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Anil Ray
किसी भी राष्ट्र की प्रगति को राष्ट्र में वर्तमान महिलाओं की प्रगति से मापन किया जाना चाहिए। ✍🏻...डॉ. भीमराव अम्बेडकर ©Anil Ray बादशाह-ए-कलम..........✍🏻🙏🏻 दुनिया की प्रत्येक विचारधारा ने लाखों-करोड़ो मानवों का रक्त बहाकर एक रक्तरंजित बाढ में स्वयं के वज़ूद को स्थापित
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{Bolo Ji Radhey Radhey} सहस्र चंडी यग्न :- 📜 सत्ता बल, शरीर बल, मनोबल, शस्त्र बल, विद्या बल, धन बल आदि आवश्यक उद्देश्यों को प्राप्ति के लिए सहस्र चंडी यग्न का महत्व हमारे धर्म-ग्रंथों में बताया गया है। इस यग्न को सनातन समाज में देवी माहात्म्यं भी कहा जाता है। सामूहिक लोगों की अलग-अलग इच्छा शक्तियों को इस यज्ञ के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। अगर कोई संगठन अपनी किसी एक इच्छा की पूर्ति या किसी अच्छे कार्य में विजयी होना चाहता है तब यह सहस्र चंडी यग्न बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। असुर और राक्षस लोगों से कलयुग में लोहा लेने के लिए इसका पाठ किया जाता है। 📜 मार्कण्डेय पुराण में सहस्र चंडी यग्न की पूरी विधि बताई गयी है। सहस्र चंडी यग्न में भक्तों को दुर्गा सप्तशती के एक हजार पाठ करने होते हैं। दस पाँच या सैकड़ों स्त्री पुरुष इस पाठ में शामिल किए जा सकते हैं और एक पंडाल रूपी जगह या मंदिर के आँगन में इसको किया जा सकता है। यह यग्न हर ब्राह्मण या आचार्य नहीं कर सकता है। इसके लिये दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले व मां दुर्गा के अनन्य भक्त जो पूरे नियम का पालन करता हो ऐसा कोई विद्वान एवं पारंगत आचार्य ही करे तो फल की प्राप्ति होती है। विधि विधानों में चूक से मां के कोप का भाजन भी बनना पड़ सकता है इसलिये पूरी सावधानी रखनी होती है। श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले मंत्रोच्चारण के साथ पूजन एवं पंचोपचार किया जाता है। यग्न में ध्यान लगाने के लिये इस मंत्र को उच्चारित किया जाता है। ©N S Yadav GoldMine #navratri {Bolo Ji Radhey Radhey} सहस्र चंडी यग्न :- 📜 सत्ता बल, शरीर बल, मनोबल, शस्त्र बल, विद्या बल, धन बल आदि आवश्यक उद्देश्यों को प्राप्
Monika Gera jindagi. A poetess, writer, lyricist, singer,motivational speaker,Handwriting expert for three languages as to training + language teacher ( three languages).
Ravendra
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जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 32-50 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं; यह काल का उलट-फेर तो देखो। माधव। निश्चय ही दैव के लिये कोई भी कार्य अधिक कठिन नहीं है; क्योंकि उसने क्षत्रियों द्वारा ही इन शूरवीर क्षत्रिय षिरोमणियों का संहार कर डाला है। 📜 श्रीकृष्ण मेरे वेगशाली पुत्र तो उसी दिन मारे डाले गये, जबकि तुम अपूर्ण मनोरथ होकर पुनः उपप्लव्य को लौट गये थे। मुझे तो शान्तनुनन्दन भीष्म तथा ज्ञानी विदुर ने उसी दिन कह दिया था, कि अब तुम अपने पुत्रों पर स्नेह न करो। है जनार्दन। उन दोनों की यह दृष्टि मिथ्या नहीं हो सकती थी, अतः थोड़े ही समय में मेरे सारे पुत्र युद्ध की आग में जल कर भस्म हो गये। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- भारत। ऐसा कहकर शोक से मूर्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दु:ख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। 📜 उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ दिया। गान्धारी ने कहा- श्रीकृष्ण। है जनार्दन। पाण्डव और धृतराष्ट्र के पुत्र आपस में लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? महाबाहु मधुसूदन। तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत से सेवक और सैनिक थे। 📜 तुम महान् बल में प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षों से अपनी बात मनवा लेने की सामथ्र्य तुम में मौजूद थी। तुमने वेद-षास्त्रों और महात्माओं की बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छा से कुरू कुल के नाश की उपेक्षा की- जान-बूझकर इस वंष का विनाश होने दिया। 📜 यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो। चक्र और गदा धारण करने वाले है केशव। मैंने पति की सेवा से कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबल से तुम्हें शाप दे रही हूं। गोविन्द। 