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Pushpendra Pankaj
जाग जरा, आज एकता रेत का लड्डू , छूना नहीं, बिखर जाएगा । अपनी ढपली,अपना राग से, जाति द्वेष विष गहराएगा । विषधर दूर निकल जाएगा, बुद्धु तब लाठी पटकाएगा । होगी ऐतिहासिक पुनरावृत्ति, मनमाना पृष्ठ लिखा जाएगा। खाली बैठा ,हाथ मलेगा , अपनी जिद पर पछताएगा। प्यार की मिट्टी मिला रेत में, तब ही लड्डू बंध पाएगा । अनियंत्रित सा,ढीला ढाला, बिखरा रेत संभल पाएगा ।। पुष्पेन्द्र "पंकज" ©Pushpendra Pankaj संभल जा जरा
Poetry-Meri Diary Se
कहता था ना बस करो अब तुम, जियो खुद और मुझें भी जीने दों! अक्सर लबों पे तेरे सिकवे रहते थे, तेरी बेवफाई जान ले गई मेरी! अब मैं ना रहा तेरी ज़िन्दगी में, ना अब मेरी ज़िन्दगी रही साथ तेरी! संभल कर जीना मेरी जान तुम, के ज़िन्दगी में हर कोई ABi नहीं मिलेगा! ©ABi Aman संभल कर जीना
Pushpendra Pankaj
संभल जा जरा हाथों से हृदयी संकेत बनाकर, सार्वजनिक या गुप्त छिपाकर, सखी ! किसको रिझा रही हो। दुनिया बेढंगी , बङी बावरी तुम नासमझ, कर अटखेली, मिलन का रास्ता सुझा रही हो । पुष्पेन्द्र "पंकज" ©Pushpendra Pankaj संभल जा जरा
नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
इन्सान बड़ी गाड़ी पर बैठते ही दौलत और ताकत के अहंकार में किसी को कुछ समझता नहीं और आसमान में उड़ने लगता है।लेकिन वो ये क्यों भूल जाता है कि जिस गाड़ी में वो सवार है वो जमीन पर ही चलती है। जमीन खिसकी, जिन्दगी गई। ©नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।) # जरा संभल के।