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dilip khan anpadh
(प्रेम रतन धन) ---------- फिदा हुआ मैं फेसबुक पर फ्रेंड बनी जब छोरी प्रेम रतन धन पायो धुन पर कोई जतन ना छोड़ी। व्हाटसअप पर भेजी फोटो निकाल-निकाल कर ठोड़ी रंग अनोखा रूप अनोखा दिल लूट गई वो मोड़ी। चुपके से नंबर ले देकर रास रचाया जमके मिलन हमारा ऑनलाइन था राधा-कृष्ण सा बनके। बात बढ़ी शादी तक आई मिली नही वो आके टाइम नही बता के मुझको खूब छकाया जमके। मैं हठी, जिद ठान लिया था ब्याह राचाऊंगा मैं जिसे आंखों से देख ना पाया संग निभाउंगा मैं। आनन फानन में skype पर उसे बुलाया मैने एडिटेड फोटो के जरिये खूब रंग जमाया उसने। वो परी सी दिखती थी जैसे कोई माया उसने मीठी बातों से मम्मी पापा को पटाया। झटपट शादी डॉट कॉम पर डेट निकाला मैंने मंडप में जा बैठा सबको खूब खिलाया मैंने। घूंघट में दुल्हन ले विदा हुआ मैं डटके मन में लड्डू फुट रहे थे जब गाड़ी खाए झटके। सुहाग सेज पर बैठ गई वो बिन अपना मुँह खोले शायद राह देख रही थी राजा जी पट खोले। मैंने अपना हाथ बढ़ा घूंघट का पट खोला आंखे मेरी फटी रह गई गिरा था बम का गोला। सॉक लगा हजार बोल्ट का दर्शन उसका करके जीभ तालु से जा चिपका फेविकोल रगड़ के। अद्भुत काली थी वो नाक का पता नही था दांत बाहर को निकले थे नजरे कँहा सही था? मन मे आंधी तन में बिजली कड़क रहा था ठनके यमदूत भी नाच रहे थे साला ससुरी बनके। खून के आंसू रो रो कर मरता सा मुसकाया करम मेरे फुट गए थे प्रेम रतन धन पाया। दिलीप कुमार खाँ अनपढ़ #प्रेम रतन धन
M R Mehata(रानिसीगं )
जय माता दी 💚 अच्छे व्यवहार का धन दोलत के रूप में कोई मोल नहीं होता... मगर फिर भी प्रेम रुपी धन से करोडो़ लोगों का दिल जीता जा सकता है 🌺प्रेम रतन धन अनमोल 🌺 ©M R Mehata(रानिसीगं ) #Titliyaan प्रेम रतन धन अनमोल
sohit kourav
प्रेम रतन धन पायो, सर्दी का मौसम आयो, स्वेटर पेहेन कर घर के बहार जायो, रज़ाई के बहार न आयो, भूल न जाना जो बी मई समझायो वर्ण सर्दी लग जाएगी भाइयो। ©sohit kourav प्रेम रतन धन पायो, सर्दी का मौसम आयो, स्वेटर पेहेन कर घर के बहार जायो, रज़ाई के बहार न आयो, भूल न जाना जो बी मई समझायो वर्ण सर्दी लग जाएग
Suman Rakesh Shah
मैंने जो पाया, कोई बयां कर न पाया मोल उसका कोई लगा न पाया छुपाना चाहकर भी छुपा न पाऊँ, दिखाना चाहकर भी दिखा न पाऊँ छलकता है रोम रोम से मेरे जो कोई बटोरना चाहकर भी बटोर न पाया, जग से जरा अलग रीत है उसकी न जानो तो कोई मोल नही, जान लो तो है अनमोल पायोजी मैंने राम रत्न धन पायो... सुमन"रूहानी" पायो जी मैंने प्रेम रतन धन पायो। मीराबाई की यह संभवतः 520वीं जयंती है। 1498-1547 मीराबाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता में हुआ था। भक्ति का
KRUNAL JADAV
भक्ति की नई ऋत लाई, नाम था उनका मीराबाई; भक्तिरस जीवन में लाना, कृष्णमयी जीवन हो जाना; उन्हें नहीं था कोई कहर, प्रसाद की भाती पिया जहर; श्रद्धा का दीप ऐसा जलाया, भक्ति से पूरा जग उजलाया; प्रभु को ही सर्वस्व जाना, मन में सदा बसे कान्हा. पायो जी मैंने प्रेम रतन धन पायो। मीराबाई की यह संभवतः 520वीं जयंती है। 1498-1547 मीराबाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता में हुआ था। भक्ति का
Rajnish Shrivastava
पायो जी मैने तुम संग सब सुख पायो एक तुम्हारी खातिर मैने सब का संग ठुकरायो तुम न समझो चाहे मगर हमको समझ सब आयो जीवन तुम बिन हमसे गुजारा नही जायो पायो जी मैंने प्रेम रतन धन पायो। मीराबाई की यह संभवतः 520वीं जयंती है। 1498-1547 मीराबाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता में हुआ था। भक्ति का
Vibha Katare
असीमित आकाश की सीमाओं के परे मुझे जाना है, अनियंत्रित सिन्धु की गहराई के परे मुझे जाना है, जहाँ तू मिले.. कृष्ण, मुझे मीरा सी भक्ति पाना है... पायो जी मैंने प्रेम रतन धन पायो। मीराबाई की यह संभवतः 520वीं जयंती है। 1498-1547 मीराबाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता में हुआ था। भक्ति का
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
जीवन जीना सरल नही था, लेकिन कोई बड़ा नही था । चाचा दादा दादी मौसी , कोई इनमें गैर नही था ।। बच्चों से ही घर भर जाता , खेल कूद में दिन ढ़ल जाता । आते रहते फूफा-फूफी , दीदी जीजा का तो घर था ।। जीवन जीना सरल नही था ...... होते थे त्यौहार निराले । दही जलेबी चूरा वाले । दीपों से था घर-घर रोशन कहीं तिमिर का वास नही था जीवन जीना सरल नही था ... रोज शाम को लगे मंड़ली बाबा बैठे मार कुंड़ली किस्से और कहानी से ही कहीं दर्द का पता नही था जीवन जीना सरल नही था ... मनोरंजन का साधन न था लेकिन प्रेम रतन जो धन था खुशियों का यू रहा आगमन जीवन जीना कठिन नही था ।। ०८/१०/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR जीवन जीना सरल नही था, लेकिन कोई बड़ा नही था । चाचा दादा दादी मौसी , कोई इनमें गैर नही था ।। बच्चों से ही घर भर जाता , खेल कूद में दिन ढ़ल ज
Ratan Singh Champawat
प्रेम लिखता हूं मैं प्रेम रहित भी... और प्रेम सहित भी.... #dilkideharise प्रेम लिखता हूं मैं प्रेम रहित भी और प्रेम सहित भी ✍️✍️✍️ रतन सिंह चंपावत