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Naveen Mahajan
समकोण वो जो दिल में घोंपी थी कातिल कटार थी समकोण पर थी आर-पार थी। #NaveenMahajan #NewAgeMathematics समकोण
R.S. Meena
क्या था, क्या हो रहा है, संगठित करने वाला ही, खण्डित हो रहा है। बिना सुने पक्ष-विपक्ष, मन-कल्पित विचार ढो रहा है। नि:स्वार्थ भाव पर छाया कोहरा, 'सर्वहित' शब्दों से बो रहा है । न्यून से अधिक कोण में, समकोण कहीं खो रहा है। क्या था, क्या हो रहा है, संगठित करने वाला ही, खण्डित हो रहा है। ये सब देखकर, बादल भी रो रहा है। संगठित करने वाला ही, खण्डित हो रहा है। क्या था, क्या हो रहा है, संगठित करने वाला ही, खण्डित हो रहा है। बिना सुने पक्ष-विपक्ष, मन-कल्पित विचार ढो रहा है। नि:स्वार्थ भाव पर छाया कोह
Sangeeta Patidar
दिल से तुझको जोड़ सीख रही हूँ, मैं धीरे-धीरे प्यार का जोड़, हस्त पर हो हमारे नाम की रेखा, समकोण हो प्यार का मोड़। शून्य सी बिंदी होगी जब मेरे भाल पर अनगिनत बढ़ेगा शृंगार, प्रेम के प्रेमय से जन्मों-जन्मों का जुड़ेगा अटूट बंधन का तार। आयत से आशियाने में गूँजे प्रेम-धुन, तालमेल का देंगे भाग, बिंदुरेख में प्रतिदिन मैं दरसाऊँ हम दोनों का मधुरिम अनुराग। Thank you so much My Dear Mathematician 😊😇 Rest Zone Competition Poem शीर्षक - गणितीय प्रेम शैली - रोमांस दिल से तुझको जोड़ सीख रही हूँ, मै
कवि राहुल पाल 🔵
मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी उनकी संगामी रचना में हम ढ़लते रहे !१! वो प्रमेय जैसे हमको सताते रहे हर एक बिंदु पर चाप हम लगाते रहे व्यास की आस थी वो त्रिज्या बने , हम परिधि पर बस चक्कर लगाते रहे !२! जब भी सोचा उन्हें संग जोड़ने को वो लगातार हमे खुद से घटाते रहे , जाने कैसे वो दिन प्रतिदिन दूने हुए हम गुणनखण्ड में ही टूट जाते रहे !३! वो न देखे हमारी तरफ अब कभी , साथ हर बिदु का उनसे निभाते रहे, वो थे हमारे हर केंद्र का केंद्र बिंदु , बस हर डगर डग को उनसे मिलाते रहे ..!४! जब मैं न्यून बना,वो अधिकतम बने कोंण सम्भव दशा से दूर जाते रहे विकर्ण थे मेरी इस जिंदगी का जो उनसे खुद को कई बार हम मिलाते रहे !५! वो अंक बने और मैं बना शून्य सा , वो दशमलव को लगा भूल जाते रहे प्यार के ब्याज का जब बंटवारा हुआ लाभ में वो रहे,हानि को खुद पाते रहे !६! तब सरल कोंण सी थी उनसे नजरें मिली आज समकोण से वो नजरें झुकाते रहे .. मैं बिना लक्ष्य की "राहुल "शब्द रेखा बना बस अनन्त यादें अनन्त तक ले जाते रहे !७! ~~((( गणित की विधा में प्रेम )))~~ मैं इधर था पड़ा ,वो उधर थी खड़ी प्रेम में गोले जैसे हम लुढ़कते रहे इश्क की जीवा,प्रेम का आधार बनी उनकी