Find the Latest Status about शोषक वर्ग का अर्थ from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, शोषक वर्ग का अर्थ.
Vijay Vidrohi
जैसे किसान वर्ग गेहूँ, धान आदि की खेती करता है, वैसे शोषक वर्ग झूठ, धूर्तता आदि की खेती करता है और वह उन्हें ही रोपते, खाद - पानी देते बड़ा करता है। इसी धंधे में वह जीता है, साँस लेता है और फिर मरता है। dr. rajender parsad Singh ©Vijay Vidrohi #शोषक
Babita Bharati
किले नहीं दीवारें खड़ी कर रहे हैं ये, ताकि उनमें और हममें ऐशों-आराम का फांसला बराबर बना रहे। ©Babita Bharati वरना शोषक वर्ग को सफलता का एहसास कैसे होगा? #nojotohindi #writer #thought #Opinion #nojotowriters #Hindi #hindi_shayari #Nojoto #BoloDilSe
वरना शोषक वर्ग को सफलता का एहसास कैसे होगा? #nojotohindi #writer #thought #Opinion #nojotowriters #Hindi #hindi_shayari #BoloDilSe
read moreसौरभ
कुछ महीनों पहले मैं ट्रेन से यात्रा कर था। मेरे समीप ही बैठे दो बुजुर्ग आपस में बातें कर रहे थे। अमूमन गाँव के लोग ऊँचा ही बोलते हैं इसलिए उनकी बातें मुझे साफ सुनाई दे रही थीं। दोनों बुजुर्ग बातों- बातों में जातियों का दर्जा निर्धारित कर रहे थे। कौन सी जाति बड़ी है कौन सी छोटी। किस जाति में कौन सी जाति के लोग शादी करते हैं कौन से नहीं। कौन सी जाति भोजन में साथ बैठने लायक है और किस जाति के साथ बैठ कर भोजन नहीं कर सकते। उनकी वार्तालाप ध्यान से सुनने पर पता चला कि वे कुशवाहा जाति के थे। वे खुद की जाति को कई जातियों से बड़ा घोषित कर रहे थे। वर्ण व्यवस्था में दलित को सबसे निचले स्थान में रखा गया है लेकिन उस वर्ग के व्यक्ति भी कई जातियों में बँटे हुए हैं। जिसमें कोई किसी से खुद को श्रेष्ठ बताता है तो दूसरा खुद को किसी और से श्रेष्ठ। तब दिमाग में यह प्रश्न कौंधता है। जो वर्ग जाति व्यवस्था से किसी न किसी रूप में पीड़ित हुआ है और वे उस शोषित व्यवस्था का विरोध करता है तो उस विरोध के पीछे उनकी मंशा क्या है ? जाति व्यवस्था को खत्म करना? या उस व्यवस्था के शिखर पर स्वयं के न होने की कुंठा ? जब आप अपनी शक्ति और वर्तमान समय में समाज में प्रचलित गलत नियमों के द्वारा किसी व्यक्ति को शारीरिक, बौद्धिक किसी भी प्रकार से स्वयं से नीचा सिद्ध करने का प्रयास करते हैं तब आप भी शोषक की श्रेणी में आ जाते हैं। तब आप किसी भी तरीके से वर्ण व्यवस्था के शिखर पर बैठे लोगों से इतर नहीं हैं। बल्कि आप उस व्यवस्था को शक्ति प्रदान कर रहे होते हैं। अर्थ है कि शोषक बनने के लिए समाज का हर वर्ग आमादा है लेकिन जब स्वयं के शोषित होने की बात आती है तब उसे नैतिक कर्तव्य और स्वयं के अधिकार जैसी बातें याद आने लगती हैं। महिलाओं का शोषण किसी से छुपा नहीं रहा है। प्रत्येक समाज, जाति में महिलाओं के शोषण में कमी नहीं रही है। ब्राह्मण से लेकर दलित तक न केवल पूर्वकाल में बल्कि वर्तमान समय में भी महिलाओं का शोषण होता रहा है। इसमें भी अंततः वही परिणाम निकलता है। महिलाओं के शोषण के ज़्यादातर मामलों में सबसे बड़ी भूमिका महिलाओं