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Rabindra Prasad Sinha
जिस दिन मिले थे हम दोनों उसी दिन आया था मेरे जीवन में बसंत ले कर तुम्हारा चुम्बन गौरवान्वित हुआ था कि खिला सकता हूँ मैं भी गुलाब तुम्हारे आलिंगन में मैं हो गया था आसमान सा विस्तारित हर विपदा से सुरक्षित, सार्मथ्यवान और साहसी मैं जीना चाहता हूँ तुम्हारे प्रेम में सागर में डूबते सूरज की तरह लालीमामय, अटूट, पूरा का पूरा ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
हाय ये मजबूरियाँ हाय ये लाचारियाँ उनसे है वफा की उम्मीद कैसी ये नादानियाँ किसम किसम के फूल हैं यादों की फूलवारियाँ जख्म महकाने लगी सावन की फूहारियाँ वर्फ सी ठंडी रातें हैं तन्हा है तन्हाईयाँ ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
कण कण में होता है ईश्वर पत्थर में भी पत्थर के होते हैं ईश्वर मंदिरों में, पेड़ों के नीचे हम पूजते हैं ईश्वर को चढाते हैं चढावा माँगते है इच्छापूर्ति का वर इस प्रकार भी चलता रहता है पत्थरों का कारोबार ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
एक सफर है जिंदगी मंजिल नहीं है जिंदगी एक कबूतर दिल में है बाज भी है जिंदगी सिर्फ अमावस ही नहीं पूर्णिमा है जिंदगी बाद बिछडने के तेरे उमर कैद है जिंंदगी जाने कितने रंग में चल रही है जिंदगी ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
प्रेमिका के जुड़े में फूल सजाने से पहले सोचना रंग और खुशबू की मृत्यु के बारे में सोचना उस तितली के बारे में जिसके प्राण अटके हैं फूल में जिसे यम भी नहीं निकाल सकता फूल के बिना ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
चाहो गर आना अनावृत आना चाँदनी की तरह नदी की तरह पहाड़ की तरह और अगर पूछना पड़े मेरा पता तो मत आना क़ोई अपने धर का पता पूछता है क्या ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
उस समय जब सभी युक्तियाँ हो गयीं थी नाकाम शब्द हो गये थे प्रभावहीन समझी जा सकती थी सिर्फ हृदय की भाषा मैंने प्रेम को पुकारा मैंने तुम्हें पुकारा ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
उस समय जब सभी युक्तियाँ हो गयी थी नाकाम शब्द हो गये थे निरर्थक मैंने प्रेम को पुकारा मैंने तुम्हें पुकारा ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम