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Pratibha Dwivedi urf muskan

*मनमर्जी/अनुशासन/राजनीति/गणवेश/हिजाब/शिक्षण संस्थान*
धर्मनिरपेक्षता जिस देश का आधार है ।
सर्वधर्म समभाव जिसका भाव है 
उस देश में शिक्षण संस्थान की चर्चा का विषय हिजाब है !!!
जबकि होना यह चाहिए कि
शिक्षा-शिक्षण कैसा हो ???
अधिगम , शिक्षण विधि क्या हो ?
शिक्षक की योग्यता क्या हो??
शिक्षक चरित्र कैसा हो????
विद्यार्थी अनुशासन कैसा हो ?
बात देखिए कहाँ अटक गई,,
गणवेश में हिजाब हो ?/ ना हो ?
इस छोटी सी बात पर,,
बहस इतनी छिड़ गई,,
कि शिक्षण व्यवस्था ही,,
पूरी बाधित हो गई ।।

जबकि संविधान में शिक्षा और धर्म पहले से ही अलग हैं ।
साथ ही वर्ग विशेष की धार्मिक आस्थाएँ आहत ना हों ।
ये बातें भी समाहित है ।।
इसीलिए सरदार की पगड़ी , हिंदू का कलावा , ईसाई का क्रास ,
 मुस्लिम का हिजाब गणवेश में शामिल ना होकर भी शामिल रहे हैं ।
और सभी विद्यार्थी मिलकर एक संस्था में सँग-सँग पढ़े-बढ़े हैं ।
तो अब अचानक क्या हो गया ??
जो हिजाब पर तूल दे रहे सभी ।
क्यों ?शिक्षा में इस बात पर
राजनीति कर रहे सभी !!!
और अनुशासन के नाम पर बंदिशें थोप रहे सभी 

किसी के सिर और कान ढकने से
कौन सी आफत आ रही??
क्या सर्दी की पोशाक में ये शामिल नहीं होता है ??
अरे करना है तो इतना कर दो 
हिजाब को स्वेच्छा में शामिल कर दो ।
जिसको अनुकूल लगे धारण कर लें प्रतिकूल लगे तो त्याग दें ।
सिर और कान का पहनावा क्यों गणवेश में शामिल करते हो ।
कम से कम इन पर तो सबकी अपनी स्वेच्छा चलने दो ।

विविधताओं का देश है भारत इसे ऐसा ही रहने दो ।
हिल मिल कर सब एक रहें इस बात पर ही तूल दो ।

छोटी-मोटी बातों पर ना आपस में टकरार करो ।
गणवेश को मुद्दा बनाकर ना ज्ञान का बंटाढार करो ।
शिक्षण विधि और तकनीकें  प्रबल बनाकर ,,
बस विद्यार्थियों के भविष्य का श्रृंगार करो ।
बस विद्यार्थियों के भविष्य का श्रृंगार करो ।
लेखिका/कवयित्री-प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान ©
सागर मध्यप्रदेश ( 18 फरवरी 2022 )

©Pratibha Dwivedi urf muskan #हिजाब #गणवेश #यूनिफार्म #अनुशासन #शिक्षा #राजनीति #प्रतिभा #प्रतिभाउवाच #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कान© #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कानकीकलमसे  An

Rekha Gakhar

कोरोना के कारण देश के सभी विद्यालय बंद हैं और विद्यार्थियों के बिना विद्यालय अधूरे से लगते हैं ! हम अध्यापकों को जब भी कोरोना काल में विद्या #Journey #poem #नोजोटो #students #SchoolMemories #coronaeffect

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Divyanshu Pathak

:💕👰👴 क्योंकि वे हर परम्परा को रूढि मानते हैं। आप पुरातनपंथी, दकियानूस और न जाने क्या-क्या पदक प्राप्त कर लेंगे। लेकिन यही लोग कितने खुश हैं #shweta #komal

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आजकल खूब जोर-शोर से सरकारी अभियान चल रहे हैं
कि होने वाले बाल-विवाहों को सख्ती से रोका जाएगा।
मां-बाप को पुलिस की लाठियां खानी पड़ेंगी।
सरकार के किसी अधिकारी को यदि आप यह कह दो कि
इनका असली विवाह तो अठारह साल की उम्र के बाद (गौणा) होता है।
तब तक तो इसे सगाई मान सकते हैं। इस बात पर अधिकारी और समाज
की विकासवादी महिलाएं आपके कपड़े फाड़ देंगे। :💕👰👴
क्योंकि वे हर परम्परा को रूढि मानते हैं। आप पुरातनपंथी, दकियानूस और न जाने क्या-क्या पदक प्राप्त कर लेंगे। लेकिन यही लोग कितने खुश हैं

AB

दिन भर व्यवस्ता और पता नहीं क्या सोचने के बाद जब रात का वक़्त आता है तो एक चुपी ओढे...मैं जितनी व्यस्त दिन को रहती हूँ रात होते होते यह और