की ही रही है। यदि छोटी जाति कहलाने वाले लोग जाति व्यवस्था को सच में खत्म करना चाहते हैं तो वे उस व्यवस्था को अपनाकर उसे कैसे खत्म कर सकते हैं? कुछ साल पहले दलितों की प्रखर नेता सुश्री मायावती जी उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बनी। उनकी पार्टी की नीति दलितों के लिए लड़ाई लड़कर उन्हें समाज में वंचित अधिकारों को प्राप्त कराना था। लेकिन कुछ समय पश्चात जब उनकी पार्टी मीटिंग होती तो उसमें केवल दो कुर्सी ही बैठने के रखी जाती। एक मायावती जी के लिए और दूसरी काशीराम जी के लिए। बाकि सभी विधायक जमीन पर बैठते थे। जो इंसान दलित को हक़ दिलाने के लिए लड़ाई लड़ता है, उस वजह से ही मुख्यमंत्री जैसे प्रतिष्ठित पद के लिए चुना जाता है। वही पद पाने के बाद खुद को दूसरों से ऊँचा दिखाने का प्रयास करता है। मतलब आप भी दूसरों को नीचा दिखा खुद सर्वश्रेष्ठ बनना चाहते हैं तब आप व्यवस्था के विरोधी इसलिए नहीं हैं कि उससे आप पीड़ित है बल्कि इसलिए हैं क्योंकि आप उच्चतम दर्जे पर नहीं हैं। और यह केवल कुंठा है। जो आपके पास शक्ति आने के बाद खत्म हो जाती है। कबीर की बातें आज भी समाज में प्रासंगिक है। उनकी इज़्ज़त आज भी समाज इसलिए करता है क्योंकि वो किसी भी धर्म जाति के पक्षधर नहीं थे। उन्होंने हर धर्म हर जाति की गलत अवधारणाओं का विरोध किया। जीवन भर मस्तमौला रहे। जाति धर्म से उन्हें किसी भी प्रकार का खास लगाव कभी न रहा। मैं किसी भी जाति या वर्ग का पक्ष नहीं ले रहा। न ही किसी जाति का विरोध कर रहा। बस यह लेख उन लोगों के लिए है जो एक तरफ जाति व्यवस्था का विरोध करते हैं और दूसरी तरफ जब स्वयं के हित की बात आती है तब उसी व्यवस्था का अंगीकरण करते हैं। इस व्यवस्था का विरोध उसी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है जो इस व्यवस्था का कभी हिस्सा रहा हो और आज सम्पूर्ण व्यवस्था को पूरी तरह नकार चुका हो। जय श्री राम #विचार #जातिवाद #शोषक #शोषित
विचार जातिवाद शोषक शोषित
read moreVikas Sahni
इक वार इक मजदूर काम पे से थककर आया अपने घर पर तो बिजली चली गयी, तकिया-बिस्तर बाँध चढ चला गया छत पर और सो गया यह कहते, "बाहर घाव-भीतर तनाव है!" कि बिजली चली आयी तो चेहरा हुआ हरा-भरा तो नीचे उतरा! दोबारा बिजली चली गयी, दोबारा तकिया-बिस्तर बाँधे छत पर चढा तो दोबारा बिजली चली आयी। फिर वह वहीं रह गया छत पर थे बहुत मच्छर, जिनका काटना बरकरार था, जिनके लिए खून पीना ही प्यार था। यह देख मेरी कविता ने कहा, "यही मच्छर मालिक हो जाते हैं दिन में, जो करते हैं शोषण! काटते हैं सैलरी के सिवा पेड़-पोधों को और फैलाते हैं प्रदूषण, जिसके ज़हर से सबसे पहले मरते हैं मजदूर। शेष उच्च वर्गीय लोग कूलर-कार की सहायता से हो जाते हैं सुरक्षित दूर। ...by Vikas Sahni #शोषक मच्छरों के रूप में###
#शोषक मच्छरों के रूप में###
read moreRahul Shastri worldcitizens2121
Safar July 10,2019 सत्संग का अर्थ होता है गुरु की मौजूदगी! गुरु कुछ करता नहीं हैं, मौजूदगी ही पर्याप्त है। ओशो सत्संग का अर्थ
सत्संग का अर्थ
read more