत्था यह सब तुम ही तो हो 

कई दिनों से भूखा प्यासा तुम्हें ही तो ढूंढ रहा था चारों तरफ
 आज जब भी की मुट्ठी भर आज अनाज भी भी दुर्लभहै 
तब चारों तरफ क्यों इतनी बाप फैल रही है गरम रोटी की 
लगता है मेरी मां आ रही है नकाशी दार रुमाल से ढकी तश्तरी में 

खुबानीनिया अखरोट मखाने और काजू भरे
 लगता है मेरी मां आ रही है हाथ में गर्म दूध का गिलास लिए 
यह सारे बच्चे तुम्हारी रसोई की चौखट पर कब से खड़े हैंमां 
धरती का रंग हरा होता है फिर सुनहला फिर धूसर 
छप्परों से इतना धुआं उठता है और गिर जाता है 
पर वहीं के वहीं हैं घर से निकले यह बच्चेतुम्हारी देहरी पर 
सर टेक सो रहे हैं मां यह बच्चे कालाहांडी के 
यह आंध्र के किसानों के बच्चे यह पलामू के पटन नरोदा पटिया के 

यह यदि यह यतीमअनाथ यह बंदहुआ 
उनके माथे पर हाथ फेर दो मां 
इनके भीगी के सवार दो अपने श्यामलहाथों से 
तुम कितनी तुम किसकी मन हो मेरी मातृभूमि 
मेरे थके माथे पर हाथ फेरती तुम ही तो हो मुझे प्यार से तख्ती और मैं भेज रहा हूं 
नाच रही धरती नाच आसमान मेरी कल पर नाच नाच मैं खड़ा रहा भेजता बीचो-बीच।
-अरुण कमल

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आज इस्लाम जब मैं भेजता खड़ा हूं आसमान और धरती के बीच
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