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MohiTRocK F44
||स्वयं लेखन||
क्यों संसार की बातों से भीग गए तेरे नैना, कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना, हर पल है यहां संघर्ष, संघर्षों के साथ तुझे है रहना, फ़िर क्यों संसार को आंसू दिखाकर, ख़ुद को है तुझे कमज़ोर दिखाना। - स्वयं लेखन ©||स्वयं लेखन|| क्यों संसार की बातों से भीग गए तेरे नैना, कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना, हर पल है यहां संघर्ष, संघर्षों के साथ तुझे है रहना,
Niaz (Harf)
वो अब मुझे , मेरे ही हमसाये से डरा रहा है। आग।।।।।। आग, लगा कर बस्ती में, खुद ही चिल्ला रहा है। ख़बर सब को है यहां, मेरे क़त्ल की। ख़बर सब को है यहां, मेरे क़त्ल की। वो इस क़त्ल को, हादसा बता रहा है। वो इस क़त्ल को, हादसा बता रहा है। वो अब मुझे , मेरे ही हमसाये से डरा रहा है। फ़रियाद भी करें तो , किससे करे।। फ़रियाद भी करें तो , किससे करे।। वो खुद नया नया कानून बना रहा है । वो खुद नया नया कानून बना रहा है । वो अब मुझे , मेरे ही हमसाये से डरा रहा है। ©Niaz (Harf) वो अब मुझे , मेरे ही हमसाये से डरा रहा है। आग।।।।।। आग, लगा कर बस्ती में, खुद ही चिल्ला रहा है। ख़बर सब को है यहां, मेरे क़त्ल की। ख़बर सब क
Devesh Dixit
युवा शक्ति (दोहे) युवा शक्ति अनमोल है, चलें उचित रफ़्तार। कर सुकर्म जो बढ़ रहे, हो उनका विस्तार।। मात पिता का फर्ज़ है, उनको दें संस्कार। गलत दिशा भटकें नहीं, दोष करें स्वीकार।। युवा शक्ति को है परख, हो कैसा व्यवहार। सही बात पर हों अटल, गलत बात पर वार।। भटक गए कुछ हैं अभी, देते हैं आघात। युवा शक्ति पर चोट है, मुश्किल हैं हालात।। युवा शक्ति अब मोहती, फैंक प्रेम के जाल। जो भी इसमें है फँसी, होती बाद हलाल।। संस्कारों को छोड़ कर, नित्य करें ये काम। मात पिता को कर दुखी, खूब डुबाते नाम।। ........................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #युवा_शक्ति #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi युवा शक्ति (दोहे) युवा शक्ति अनमोल है, चलें उचित रफ़्तार। कर सुकर्म जो बढ़ रहे, हो उनका
Devesh Dixit
उलझा है मन खुद में उलझा है मन खुद में मेरा, कैसे अपनी मैं बात कहूँ। हे शिव जी अब तो कृपा करो, तुमसे ही अब मैं आस करूँ। दुनिया में है ये विष कितना, बिन पिये मुरझा हम तो रहे। बाजू में छूरी हैं रखते, मुख से श्री राम पुकार रहे। अपराधों की है भीड़ लगी, ले खंजर अब वे भोंक रहे। चैनो अमन है कैसे कहें, वे तो विपदा में झोंक रहे। अब कैसे हो विश्वास यहांँ, संशय में जीवन डोल रहा। जो टूट गये विश्वास यहाँ, रिश्तों में है जंग बोल रहा। मानवता को है चोट लगी, शैतानी जज़्बे जाग उठे। संस्कारों की भी बली चढ़ी, अब देख तमाशा भाग उठे। उलझा है मन खुद में मेरा, कैसे अपनी मैं बात कहूँ। हे शिव जी अब तो कृपा करो, तुमसे ही अब मैं आस करूँ। ....................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #उलझा_है_मन_खुद_में #nojotohindi #nojotohindipoetry उलझा है मन खुद में उलझा है मन खुद में मेरा, कैसे अपनी मैं बात कहूँ। हे शिव जी अब तो
Shivkumar
बैल पर सवार होकर , माँ शैलपुत्री आ गई l शिव शंकर की प्यारी भवानी , दिल पर देखो वो छा गई ll घी का सुंदर दीप जलाएँ , नारियल का भोग हम सब लगाएँ l श्रद्धा भाव से शीश झुकाकर, माँ के सुंदर भजन को चलो गाएँ ll मनोकामना को पूरी करती , ख़ुशियों से झोली को है भरती l आशाएँ ये पूर्ण करती , ये रिद्धि- सिद्धी कि परवान है करती l भाग्य सबका ये सँवारती , भक्ति की राह पे हमें चलाती l ठिकाना हमको दर पर देती, विनती न किसी की वो ठुकराती ll जय-जय माँ शैलपुत्री , तू नारायणी तू कल्याणी l नवरात्रि का शुभारंभ करती , तू महारानी इस जग की है ll ©Shivkumar #navratri #नवरात्रि #navratri2024 #navratri2025 बैल पर सवार होकर , माँ #शैलपुत्री आ गई l
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :- रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह । भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।। कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता मंदिर मस्जिद देख , दुवाएं में है झुकता ।। दीन-हीन को कष्ट , दिलाने आगे बढ़ना । चाहे फिर भी आज , स्वयं को सुख में रखना ।। ०५/०४/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह । भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।। कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता मंदिर मस्जि
Sushil Kumar
फूलों को फूल पसंद है , दिलों को दिल पसंद है , शायर को शायरी पसंद है , किसी की पसंद से हमें क्या , हमको तो बस आपकी गर्ल फ्रेंड पसंद हैं . ©Sushil Kumar #Tulips फूलों को फूल पसंद है , दिलों को दिल पसंद है ,
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल जुर्म की जब हो हुकूमत तो वकालत कैसी पूछते लोग हैं फिर हमसे शिक़ायत कैसी दुनिया वाले जो करें प्रेम तो अच्छा लेकिन जब करें हम तो कहे लोग मुहब्बत कैसी दिल बदलते हैं यहां लोग लिबासों की तरह हमने बदला है अगर दिल तो क़यामत कैसी लोग यूं ही तो नहीं मरते हैं हम पर यारों ये ख़बर सारे ज़माने को है उल्फ़त कैसी झूठ से बच तो नहीं सकता कभी तू भी प्रखर बोलता सच हैं अगर तू तो सियासत कैसी ०१/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल जुर्म की जब हो हुकूमत तो वकालत कैसी पूछते लोग हैं फिर हमसे शिक़ायत कैसी