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Author Harsh Ranjan
1 हथौड़े से सीना खुजलाते हुए, द्वार पर बैठे-बैठे बतियाते हुए दशरथ मांझी ने सुना कि अब 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में अनाज मिलेगा, वो समझे, जिंदा होने का ब्याज नहीं लगेगा। वो उठे झटके से, गमछा ओढा छेनी खोजी, लिया हथौड़ा, -पेट की परवाह नहीं रही अब चलो कुछ और पर्वत तोड़े जाएं! खैनी-पान लगाते, आँसू-कामायनी के छंद उड़ाते प्रसाद ने सोचा कि थोड़ा वक्त मिला है साहित्य को एक नया आयाम दिया जाए। बड़े लोग तो बड़े लोग हैं, छोटे लोगों में भी उबाल है। पेट से बरी होकर कोई शोध में लगेगा, कोई चाँद तक की सीढ़ी चढ़ेगा। कोई कला के लिए अलबला रहा है कोई दूसरों को मोटिवेट करने चिल्ला रहा है। Cont टैक्सपेयर्स 1
Author Harsh Ranjan
2 आज भारत की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा, सबसे बड़ी चिंता से मुक्त है। एक पैसे का दंगा करता न कोई अभियुक्त है। लेकिन क्या सच? मैं उस सड़कछाप शायर से, मैं उस धोखेबाज नेता से, मैं उस योद्धा कायर से, ये पूछता हूँ, पापी पेट का सवाल है, जिनका जुमला था, जो दाल में डूबा था, रोटी से कुचला था, जिसकी महत्वाकांक्षा को, जिसके सम्मान को जिसकी जरूरतों को, जिसके अरमान को पेट रोक रहा था, चूल्हा जिनकी भूख सेंक रहा था वो क्या कल सुबह ब्रह्ममूहरत में उठेंगे? सूर्य को अर्घ्य देकर सड़कों पर निकलेंगे? वो अपनी काबिलियत और वजन के हिसाब से, वो अपनी कद-काठी के नाप के हथौड़े और कलम उठाएंगे? वो इरादतन गैर-इरादतन हिमालय जाएंगे? Cont टैक्सपेयर्स 2
Author Harsh Ranjan
3 वो न किसी फायदे के लिए, न किसी नुकसान के डर से, हिमालय पर लाखों-करोड़ों चोट करके इस जिद से उसे गिराएंगे कि उन्हें बस हिन्द महासागर को भर देना है उन पत्थरों से, उस धूल से, जो उत्तर आ गयी थी भूल से। हिन्द महासागर को पाटकर क्या वो नया हिन्द प्रदेश बनाएंगे, जिसकी मिट्टी पर हम फसल न उपजाएँ पर कुछ स्मारक बनवाएंगे, उनके लिए जिन्होंने युग-युगांतर से इस भारत-भूमि को सींचा था, अपने खून से मिट्टी की उर्वरता को सींचने का आदर्श जिन्होंने खींचा था। End टैक्सपेयर्स 3
Author Harsh Ranjan
1 हथौड़े से सीना खुजलाते हुए, द्वार पर बैठे-बैठे बतियाते हुए दशरथ मांझी ने सुना कि अब 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में अनाज मिलेगा, वो समझे, जिंदा होने का ब्याज नहीं लगेगा। वो उठे झटके से, गमछा ओढा छेनी खोजी, लिया हथौड़ा, -पेट की परवाह नहीं रही अब चलो कुछ और पर्वत तोड़े जाएं! खैनी-पान लगाते, आँसू-कामायनी के छंद उड़ाते प्रसाद ने सोचा कि थोड़ा वक्त मिला है साहित्य को एक नया आयाम दिया जाए। बड़े लोग तो बड़े लोग हैं, छोटे लोगों में भी उबाल है। पेट से बरी होकर कोई शोध में लगेगा, कोई चाँद तक की सीढ़ी चढ़ेगा। कोई कला के लिए अलबला रहा है कोई दूसरों को मोटिवेट करने चिल्ला रहा है। Cont टैक्सपेयर्स 1
