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Abhay Bhadouriya
वीर क्षत्राणी हाडी रानी की वीर गाथा (अनु शीर्षक में पढ़ें) प्रेम की बहुत सारी कहानियां पढ़ी होंगी आपने पर समर्पण और वीरता की ये कहानी अद्भुत है प्रेम, बलिदान ,समर्पण का इससे बेहतर उदाहरण शायद ही क
Pnkj Dixit
🚩🇮🇳🚩 मनुष्य को राजहंस की तरह नीर-क्षीर विवेक करना चाहिए और जो उत्कृष्ठ है,उसी को हठपूर्वक ग्रहण करना चाहिए। जिस प्रकार सूर्य मे गर्मी और रोशनी दो गुण हैं उसी प्रकार सत्य में दो प्रवृत्तियों का समन्वय है एक यथार्थता,दूसरी मंगलोन्मुख न्यायनिष्ठ दूरदर्शिता। इन दोनों का समन्वय ही पूर्ण सत्य है, एकांगी तो अधूरा रहता है । जय श्री राम 🚩 ©Pnkj Dixit 🚩🇮🇳🚩 मनुष्य को राजहंस की तरह नीर - क्षीर विवेक करना चाहिए और जो उत्कृष्ठ है , उसी को हठ - पूर्वक ग्रहण करना चाहिए । जिस प्रकार सूर्य मे गर्
Abhishek Rajhans
हे द्रोण हे द्रोण आपने तनिक भी न विचार किया आखिर कैसा ये व्यवहार किया शिक्षा बंधने से कहां बंधती है इसकी गति किसी के रोकने से कहां रुकती
Dilip Singh Harpreet
सरस्वती वंदना प्रकृति - राजस्थानी करूँ छू परणाम थने , ओ मां शारदे दे दे अस्यो बरदान , जीवण ने तार दे ज्ञान को म्हूँ दीयो जळाऊँ सुबे - शाम थने मनाऊँ नुंवा - नुंवा सबदा स्यूँ करूँ छू थारी आरती ओ मां भारती ... ओ मां भारती अेक हाथ म्ह माळा साजे , दोय हाथ म्ह बीणा गँवारा ने ज्ञान दान दे , कर दे छै परवीणा राजहंस री करे सँवारी , पुष्कर म्ह बिराजती ओ माँ भारती ... ओ माँ भारती कळम ने असी चाळ दे माँ करम ने अस्यो ढाळ दे माँ स्याही ने अस्यो रंग दे बरमाणी अेक - अेक मुद्दा पे, जावे रंग डारती ओ माँ भारती .. ओ माँ भारती दिलीप सिंह हाड़ा "हरप्रीत शशांक" कोटा, राजस्थान सरस्वती वंदना प्रकृति - राजस्थानी करूँ छू परणाम थने , ओ मां शारदे दे दे अस्यो बरदान , जीवण ने तार दे ज्ञान को म्हूँ दीयो जळाऊँ सुबे - शाम
Pnkj Dixit
#OpenPoetry मनुष्य को राजहंस की तरह नीर - क्षीर विवेक करना चाहिए और जो उत्कृष्ठ है , उसी को हठ - पूर्वक ग्रहण करना चाहिए । जिस प्रकार सूर्य मे गर्मी और रोशनी दो गुण है , उसी प्रकार सत्य में दो प्रवृत्तियों का समन्वय है , एक - यथार्थता , दूसरी -- मंगलोन्मुख न्यायनिष्ठ दूरदर्शिता । इन दोनों का समन्वय ही पूर्ण सत्य है, एकांगी तो अधूरा रहता है । ।। जय श्री राम 🚩🕉️ ०२/०८/२०१९ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' मनुष्य को राजहंस की तरह नीर - क्षीर विवेक करना चाहिए और जो उत्कृष्ठ है , उसी को हठ - पूर्वक ग्रहण करना चाहिए । जिस प्रकार सूर्य मे गर्मी
Abhishek Rajhans
शीर्षक ----मुझे न याद आया इस शहर की रोशनी में मैं माटी के दिये जलाना भूल आया मोमबत्तियों को कहीं यूँ ही सिसकती छोड़ आया मैं अपने गांव का घर क
Abhishek Rajhans
