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प्रकाश झा प्रचंड
केवल मैं दोषी न था धर्मराज भी धर्म भूल गए जुए में द्रौपदी पर तो वो खुद ही दांव खेल गए सच ये है धर्मराज को खुद नारी का मान नहीं मैं तो दुर्योधन हूँ मुझे धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं अंधे का बेटा अंधा कह रखा उसने मान नहीं द्रौपदी ने धृतराष्ट्र का किया कभी सम्मान नहीं अपमान को सहन करता इतना मैं महान नहीं मैं तो दुर्योधन हूँ मुझे धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं मुझसे पांडव जीत जाते इतना था आसान नहीं विजित मैं होता गर होता कृष्ण का वरदान नहीं पांडवों ने भी युद्धनीति का रखा कभी मान नहीं मैं तो दुर्योधन हूँ मुझे धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं मैं सत्ता का अधिकारी करता क्यूँ अभिमान नहीं रणक्षेत्र से भाग जाना होता वीरों का काम नहीं छल से युद्ध जीत कर होता कोई महान नहीं मैं तो दुर्योधन हूँ मुझे धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं ©प्रकाश झा प्रचंड #दुर्योधन
samir anand
कृष्ण तो सब सोचते हैं , मैं दुर्योधन को फिर से जीयूंगा क्रोध को कलेजे में अबकी नहीं लूंगा व्यंग को दिल पर अबकी नहीं लूंगा पांचाली से प्रतिशोध अबकी नहीं लूंगा कंस की कुटिलता अबकी नहीं लूंगा कृष्ण तो सब सोचते हैं , मैं दुर्योधन को फिर से जीयूंगा कृष्ण को सखा , कर्ण को सखा समझूंगा युधिष्ठिर को सगा, अर्जुन को सगा समझूंगा द्रोपदी को उपहार में ,मैं चादर दूंगा सभा में श्रेष्ठ जो , सदा आदर दूंगा कृष्ण तो सब सोचते हैं , मैं दुर्योधन को फिर से जीयूंगा फिर से जियूंगा मैं दुर्योधन , शालीनता से सजा हुआ दुर्योधन , वचन से बंधा हुआ दुर्योधन , नहीं पहले जैसा असत्य दुर्योधन , कृष्ण तो सब सोचते हैं , मैं दुर्योधन को फिर से जीयूंगा ©samir anand #Path दुर्योधन
Anjali Jain
ठीक है! ग़लती हो जाती है किन्तु ग़लती की सजा गुनाह करके तो नहीं दी सकती!! #दुर्योधन #20. 04.20
Writer Abhishek Anand 96
जिसे तुम कहते अर्धम की अवतार हो हाँ मैं वही गदाधारी दुर्योधन कौरवों का ज्येष्ठ हूँ आओ में सुनता हूँ अपनी पिरा जानता हूँ मैं गलती हुई थी भरी सभा में जब पांचाली को करवाना चाहता मैं निर्वस्त्र था जब हार गये वो पुरा राज -पाठ तो क्यूँ ना मान हार लिया किसने दिया था हक उसे नारी के सम्मान लगाने हेतू दाँव पे जितना दोषी मै हुआ उतना ही पांडव पाँच हुए फिर क्यूँ उसे जय का गान मिला आखिर क्यूँ मुझे अर्धमी का नाम मिला मेरा भी लक्ष्य केवल मात्र इतना था भरी सभा में खुद को साबित कर श्रेष्ठ हर एक मुख से निकलवाऐं जब हार गए तो किस मुख से माँग रहे वे दान आधा राज्य या पाँच ग्राँम थे मर्जी मेरी थी मैं दे दु दान या रखूँ अपने पास राज्य का समर्पुन भु- भाग अब आओ ले चलता हूँ युद्ध भुमी के मैदान में वासुदेव के सामने टिक सकुँ मैं क्षण एक भला मैं इतना योग्य कहाँ देता हूँ अपने मित्र अंगराज की हिम्मत का मैं दाद जिसने माधव को भी तिन पग पिछे जाने हेतू विवश किया करते हो धर्म ©wríêr ãbhïßhêk æñæñd दुर्योधन पार्ट 1 #grey
Anjali Jain
छल से ही जीवन का आरंभ और छल पर ही जीवन का अंत हे दुर्योधन!! #रे दुर्योधन #12. 05.20