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जीवन पाटील
आशिष गंगाधरजी चोले
सांगू काय वर्णू काय तो आनंद जेव्हा मनी येते विचार ३ एप्रिल जुमदेव जयंतीचे भान सारे विसरून जाते ३एप्रिल ला जयंती येता महानत्यागीची करूया गजर जूमदेव नामाचा आहे जयंती सोहळा महानत्यागीचा बाबा हनुमानजी बाबा जूमदेवजी प्रणामाने रॅली होते सुरुवात टिमकी ते वर्धमान नगर वाजून गाजवून उल्हास सेवकांत बाबांचा रथ जेव्हा टिमकी मधून निघते रॅली च्या तालावर पाय साऱ्यांचे थिरकते करूया गजर जूमदेव नामाचा आहे जयंती सोहळा महानत्यागीचा सेवक सारे बाबा हनुमानजी बाबा जुमदेवजी गजरात रंगते बाबांच्या जय जयकाराने नागपूर नगरी दुमदुमून जाते जुमदेवजी माझे सदैव हसतमुख त्यांच्या मार्गी सेवक सारे समसमान येथे जादूटोणा ,दुःख,सारे भय पळते तत्व शब्द नियम सेवकांच्या जीवनाचे सार्थक करते करूया गजर जूमदेव नामाचा आहे जयंती सोहळा महानत्यागीचा लेखन:- आशिष गंगाधरजी चोले मु पो रेवराळ तह मौदा जी नागपूर. ©आशिष गंगाधरजी चोले जुमदेवजी जयंती
sai mahapatra
तुम कितने खूबसूरत हो इए जानते हो कि नहीं तुम्हें हमसे हो गया है प्यार इए मानते हो की नहीं मानते की नहीं
Dhaniram
"आओ दीवाली की आड़ में अपना कल जलाते हैं। दीपक ,प्रेम पराग छोड़ो,चलो बारूद भरे पटाखे जलाते हैं। गूंगे बहरों को क्या फर्क पड़ता है, की हम क्या करते हैं। घर, गली ,चौराहे पे, बिछा दो बारूद का ढेर और शोर का कोहराम मचा दो, कितना दम था हमारे पटाखों में ये दुनिया को दिखा दो। धुंआ-धुआं करदो धरती से आसमान तक, खंज़र घोप दो प्रकृति की कोख पर, गढ्ढे खोद कर लकीर खींच दो, की हम लकीर के फकीर ही रहेंगे, सदियों से घनघोर दीवाली मनाते आए हैं ,मनाते रहेंगे। कल भी अपना कल जालाए थे, आगे भी अपना कल जलाते रहेंगे। हमने जंग लड़ी है। प्रकृति को बचाने में, तुम्हे भी आहुति देनी पड़ेगी नवांकुरित बीजों । तो आओ कसम खाओ हमारे साथ हम ऐसे ही पटाखों की दिवाली मानते हैं । दिए से तेल कापुस निकाल कर नेचर का खून जलाते है । आओ दीवाली की आड़ में अपना कल जलाते हैं। दीपक प्रेम पराग, छोड़ो चलो बारूद के पटाखे जलाते हैं ।" D. R. Nirdhan पटाखों की दीवाली मानते हैं.....
babaoo7
अकेलापन क्या होता है पूछो उन दीवानों से जो टूटे हैं प्यार के इस जाल से दीवानगी की हद से वो भी गुजर जाया करते थे लेकिन वक़्त से पहले सम्भल गए बाबा की चौकी