📜 तुमने आपस में मार-काट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों ओर पाण्डवों की उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओं का भी विनाश कर डालोगे। हैं मधुसूदन। आज से छत्तीसवां वर्ष उपस्थित होने पर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपस में लड़कर मर जायेंगे। 📜 तुम सबसे अपरिचित और लोगों की आंखों से ओझल होकर अनाथ के समान वन में विचरोगे, और किसी निन्दित उपाय से मृत्यु को प्राप्त होओगे। इन भरतवंषी स्त्रियों के समान तुम्हारे कुल की स्त्रियां भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओं के मारे जाने पर इसी प्रकार सगे-सम्बन्धियों की लाशों पर गिरेगी। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- राजन। वह घोर वचन सुनकर माहमनस्वी वसुदेव नन्दन श्रीकृष्ण ने कुछ मुस्कराते हुए से गान्धारी से कहा- क्षत्राणी। मैं जानता हूं, यह ऐसा ही होने वाला है। तुम तो किये हुए को ही कह रही हो। इसमें संदेह नहीं कि वृष्णिवंष के यादव देव से ही नष्ट होंगे। 📜 शुभे। वृष्णिकुल का संहार करने वाला मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं है। यादव दूसरे मनुष्यों तथा देवताओं और दानवों के लिये भी अवध्य हैं; अतः अपस में ही लड़कर नष्ट होंगे। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डव मन-ही-मन भयभीत हो उठे। उन्हें बड़ा उद्वेग हुआ। ये सब-के-सब अपने जीवन से निराष हो गये। एन एस यादव।। ©N S Yadav GoldMine #traintrack जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभार
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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- पाकर बेटी खुशी मनाते , कम ही है माँ बाप । बिटिया की प्यारी सूरत पर , रीझ गये हैं आप ।। बेटी पाकर खुशी मनाते.... थोड़ी हम पर थोड़ी तुम पर , आयी है सरकार । इसका भाग्य सँवारे गिरधर , इतनी है दरकार ।। माना जीवन में मेरे है , थोडें से संताप । बेटी पाकर खुशी मनाते , कम ही है माँ बाप ।।... इसको दूजी मनु हम समझे , मन में आज विचार । अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दिलाकर , करना है तैयार ।। लेकिन कलयुग घोर चढ़ा है , इसका पश्चाताप । बेटी पाकर खुशी मनाते , कम ही है माँ बाप ।। नगर-नगर में बाँट मिठाई , खुशियाँ आई देख । दीप जलाओ खुशी मनाओ , बदली जीवन रेख ।। हमको उनमें गिनों न भैय्या , बैठा करूँ विलाप । बेटी पाकर खुशी मनाते , कम ही है माँ बाप ।। चलो करे रघुवर को वंदन , किए मनोरथ पूर्ण । वह तो दाता सारे जग के , करते रहते घूर्ण ।। आज वही आशीष दिए तो , देखो हुआ मिलाप । बेटी पाकर खुशी मनाते , कम ही है माँ बाप ।। पाकर बेटी खुशी मनाते , कम ही है माँ बाप । बिटिया की प्यारी सूरत पर , रीझ गये हैं आप ।। २४/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR पाकर बेटी खुशी मनाते , कम ही है माँ बाप । बिटिया की प्यारी सूरत पर , रीझ गये हैं आप ।। बेटी पाकर खुशी मनाते.... थोड़ी हम पर थोड़ी तुम पर ,
Dr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी
ram lalla #काव्य #संग्रह वस्त्र से सन्यासी, शस्त्र में महा योद्धा है वो, पिता का आज्ञाकारी पुत्र, समाज का श्रद्धा है वो।। कहते हैं लोग उन्हें, मर्यादा पुरुषोत्तम, मानवों में, सर्वोत्तम है वो।। माँ के दिल के विचारों को, आत्मसात करने वाला, पिता के भाव को जीने वाला, हाँ नरोत्तम है वो।। सर्वश्रेष्ठ उदाहरण, प्रस्तुत करने वाला, जमीन से जुड़े रहकर, कार्य करने वाला, अच्छा नहीं, उत्तम है वो। केवट,भील,वानर, सबको किया प्यार, मिलन हो अद्भुत, राक्षसों को भी सिखाया, सदाचार का पाठ, हर युग के लिये बना उदाहरण, स्वभाव से अतिउत्तम है वो।। वो तो बड़ा मधुर है स्वभाव से, सबको देता है स्नेह, जीवन का सीख देता है, मानव जीवन का स्वरूप है, मोक्ष प्रदान करने मे, सक्षम है वो।। बाँध रखा है सबको जिसने, एक सूत्र से, काल का महाकाल है वो, सब करते नमन जिसको, आदिपुरूष राम हैं वो, आदिपुरूष राम हैं वो। #कलमसत्यकी ✍️©️ ©Dr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी #ramlalla #काव्य #संग्रह वस्त्र से सन्यासी, शस्त्र में महा योद्धा है वो, पिता का आज्ञाकारी पुत्र, समाज का श्रद्धा है वो।। कहते हैं लोग
Ravendra