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Govindkumar Banjare
"पेड़ को मत काटो, क्योंकि वह भी किसी का घर है। बेघर मत करो चिड़िया को, क्योंकि उन्हें भी डर है।" ©Govindkumar Banjare #चिड़िया
Sunil Kumar Maurya Bekhud
दाने की खोज में आई हूँ दूर से बस इक दरख्वास्त है मेरी हुजुर से थोड़ा सा दाना मिले थोड़ी सी पानी कर दें जो आप जरा सी मेहरबानी चीं चीं कर आपका करूँगी गुणगान दुनियाँ में आपका भी बढ़ जाए मान चार दाने बच्चों के वास्ते ले जाऊंगी उनका भी पेट भरे तो मै सुख पाऊँगी ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #चिड़िया
Shishpal Chauhan
चिड़िया ने छेड़ा तराना, सुबह हो या शाम प्यारा लगे उनका चहचहाना। हमें इन्हें लुप्त होने से है बचाना, प्रकृति का संतुलन है बनाना। सुन ले ये सारा जमाना, इनके प्यार में हो जाना है सबको दीवाना। पेड़ है इनका असली आशियाना, उनको ज्यादा से ज्यादा है लगाना। मुझे याद है उनका घर पर आना, आकर दाना चुग कर उड़ जाना। सुबह होते ही मुंडेर पर आना, मीठे स्वर में गाना गाना। चोंच में तिनके दबाना, फिर वहां घोंसला बनाना। गर्मी में उनका सिसकना, गर्दन टेढ़ी कर देखना। ©Shishpal Chauhan # चिड़िया
kaushik
चिड़िया का चहकना, सुबह-शाम देखना आज भी याद करते हैं पक्षियों को अब बड़े शहरों में फोटो या वीडियो में ही देख लेते हैं ©kaushik #चिड़िया
karthikey poems
ਪੰਛੀ चिड़िया रानी उड़ गई आसमान की सैर पर घूम घूम के थक गई पेड़ पर आकर बैठ गई सोचा उसने ऐसा भी क्यों ना नवनिर्माण करूं लहरा कर पंख पवन में अपनी राह पर चल पड़ी चिड़िया रानी उड़ गई आसमान की सैर पर बारिश हुई तूफान भी आए अपने पथ पर वह टिकी रही तिनका तिनका बुनकर .... उम्मीदों में हुंकार भरी दिन बीते रात हुई ....... चिड़िया ने उड़ान भरी जो देखा सपना घोसले का अब वह साकार करने चली चिड़िया रानी उड़ गई आसमान की सैर पर ©karthikey poems #चिड़िया
sachu bihaniya
चली गई वह उड़कर जो मेरे आंगन में आती थी आते ही दाना खाकर मधुर गीत मुझे सुनाती थी अब कहां हो ढूंढता हूं मैं आकाश बादलों से पूछता हूं मैं विश्वास था मुझे आएगी सुबह शाम को जब वह जाती थी हुआ क्या था उसे किसी ने मना किया था आने को अब क्या हो गया था उसे पहले तो हर बात बताती थी चिड़िया ।
Tanya Dubey
वो पेड़ो पर बैठी चिड़िया, उस वृक्ष को निहारती रही क्यों वो पत्ते पल भर में सूख गए या वर्षो बाद वह अपने घर आई है किसने उजाड़ दिया ये घर उसका किसने देकर आसमा, छीन लिया जहां उसका उस पेड़ तले अब छांव नही उन पंखों में अब उड़ान नहीं वो सहमी , असमंजस में बैठी हुई वो कहा जाए ये कहती हुई क्यों आखों में उसके पानी है क्यों गला उसका सूखा हुआ किसने छीने ख्वाब उसके क्यों मन उसका रूठा हुआ जिस डाली पर बैठी वो ,क्यों वो डाल भी टूट गई मन को तो वह मार चुकी थी अब तन भी हुआ मृत उसका।। ©Tanya Dubey चिड़िया