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कलम की दुनिया
अलग अलग प्रकार के व्यंजन जो तु मंहगे-मंहगे होटलों में खाता है हमें देखकर जो तु घिन्नाता है उगाते है उन फसलों को ये घिन्नौने हाथ ही तो बता न इन घिन्नौने हाथों पर अभिमान क्यों न हो? बड़े- बडे मकानों में जो तु आराम फर्माता है देख हमारी झोपड़ी जो तु इसे धब्बा बताता है बनाते हैं उन मकानों को ये धब्बिले हाथ ही तो बता न इन धब्बिले हाथों पर अभिमान क्यों न हो? मंहगे मंहगे कपड़े पहन जो तु इठलाता है देख मैले कुच्चे कपडो को हमारी जो तु निच दृष्टि डालता है बुनते है उन कपडो को ये मैले कुचले हाथ ही तो बता न इन मैले कुचले हाथों पर अभिमान क्यों न हो? तेरा पेट भरते है तुझे स्वच्छ, स्वस्थ्य रखते हैं महलों में बिठा तुझे , खुद झोपड़ी में रहते हैं गाड़ी में बिठा तुझे, खुद पैदल ही चलते हैं खुदपर अभिमान करते नहीं लेकिन तुम भी सम्मान करते नहीं तुम्हारी नजरों में जब हमारा सम्मान नही तो बता अभिमान क्यों नहीं? ©कलम की दुनिया #अभिमान क्यों न हो
AD Kiran
न सुन्दरता,न चरित्र न है ओ गुनवाण ! न जाने तब भी मेरा पागल दिल कहता है वह है मेरी जान !! ©PAINFUL PHASE. न सुन्दरता,न चरित्र न है ओ गुनवाण ! न जाने तब भी मेरा पागल दिल कहता है वह है मेरी जान !!
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
White ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थी ।।२ हटे कैसे नज़र मेरी हँसी रुख से । जिसे अब देख तर जाने की जल्दी थी ।।३ न था अपना कोई उसका मगर फिर भी । उसे हर रोज घर जाने की जल्दी थी ।।४ सँवरना देखकर तेरा मुझे लगता । तुझे दिल में उतर जाने की जल्दी थी ।।५ बताती हार है अब उन महाशय की । उन्हें भी तो मुकर जाने की जल्दी थी ।।६ नशे की लत उसे ऐसी लगी यारों । जैसे उसको भी मर जाने की जल्दी थी ।।७ सही से खिल नहीं पाये सुमन डाली । जमीं पे जो बिखर जाने की जल्दी थी ।।८ लगाये आज हल्दी चंदन वो बैठे । न जाने क्यों निखर जाने की जल्दी थी ।।९ किये सब धाम के दर्शन प्रखर ऐसे । खब़र किसको निकर जाने की जल्दी थी ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- वो आती लौट पर जाने की जल्दी थी । पुकारो मत उधर जाने की जल्दी थी ।।१ छुपा लेता खुशी सारी सभी से मैं । करूँ क्या आँख भर जाने की जल्दी थ
Bulbul varshney
दोस्ती का तो पता नहीं पर हमारे पास दुश्मनी निभाने वाले बहुत आ जाते हैं प्यार से बात करने वाले तो पता नहीं पर हां पेट में छूरा खोपने वाले बहुत आ जाते हैं ©Bulbul varshney #andhere जिंदगी में न जाने क्यों अचानक से अंधेरा छा गया है।
Poet Maddy
उनकी मोहब्बत का सुरूर, न जाने क्यों उतरता नहीं है........ अब तो शराब का भी हमको, नशा जाने क्यों चढ़ता नहीं है...... पहले ये दिल किया करता था, आवारगी की बातें अक्सर ही...... अब इसे बिगाड़ना भी चाहूं तो, न जाने क्यों बिगड़ता नहीं है....... ©Poet Maddy उनकी मोहब्बत का सुरूर, न जाने क्यों उतरता नहीं है........ #Intoxication#Alcohol#Earlier#Heart#Vagrancy#Spoil#Worse..........
Virendra Singh Diwakar
यह कोई कविता नहीं उसकी जिंदगी का किस्सा है जो दर्द बताने वाला हूं उसकी जिंदगी का हिस्सा है चंद खून की छींटे लज्जित कर देती है उसको कोई क्यों नहीं सोचता कितना दर्द होता होगा उसको नारी होना आसान नहीं समझाओ उन नसमझो को रूह कांप जाती जब चोट लगती हैं मर्दों को मंदिर और रसोई में भी जाने को रोक लगाते हैं कुछ लोग पास में बैठने से भी मुँह बिगाड़ लेते है न जाने क्यों लोग इसे बीमारी समझते हैं *उसे दर्द से ही तो घरों में चिराग जलते है* यह कोई कविता नहीं उसकी जिंदगी का किस्सा है जो दर्द बताने वाला हूं उसकी जिंदगी का हिस्सा है VS.Diwakar ©Virendra Singh Diwakar #Women #womenempowerment #Women_Special यह कोई कविता नहीं उसकी जिंदगी का किस्सा है जो दर्द बताने वाला हूं उसकी जिंदगी का हिस्सा है चंद खून
RAVI PRAKASH
न जाने क्यों मेरा हर दोस्त मुझको आजमाता है जिसे आगे बढ़ाता हूं वही पीछे हटाता है ©RAVI PRAKASH #raindrops न जाने क्यों मेरा हर दोस्त