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Shiv Vinayak Dwivedi
पर्यावरण का मान बचाएं प्रकृति का सम्मान बचाएं वृक्ष लगाएं राष्ट्र बचाएं जीव धारी का प्राण बचाएं पर्यावरण हमारा घर है घर की रक्षा मे आगे आए घर पर अपने वृक्ष लगाएं देव विपत्ति को दूर भगाएं रचना शिव विनायक द्विवेदी # विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता कवि श्री शिव विनायक द्विवेदी
Akhilesh Varshney
इस परीक्षित को बचाओ सृष्टि को फिर से सजाओ, व्यष्टि को सुन्दर बनाओ सौंध कर पर्यावरण को, विश्व को नन्दन बनाओ । जल हुआ दूषित -प्रदूषित, वायु विष-सरिता बनी है ध्वनि-प्रदूषण भी विकारी राग की ही सनसनी है। बन्द कर ताण्डव प्रलय का, मलय-घ्वनि में गुनगुनाओ सौंध कर पर्यावरण को, विश्व को नन्दन बनाओ। धूल-धुआँ-धूसरित जगतीतले पाला पड़ा है होश में मानव नहीं, बस बन गया चिकना घड़ा है। मद-नशा काफूर करके, जिन्दगी अनमोल बचाओ सौंध कर पर्यावरण को विश्व को नन्दन बनाओ। प्रकृति देवी प्राण-रक्षक, पर बना दी जीव भक्षक सन्तुलन ऐसा बिगाड़ा, बन गई है वही तक्षक । जान की बाजी लगी है, इस परीक्षित को बचाओ सौंध कर पर्यावरण को विश्व को नन्दन बनाओ। नगर बदले हैं नरक में, गर्क मे पावन नदी हैं अश्रुपूरित देवता हैं देवियां भी रो रही हैं हवन- सामिग्री, दही, घी को न यूँ कूड़ा बनाओ सौंध कर पर्यावरण को विश्व को नन्दन बनाओ। वृक्ष, जल, थल, नभ पुकारें, करुण- क्रन्दन कर निहारें सांस के उज्ज्वल प्रणेता, देख दुर्गति हैं किनारे। देव-भूमि भरें न आहें, रक्ष-संस्कृति को मिटाओ सौंध कर पर्यावरण को विश्व को नन्दन बनाओ। श्वेत शतदल की पंखुरियाँ, तोड़ती भौतिक अँगुरियाँ क्षीण काया हो गई है, शुष्क लकड़ी सी पसुरियाँ। तरु बबूलों के रुपाये, वन गुलाबों के उगाओ सौंध कर पर्यावरण को विश्व को नन्दन बनाओ। ©Sirf Aapka #chaand पर्यावरण दिवस पर विशेष।।
Amit Nayan
*पर्यावरण को बचाने की जद्दोजहद* पर्यावरण दिवस पर विशेष @अमित नयन पर्यावरण के प्रति सजग रुप से जागरुकता एवं राजनीतिक चेतना जागृत करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पुरे विश्व में मनाया जाता है। इतिहास की मानें तो, सन 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के प्रति चिंता जताने के उपरांत स्वीडन की राजधानी स्टाॅकहोम में एक सम्मेलन कर 5 जून 1973 को पर्यावरण दिवस का शंखनाद किया गया, जिसमें विश्व के 119 देशों ने शिरकत की।इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का उदय हुआ तत पश्चात प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में पुरी दुनिया में इसका फैलाव हुआ।जिसका उद्देश्य समस्त मानव जाति को विभिन्न रूप से होने वाले प्रदुषण की समस्याओं से अवगत कराना था। प्रमुख पर्यावरण मुद्दे जैसे जंगलों की वृहद स्तर पर कटाई, ग्लोबल वार्मिंग, खाद्य पदार्थों की बर्बादी तथा नुकसान इत्यादि से बचाव तथा भविष्य के मद्देनजर संभावित खतरों से आगाह करने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाने की प्रथा आरंभ हुई। पर्यावरण को बचाने की कानूनी रूप से कवायद सन 1986 को 19 नंबर के दिन शुरू हुई। जिसमें वायु,जल,भूमि के साथ साथ मानव , पेड़-पौधे तथा अन्य जीवित पदार्थों को प्रमुख रूप से शामिल किया गया। पर्यावरण संतुलन जैसे बिगड़ने लगता है, उसके भयावह परिणाम पुरी दुनिया को एक बार में हीं झकझोर देता है। उदहारण के तौर देखें तो जब पृथ्वी पर बोझ बढ़ता तो भूकंप जैसी त्रासदी हमारे सामने दस्तक देता है।