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Vinod Mishra
Gopal Pandit
तू के सोचे पंडित ने घेर लेगा पंडित ने एक बेर मंत्र भी मार दिया ना तेरा बेरा भी ना पाटने का तू मरे पाछे फेर किस ते बैर लेगा ©Gopal Pandit तू के सोचे पंडित ने घेर लेगा पंडित ने एक बेर मंत्र भी मार दिया ना तेरा बेरा भी ना पाटने का तू मरे पाछे फेर किस ते बैर लेगा #गोपाल_पंडित #
R.S. Meena
नाराज़ आसमाँ से धरती ना जाने नाराज सी क्यों है। टहनी से गिरते पत्तों की कर्कश आवाज सी क्यों है।। आसमाँ में सैर करते बादल, भरे हुए है अश्रुओं से, भीगी है पलकें घन की, छायी घटा घनघोर है। गुजरना तो है उसे, उस शहर की ऊंची मीनारों से, रात भर तकते-तकते राहों को, होने वाली भोर है। दिन गुजरता नहीं चैन से, शाम में गाज सी क्यों है। आसमाँ से धरती........... धरती ने भी चाहा, कई बार छूना आसमाँ को, ओरों के सहारे पाटने लगे है अपनी दूरियाँ। नीरद ने भी बनाई इंद्रधनुषी सीढ़ियाँ मिलाने को, धूप ने खिलकर चुभो दी है ख्वाहिशों पर सुइयाँ। सब है अपनी जगह पर, धीमी धरा की चाल सी क्यों है। आसमाँ से धरती........... चांद ने आसमाँ को दी है आज भी थोडी सी दिलासा, ख्वाब तो पूरे कभी ना हो सके है, आसमाँ वालो के। धरती की चाहत में, बढ़ ना जाएं थोड़ी सी निराशा, सूर्य भी चमक रहा है, चमकाने नसीब जहाँ वालों के। वक्त है सबसे बड़ा मरहम, तो इसमें छूपी नाद सी क्यों है। आसमाँ से धरती ना जाने नाराज सी क्यों है। टहनी से गिरते पत्तों की कर्कश आवाज सी क्यों है।। #rsmalwar नाराज़ आसमाँ से धरती ना जाने नाराज सी क्यों है। टहनी से गिरते पत्तों की कर्कश आवाज सी क्यों है।
Divyanshu Pathak
हम जीवन में लाखों कार्य करते हैं। यह भी मानते हैं कि अपनी मर्जी से कर रहे हैं। क्या हम “मर्जी” को पैदा कर सकते हैं कभी नहीं। मर्जी तो मन में अपने आप पैदा होती है। जिस मर्जी को मन स्वीकार कर लेता है, वह मेरी मर्जी हो जाती है। मैं उस मर्जी को पूरा करने का माध्यम बन जाता हूं। मेरा जीवन तो मर्जी पैदा करने वाला चलाता है। कृष्ण कितने सहज भाव से कह गए-कर्ता भाव मत रखो। निमित्त बन जाओ। सब कुछ मुझे अर्पण कर दो। गहराई से देखेंगे तो पता चल जाएगा कि हम कर्ता बन ही नहीं सकते। चाहें तो स्वीकार कर लें अथवा नकार दें। बीच के क्षेत्र को मध्य कहते हैं। जहां दूरी दिखाई पडे, तो उसे पाटने के लिए माध्यम की आवश्यकता पडती है। वह साधन भी हो सकता है, व्यक्ति भी, अथव
Kavi Narendra Gurjar
हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत नेहरू युवा केंद्र द्वारा "काव्य-पाठ प्रतियोगिता" आयोजन --------------------- "रात का दर्द है दिन ये जाने को है मेरी
SamadYusufzai
हम रोज़े क्यूँ रखते हैं? हम रोज़े क्यूँ रखते हैं ??? 7 साल के मासूम साहिल ने ये सवाल अपने अब्बा से पुछा। सामने बेठे डॉ.असलम साहब (जो की एक प