ज़िन्दगी को तसल्ली किस बात की दूँ जिन्दगीं तसल्ली भर जी चुका हूँ अब और रब से मांगू क्या हाथ फैलाकर अब तो मुट्ठी बंद कर चुका हूँ अरमानो के कारवां के साथ कितना चलूँ अब चलते-चलते थक चुका हूँ बदनामियों के कालिखे और कितने लगाऊँ आज सुबह ही तो शक्ल धो चुका हूँ वक़्त अक्सर सिरहाने बैठकर बोलता है मुझसे कुछ और स्याही बहा दो अपनी कलम से मैं सारे किस्से तो ज़िन्दगी के लिख चुका हूँ अब और रंग कितने भरूं ज़िन्दगी में सारे बाल धूप में सफ़ेद कर चुका हूँ अब ख्वाब कोई नया कैसे बुनूं आँखों से ख्वाबो वाली नींद तोड़ चुका हूँ ज़िन्दगी को तसल्ली किस बात की दूँ अब मौत के इंतजार में ज़िन्दगी की करवट बदल चुका हूँ---अभिषेक राजहंस शीर्षक--ज़िन्दगी ज़िन्दगी को तसल्ली किस बात की दूँ जिन्दगीं तसल्ली भर जी चुका हूँ अब और रब से मांगू क्या हाथ फैलाकर अब तो मुट्ठी बंद कर चुका
Abhishek Rajhans
रावण... क्या मात्र एक शब्द है या एक व्यक्तितव जिसने छल से हरण किया था जिसने स्त्री के सतीत्व पर कुठाराघात किया था वो रावण.. कहाँ मरा है अभी तक जितने दशहरा पुतला फूंका उसका उतनी बार उठ खड़ा हुआ है अपने सहस्त्र शरीर में प्राण भर कर राम के वेश में अभिशाप बनकर रावण... वास्तव में एक शब्द नहीं एक व्यक्तित्व हीं है जिसे धारण कर लिया है आज के राम का स्वरुप जो नेस्तनाबूद करना चाहता है एक स्त्री के गौरव को बालिका के रूप में सकुचाई सीता को. बंद कमरे में सिसकती सीतायें भेद नहीं पा रही लक्ष्मण रेखा को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कैसे पुकारे राम को जब रावण ही हो राम के वेश में --अभिषेक राजहंस रावण... रावण… क्या मात्र एक शब्द है या एक व्यक्तितव जिसने छल से हरण किया था जिसने स्त्री के सतीत्व पर कुठाराघात किया था वो रावण..
Abhishek Rajhans
तारीख बदलती रही दिन बीतते रहे और बीत रहा था ये सूरज और चाँद भी पता ही नहीं चला कभी ये वक़्त कैसे बीत रहा कमजोर होते कंधे और कमजोर होती नजर बूढ़ा बना रही मुझे और बढ़ा रही थी ज़िन्दगी की मुश्किलें. ये वक्त जो बेहिसाब बिताया मैंने अपनो के साथ ये मुझे मेरे अपनो से मेरे हिस्से का वक़्त क्यों नहीं मांगता जो मैंने लुटा दिया था उन पर उनकी जरूरतों के लिए जिनकी नन्ही उँगलियाँ पकड कर स्कूल तक छोड़ा मैंने आज वे क्यों मेरा हाथ थाम कर सड़क भी पार नहीं करवाना चाहते. ये वक़्त उन्हें सबक नहीं सीखा सकता जो ज़िन्दगी का सबक भूल गए जो मुझ बूढ़े से उसकी लाठी छीन गए जो मेरी आँखों के तारे थे वो क्यों मेरी आँखों की रौशनी छीन गए क्या उन्हें पाल कर गुनाह किया था मैंने क्या वो ये गुनाह नहीं करेंगे ये वक़्त उन्हें भी सबक सीखाएगा ये वक़्त उन्हें भी बूढ़ा बनाएगा--अभिषेक राजहंस शीर्षक-ये वक़्त सबक सीखाएगा तारीख बदलती रही दिन बीतते रहे और बीत रहा था ये सूरज और चाँद भी पता ही नहीं चला कभी ये वक़्त कैसे बीत रहा कमजोर
Abhishek Rajhans
वक़्त की आंच पर पत्थर भी पिघल जाते है कहकहे टूट कर अश्को में बदल जाते है अरे उम्र भर कौन यहाँ किसका साथ देता है वक़्त के साथ साथ तो ख्याल और जज्बात भी बदल जाते हैं--अभिषेक राजहंस वक़्त की आंच पर पत्थर भी पिघल जाते है कहकहे टूट कर अश्को में बदल जाते है अरे उम्र भर कौन यहाँ किसका साथ देता है वक़्त के साथ साथ तो ख्याल और