यह एक भयंकर प्राकृतिक आपदा है। पिछले दिनों एक ऐसी घटना केरल के मल्लपुरम के गलियारे में घटी जो मानवता के मूल्यों एवं संवेदनशीलता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है? जहां धरती का विशालतम सह सबसे ताकतवर जानवर एक भुखी हथिनी को क्रुर एवं असंवेदनशील मानसिकता वाले कुछ लोगों ने अनानास में पटाखे भरकर उसे खाना का औफर दिया। जिसे खाने के दौरान उस हथिनी के मुंह एवं जीभ बुरी तरह जख्मों से भर जाता है,तब वो छटपटाते हुए नदी की ओर भागती है। नदी में जाने के कुछ देर बाद वह हथिनी दम तोड़ देती है।यह घटना मानवता को शर्मशार कर रही । किस निर्ममता के साथ उनलोगों ने एक जीव की हत्या की?ये सोच कर रूह कांप उठती है।यह पहले ऐसी घटना नहीं है जो मानवता को शर्मशार कर रही है, वैसी अनेक घटनाएं दैनिक रुप से होती है। प्रर्यावरण के रक्षक हीं जब भक्षक बन जाएं तो प्रकृति क्रुर रूप धारण करेगी हीं। प्रर्यावरण को बचाने के लिए रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने की कवायद है। लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह संभव नहीं दिखता। प्रर्यावरण को बचाने के लिए कितने बेजुबानों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है।इसका उदाहरण है अमेजन के जंगल का जलना, करोना का फैलना, गर्भवती हथिनी की निर्मम तरीके से हत्या। अतः अब हमें प्राकृतिक आपदा से सावधान होने की आवश्यकता है। सम्मिलित रूप से हमारा प्रयास होना चाहिए कि रचनात्मक तरीके से आने वाले पीढ़ी को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने का एक छोटा सा प्रयास हो, ताकि वे प्राकृतिक आपदा का दंश न झेल सके , साथ ही बेजूबानों को अपनी प्राणों की आहुति ऐसे न देनी पड़े। चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा के पिछले दिनों गुजर जाने से पर्यावरण संरक्षक का एक दीप अस्त हो गया। लेकिन जाते-जाते उन्होंने हमारे पर्यावरण के प्रति सभी की जवाबदेही को अपने कामों के उदाहरण द्वारा तय किया, चिपको आंदोलन के प्रणेता को क्रांतिकारी इस्तकबाल ✊ वर्तमान परिपेक्ष में हमें वृक्षारोपण की अनिवार्यता को स्विकार करते हुए हमें अपने कदमों को आगे बढाना है ,तभी पूर्ण रूप हमारे पर्यावरण की साख बच सकती है। बिहार@* ©Amit Nayan #विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष #PrideMonth
"Happy Jaunpuri"
वो दिन दूर नहीं जब नई विपदा आएगी, पेड़ बचेंगे नहीं,बनेगा कैसे बादल, बारिश भी न होने वाली , चहुं दिश होगा काजल.. खाद्य श्रृंखला जब टूटेगी, फिर से न जुड़ने वाली, रह जाएंगे इस धरा पर अचर खाली... इस आधुनिकता में हमने ये जाना है, सफलता,असफलता कुछ नहीं, पहले पर्यावरण बचाना है.... ©"हैपी जौनपुरी" #पर्यावरण #दिवस