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©alps   दिन भर व्यवस्ता और पता नहीं क्या सोचने के बाद जब रात का वक़्त आता है तो एक चुपी ओढे...मैं जितनी व्यस्त दिन को रहती हूँ रात होते होते यह और

AhMeD RaZa QurEsHi

पेपर से कितने तरह के खिलौने बनाया करते थे हम हवाई जहाज़, नाव, गुलाब का फूल, मेंढक, हवा में उड़ने वाली फिरकी, ओर बहुत कुछ जो शायद अब ख्यालो में #कहानी #ΔհΜεD_ɌαZα_ΘυʀΞៜΗι

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■■■■बचपन की यादें■■■■
____________________________
आज की बारिश ने मुझे अपना बचपन याद दिला दिया क्या खूबसूरत वक्त था ना बचपन का उस वक्त नहाने पर बीमार नही होते थे और आज थोड़ा भीगने पर बीमार हो जाते है,बचपन मे दोस्तो के साथ खूब बारिश के बहते बहाव में कागज़ की नाव चलाया करते थे और फिर उसी नाव में पानी भरता देखते थे कि कब ये नाव डूबती है और किसकी नाव ज्यादा आगे तक जाती है साईकल के पुराने टायर से दौड़ लगाते थे, कांच की गोलियों से खूब अलग अलग तरह के  खेल खेला करते थे जिन्हें अंचिया कहते थे इनसे  गोला, गिच, नक्का-चौक में साफ्कुच,धड़का,सीध,गुड़काश वगैरह जैक का इस्तेमाल करते थे जीतने के लिए। इसके अलावा लट्टू, पोसम्भा-भई-पोसम्भा, लोहा-लकड़ी, धरती-भाटा, गिल्ली-डंडा, भागम-भाग, सितोलिया, पतंग लूटना, केसीट की रील निकलना, चिड़िया उड़, राजा रानी चोर सिपाही, आसपास-थप्पी, छापे, चकन-पे, चोर-पुलिस, घर-घर, बर्फी, निसरणी,गुलाम-लड़की, कबड्डी, कुच्चा-दड़ी, माल-दड़ी ओर कही खेल खेलते थे बहुत आनंद भरा बचपन था हमारा। गुड़िया के बाल, संतरे, खोपरे ओर काले-नमक व ज़ीरे की गोलियां, इमली, अठन्नी ओर रुपये वाली पेप्सी , भोगले जिन्हें फिंगर कहते है आजकल, इसके अलावा आमलिकंठे, पारलेजी-किसमी, पारले जी बिस्किट, इनाम वाली चूरन ओर बहुत कुछ जो शायद अब यादों से भी ओझल हो गया है क्या खूबसूरत था हमारा बचपन।
बारिश के बाद मेंढक फ़ूडकलो ओर मकोड़ो का आतंक, घास में चलती मखमल की डोकरी, ओर साँप की छतरी, सांप की मौसी ओर बहुत से टिड्डे जिन्हें अल्लाह का घोड़ा कहते थे कितना खूबसूरत था हमारा बचपन,
वो रूठने पर कट्टी हो जाना और वापस मनाए पर अब्बा हो जाना भी याद है, कितना आसान था ना रूठो को मना लेना काश आज भी लोग इसी अब्बा से फिर एक हो जाते पर अब ऐसा नही होता, अफसोस बचपन हमसे रुखसत हो गया। पेपर से कितने तरह के खिलौने बनाया करते थे हम हवाई जहाज़, नाव, गुलाब का फूल, मेंढक, हवा में उड़ने वाली फिरकी, ओर बहुत कुछ जो शायद अब ख्यालो में

Vikas Sharma Shivaaya'

✒️📙जीवन की पाठशाला 📖🖋️ 🙏 मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 *मियां-बीबी दोनों मिल खूब कमाते हैं* *तीस लाख का पैकेज दोनों ही #समाज

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Nik Katara

As recieved From TATA STEELS *प्लेट में खाना छोड़ने से पहले रतन टाटा का ये संदेश ज़रूर पढ़ें!_* *_दुनिया के जाने-माने industrialist Ratan Ta #Inspiration #philosophy #yqdidi #yqhindi #yqthoughts #yq_gudiya

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भारत के बहुत बड़े उद्योगपति श्री रतन टाटा का अनुभव और सीख 👇👇 As recieved 
From
TATA STEELS

*प्लेट में खाना छोड़ने से पहले रतन टाटा का ये संदेश ज़रूर पढ़ें!_*

*_दुनिया के जाने-माने industrialist Ratan Ta

Arsh

111R डैडी क्यों मेरी लाड़ो, पापा से छादी क्यों नहीं कलनी? मुदे नई पता, आप बहोत दंदे हो पापा, पिथली बाल तहा था तौफी लेने दा लहा हूँ, इत्ते दि #story #Arsh

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इस रचना को आप कैप्शन में पढ़ सकते हैं। 111R
डैडी

क्यों मेरी लाड़ो, पापा से छादी क्यों नहीं कलनी?
मुदे नई पता, आप बहोत दंदे हो पापा, पिथली बाल तहा था तौफी लेने दा लहा हूँ, इत्ते दि
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