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Vinod Mishra
Praveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी घोसले जानवरो जैसे पिंजरो जैसे फ्लैटों में मानव का अब मकान है रहता जिसमे हवा पानी का अभाव घुटन भरी शाम है ना सूरज ना चाँद का दीदार है अगर जिंदगी की गुजर बसर के लिये कुछ टुकड़े लालच के फेककर गाँवो से होता पलायन है सजे है शहर भीडो से, तरक्की के नाम से मगर हो चला गुमशुदा आदमी यहाँ अपनी पहचान से प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #alone_sad_shayri रहता जिसमे हवा पानी का अभाव है
#alone_sad_shayri रहता जिसमे हवा पानी का अभाव है
read moreseema patidar
तेरे एक इशारे पर तेरी हो सकती हूं मैं कुछ नहीं है पास खोने को फिर भी बहुत कुछ खो सकती हूं मैं पत्थर सी बन गई हूं ,और पत्थर बने है जज्बात अगर तू लगाले गले तो जी भरकर रो सकती हूं मैं ......... ©seema patidar जी भरकर रो सकती हूं मैं ......
जी भरकर रो सकती हूं मैं ......
read moreShiv Narayan Saxena
White पानी की हो किल्लत जितनी, नेता को यह भाता है। पानी - पानी कर देने के, वादों पर इतराता है।। पानी स्वयं तत्व होने का अपना बोध कराता है। जिनका पानी उतर गया वह ईंधन ही हो जाता है।। ©Shiv Narayan Saxena #good_night पानी की बात. hindi poetry
#good_night पानी की बात. hindi poetry
read moreनवनीत ठाकुर
उम्र के सफ़र में ये पल अनमोल हैं, फिर भी हम फ़िक्र का भार बना रखा है। जिनसे मिली हो ख़ुशबू जीने की, उन लम्हों को ही बेकार बना रखा है। ख़ुदा की रहमत का शुक्र न किया, हर ख़्वाहिश को इंतज़ार बना रखा है। जो मिल रहा है, वो सब खास है, फिर भी किस्मत से तकरार बना रखा है। पलकों पे रखिए हर इक ख्वाब को, जिंदगी को क्यों बेज़ार बना रखा है? ©नवनीत ठाकुर हर ख्वाहिश को इंतजार बना रखा है
हर ख्वाहिश को इंतजार बना रखा है
read moreनवनीत ठाकुर
मौत आई तो सबने दिल से दुआ मांगी, जिंदगी में हर पल शिकवा बना रखा है। जिन ख्वाबों को हकीकत समझा था, उन्हें जागने के बाद फसाना बना रखा है। जिंदगी के सफर में मौत ही है एक सच, सच्चाई को ही डर का किस्सा बना रखा है। हर एक सांस को नियामत समझिए, हमने तो इसे भी उधार बना रखा है। ©नवनीत ठाकुर #किस्सा बना रखा है
#किस्सा बना रखा है
read moremeri_lekhni_12
White मेरे जीते जी रो लेता ,तो मैं मरता भला ही क्यों, लौटकर आने की चाहत है पर मैं आ नही सकता। क्यों गमगीन रहते हो , रहो न पहले जैसे तुम, तुम्हारे चेहरे पर मातम सा अब अच्छा नहीं लगता। तसब्बुर में तेरे शामो शहर मैने दिन गुजारे थे, तुझे क्या होगया जो मेरे बिन अब रह नही सकता। तेरी राहों को तकती थी निगाहे मेरी हर सूं तब कि क्यों बैठा है चौराहे पे, मुझे जब पा नही सकता।। पूनम सिंह भदौरिया दिल्ली ©ek_tukda_zindgi _12 मेरे जीते जी रो लेता..........#कविता #Poetry #gajal
Parasram Arora
White वो नदी समुन्दर के निकट पहुंचने के तुरंत बाद लौटने लगी अपने स्त्रोत की तरफ क्यों की उसे डर था कि उसका मीठा जल समुन्द्र के खारे पानी से मिल कर कहीं प्रदूषित न हो जाए ©Parasram Arora नदी और उसका मीता पानी
नदी और उसका मीता पानी
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