Author Harsh Ranjan
3 वो न किसी फायदे के लिए, न किसी नुकसान के डर से, हिमालय पर लाखों-करोड़ों चोट करके इस जिद से उसे गिराएंगे कि उन्हें बस हिन्द महासागर को भर देना है उन पत्थरों से, उस धूल से, जो उत्तर आ गयी थी भूल से। हिन्द महासागर को पाटकर क्या वो नया हिन्द प्रदेश बनाएंगे, जिसकी मिट्टी पर हम फसल न उपजाएँ पर कुछ स्मारक बनवाएंगे, उनके लिए जिन्होंने युग-युगांतर से इस भारत-भूमि को सींचा था, अपने खून से मिट्टी की उर्वरता को सींचने का आदर्श जिन्होंने खींचा था। End टैक्सपेयर्स 3
Author Harsh Ranjan
2 आज भारत की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा, सबसे बड़ी चिंता से मुक्त है। एक पैसे का दंगा करता न कोई अभियुक्त है। लेकिन क्या सच? मैं उस सड़कछाप शायर से, मैं उस धोखेबाज नेता से, मैं उस योद्धा कायर से, ये पूछता हूँ, पापी पेट का सवाल है, जिनका जुमला था, जो दाल में डूबा था, रोटी से कुचला था, जिसकी महत्वाकांक्षा को, जिसके सम्मान को जिसकी जरूरतों को, जिसके अरमान को पेट रोक रहा था, चूल्हा जिनकी भूख सेंक रहा था वो क्या कल सुबह ब्रह्ममूहरत में उठेंगे? सूर्य को अर्घ्य देकर सड़कों पर निकलेंगे? वो अपनी काबिलियत और वजन के हिसाब से, वो अपनी कद-काठी के नाप के हथौड़े और कलम उठाएंगे? वो इरादतन गैर-इरादतन हिमालय जाएंगे? Cont टैक्सपेयर्स 2
StudyBooster2.0
Mr.Rana
मैं रखने की सोचता हूं उसे जल्दी जाने की होती है सच बताऊं यारो यह सैलरी बेवफा होती है आज मेरे पास आई है कल तुम्हारे पास होती है तुम्हारे पास भी रहकर तुम्हारी कहां होती है सच बताऊं यारो यह सैलरी बेवफा होती है ©Mr.Rana बेवफ़ा सैलरी। #salary
Insprational Qoute
शिक्षको की एक पुकार, सैलरी पाना हमारा अधिकार ******************************************* आज तक नही समझ आया , क्यो हर बार शिक्षक ही हैं सताया , शिक्षा का क्षेत्र हो या अन्य क्षेत्र हर जगह अपना कर्तव्य सिद्दत से निभाया, इस भयानक महामारी में भी उसने न कदम पीछे हटाया, की दिन रात मेहनत उसने पर सुर्खियों में कहीं उसका नाम तक न आया, कईयों ने तो इसकी चपेट में अपने आप तक को गंवाया, पीछे छोड़ परिवार अकेला रह गया, सुन ये शिक्षक की असहनीय दास्तान, मेरा तो कलेजा आ गया उफान, पर कई लोगो के अभी भी बन्द पड़े हैं कान, क्यों ????नहीं उनकी मेहनताना का तुम करते हो भुगतान, कब सुनोगे ??जब वो हो जायेगा बेजान, कोई तो जाके उन्हें बताओ, क्या हालत हैं शिक्षक की कोई उन्हें भी सुनाओ, प्राचीन समय मे होता था जिस गुरु का गुनगान, वर्तमान में वो अपने हक के लिए आज हो रहा वो परेशान, कुछ नही मांगा हैं, अब बस लौटा दो उनका वेतनमान, कृपया सरकार अब करो न देरी, शिक्षकों की मेहनत देखो और लौटा दो अब उनकी सैलरी, अब हम सबकी एक ही पुकार हैं, हमारा मेहनताना, हमारी सैलरी हमारा अधिकार हैं, हमारा मेहनताना, हमारी सैलरी हमारा अधिकार हैं।।। ✍️निशा( प्राथमिक शिक्षिका MCD) #सैलरी #शिक्षा #गुरु #शिक्षकदिवस