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लेखक रुपेश कुमार सिंह
रो उठीं बाग की दीवारें हर दिशा ख़ौफ़ से डोली थी। ज़ालिम डायर ने जब खेली खूँख़ार खून की होली थी। गुमनाम शहीदों की गणना ख़ुद मौत न कर पाई होगी। निष्ठुरता भी चीखी होगी, निर्ममता चिल्लाई होगी। ©R. k. singh # जलियांवाला बाग हत्याकांड
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जलियांवाला बाग ©Metro Agency Online Holsel Shop जलियांवाला बाग हतया कांद
Rohit Lala
एक जंगल में एक चतुर लोमड़ी रहती थी। वह कभी हार नहीं मानती थी और हमेशा किसी न किसी चाल से अपना शिकार पा लेती थी. एक दिन उसे बहुत भूख लगी. उसे कहीं भी कुछ खाने को नहीं मिला. काफी देर भटकने के बाद उसे एक अंगूर का बगीचा दिखाई दिया. वह बगीचे में घुसी ताकि कुछ अंगूर खा सके. लेकिन बगीचा ऊंची दीवार से घिरा हुआ था. लोमड़ी बहुत कोशिश की पर दीवार कूद ना सकी. निराश होकर बैठने ही वाली थी कि उसे एक विचार आया. उसने सोचा कि वह बाग के रखवाले को बरगलाकर अंगूर प्राप्त कर लेगी. इसी सोच के साथ लोमड़ी बाग के बाहर जोर जोर से रोने लगी. रखवाले ने आवाज सुनी और बाहर निकल कर देखा. उसने लोमड़ी को रोते हुए देखा तो पूछा कि उसे क्या हुआ है. लोमड़ी ने कहा कि उसे बहुत प्यास लगी है और वह इसी बगीचे में लगे हुए मीठे अंगूरों का रस पीना चाहती है. रखवाला लोमड़ी की बातों में धोखा खा गया. वह यह नहीं समझ पाया कि लोमड़ी चालाकी से उसे बगीचे के अंदर जाने का मौका दिलाने के लिए यह सब कह रही है. वह दीवार का दरवाजा खोलकर लोमड़ी को अंदर ले गया. लोमड़ी अंगूर के बगीचे के अंदर गई और उसने खूब सारे अंगूर खाए. फिर वहां से निकलने का समय आया. जाने से पहले उसने रखवाले को धन्यवाद दिया और कहा कि ये अंगूर बहुत खट्टे हैं. यह सुनकर रखवाला चौंक गया. उसने सोचा कि शायद लोमड़ी की गलती से मीठे अंगूरों की जगह खट्टे अंगूर खा लिए. वह लोमड़ी की बातों में फिर से आ गया और यह देखने के लिए बगीचे के अंदर गया कि असल में अंगूर मीठे हैं या खट्टे. लोमड़ी इसी मौके की ताक में थी. जैसे ही रखवाला अंदर गया लोमड़ी ने दौड़ लगा दी और जंगल की तरफ भाग गई. रखवाला समझ गया कि लोमड़ी ने उसे धोखा दिया है. वह गुस्से से भरा हुआ था लेकिन कर भी कुछ नहीं सकता था. ©Rohit Lala एक जंगल में एक चतुर लोमड़ी रहती थी। वह कभी हार नहीं मानती थी और हमेशा किसी न किसी चाल से अपना शिकार पा लेती थी. एक दिन उसे बहुत भूख लगी. उसे
Ravendra
Sushma
अब कोई पूछे पसंद मेरी तो मूझे कुछ याद नहीं अब मेरी यादाश्त कुछ कम हो गई है अब सब कुछ धीरे धीरे भुलने लगी हूँ... ना फूल याग है ना फूलों का बाग ना तुम याद हो ना तुम्हारी कोई बात.... ©Sushma #Tulips अब कोई पूछे पसंद मेरी तो मूझे कुछ याद नहीं अब मेरी यादाश्त कुछ कम हो गई है अब सब कुछ धीरे धीरे भुलने लगी हूँ... ना फूल याग है ना फ
Poet Kuldeep Singh Ruhela
जिंदगी भी एक रेलगाड़ी है एक के बाद एक स्टेशन आते रहते है कभी दुख कभी सुख आता है बचपन आता है जवानी आती हैं फिर बुढापा हमको जीवन के रंग दिखाता है और अंत में कटते है सिर्फ दिन जो बिना परिवार बच्चो के अंत में रह जाता है दुख काटते काटते जीवन से मुक्त हो जाता है ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #traintrack जिंदगी भी एक रेलगाड़ी है एक के बाद एक स्टेशन आते रहते है कभी दुख कभी सुख आता है बचपन आता है जवानी आती हैं फिर बुढापा हमको जीव
Ravishankar Nishad
स्टेशन जैसी हो गयी है ज़िन्दगी, जहां लोग तो बहुत ह पर अपना कोई नहीं। ©Ravishankar Nishad स्टेशन जैसी हो गयी है ज़िन्दगी, जहां लोग तो बहुत ह पर अपना कोई नहीं।
Ravendra
Ravendra
VD GK STUDY