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Nimisha Mishra HI
White ऊंची आवाज में वो बोलता है, जिन्हे झूठ बोलना होता है , सच तो धीमी स्वर में भी कहा जाए तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में गूंजता है । ©Nimisha Mishra HI #SunSet ऊंची आवाज में वो बोलता है जिन्हे झूठ बोलना होता है , सच तो धीमी स्वर में कहा जाए तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में गूंजता है ।
Rk_karn1511 अनकही सी बातें
बात कड़वी है पर सच्ची है सच बोलने की हिम्मत हर किसी में नहीं होती और जो हिम्मत कर सच बोलता है वही अक्सर बुरा बन जाता है Rk karn अनकही सी बातें💙 ©Rk_karn1511 अनकही सी बातें बात #कड़वी है पर #सच्ची है सच बोलने की #हिम्मत हर किसी में नहीं होती और जो हिम्मत कर सच बोलता है वही अक्सर बुरा बन जाता है #Rk #karn #अनक
Babita Singh
किया था कभी तुझपे खुद से भी ज्यादा भरोसा प्यार नहीं था वे था एक धोखा 🦋 ©Babita Singh #aaina आईना कभी झूठ नहीं बोलता पर तुमने बोल दिया हंसके बड़े प्यार से ✍️🫂
ਸੀਰਿਯਸ jatt
@hardik Mahajan
"मैं बहुत ही मस्तीखोर और आज़ाद पंछी के जैसा और एक आज़ाद किस्म का एक लड़का था, मुझे हमेशा दुनिया को दुनिया को देखना, ओर उस दुनिया में रहकर अपनी मौज मस्ती में घूमना फिरना पसंद करता था"! "मुझे यह सब करना बहुत पसंद आता था, एक दिन इन्हीं ख्यालों में गुम होता हुआ, मैं कहीं और निकल गया, मुझे यह समझ नहीं आ रहा था कि मुझे कहां तक और चलते जाना हैं"! और जब-जब मैं जैसे नींद से जागता रहा, जब मैं खुली सड़कों पर खुद को पाया और डरकर मैं घबराने लगा, मुझे भूख लगी आस-पास मेरे कुछ भी नहीं दिख रहा था। और तब मुझे अपनी मां की याद आई,और उनका प्रेम याद आया, और लगा की मां तो मां होती है, हम बच्चों की जान होती हैं, अपने हाथों से खाना खिलाती, और मुझे प्यार से जबरदस्ती दो रोटी और खिलाती, और बस फिर क्या था, मैं सब कुछ छोड़ भागता हुआ घर आ जाता, और मां को देखकर मां से लिपट जाता, और बोलता की मां....मां.... मुझे आज तुम अपने हाथों से दो रोटी और ज्यादा खिला दो, पर मां कुछ समझ ही नहीं पाती थी, पर मैं सब कुछ समझ गया था, कि घर छोड़ना इतना आसान नहीं होता, इसका पता तब चलता है, जब हम घर से बाहर निकलते हैं, ओर जब किसी त्यौहार में जैसे-होली, रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली, पर खाने-पीने के लिए एक-एक, दाना-पानी, के लिए हम तरसते थे। और कोई भी हमारे पास हमारी मदद करने नहीं आता था, और यही बात उस दिन मुझे समझ आ गई, और मैं तब सोच लिया था, कि नहीं आज से मैं घर में ही रहूंगा, और साथ अपने माता-पिता के साथ ही रहूंगा, और उनके साथ ही रहकर अपनी उड़ान को नहीं भरूंगा, लेकिन एक उड़ते पंछी की तरह सोच रखूंगा, और जमीं पर रहकर ख़ुद पर भरोसा रखूंगा। और तब से मैंने लिखना-पढ़ना शुरू किया, और लिखते-पढ़ते आज मेरी ना जाने कितनी ही किताबें छप गई, और जो मैं छोटा "हार्दिक" था, आज बड़ा "हार्दिक महाजन" बन गया, तो मैं सभी से यही कहना चाहूंगा की एक बार घर छोड़ने से पहले सबकुछ अच्छे से सोच समझ फैसला लीजिए, फिर तब आप बाहर जाइए ऐसा नहीं है, लेकिन आप अपने परिवार के साथ रहकर ऐसा कभी फैसला न करें। ✍️✍️हार्दिक महाजन ©@छोटा लेखक हार्दिक महाजन "मैं बहुत ही मस्तीखोर और आज़ाद पंछी के जैसा और एक आज़ाद किस्म का एक लड़का था, मुझे हमेशा दुनिया को दुनिया को देखना, ओर उस दुनिया में रहकर अप
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल जुर्म की जब हो हुकूमत तो वकालत कैसी पूछते लोग हैं फिर हमसे शिक़ायत कैसी दुनिया वाले जो करें प्रेम तो अच्छा लेकिन जब करें हम तो कहे लोग मुहब्बत कैसी दिल बदलते हैं यहां लोग लिबासों की तरह हमने बदला है अगर दिल तो क़यामत कैसी लोग यूं ही तो नहीं मरते हैं हम पर यारों ये ख़बर सारे ज़माने को है उल्फ़त कैसी झूठ से बच तो नहीं सकता कभी तू भी प्रखर बोलता सच हैं अगर तू तो सियासत कैसी ०१/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल जुर्म की जब हो हुकूमत तो वकालत कैसी पूछते लोग हैं फिर हमसे शिक़ायत कैसी
AwadheshPSRathore_7773