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Rukaya Nabi
لگی ٹھوکر ہوا یوں سمجھ آیا گری کیوں اےخیرخواہ معیوب ہوں انسان بن کے ہی رہوں ©Rukaya Nabi deep poetry in urdu
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read moreAdesh
White jai hind 🇮🇳 ©Adesh #Sad_Status deep poetry in urdu
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read moreJashvant
White कितनी बे-साख़्ता ख़ता हूँ मैं आप की रग़बत-ओ-रज़ा हूँ मैं मैं ने जब साज़ छेड़ना चाहा ख़ामुशी चीख़ उठी सदा हूँ मैं हश्र की सुब्ह तक तो जागूँगा रात का आख़िरी दिया हूँ मैं आप ने मुझ को ख़ूब पहचाना वाक़ई सख़्त बेवफ़ा हूँ मैं मैं ने समझा था मैं मोहब्बत हूँ मैं ने समझा था मुद्दआ' हूँ मैं काश मुझ को कोई बताए 'अदम' किस परी-वश की बद-दुआ हूँ मैं ©Jashvant Deep poetry in urdu
Deep poetry in urdu
read moreMohsin hanfi
White تو روبرو ہو تو جیسا لگتا خواب ہو تیری مسکان کو دیکھیں تو دل میں انقلاب ہو تیری یاد مجھے سکوں دیتی ہے جیسے ٹھنڈ میں کوئی لحاف ہو ©Mohsin hanfi #sad_quotes deep poetry in urdu
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read moreJashvant
White मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़ रस्ता मिला दुश्वार तो मैं और चला तेज़ हाथों को डुबो आए हो तुम किस के लहू में पहले तो कभी इतना न था रंग-ए-हिना तेज़ मुझ को ये नदामत है कि मैं सख़्त-गुलू था तुझ से ये शिकायत है कि ख़ंजर न किया तेज़ चल मैं तुझे रफ़्तार का अंदाज़ सिखा दूँ हम-राह मिरे सुस्त-क़दम मुझ से जुदा तेज़ अफ़्सुर्दगी-ए-गुल पे भरीं किस ने ये आहें चलती है सर-ए-सहन-ए-चमन आज हवा तेज़ अब मुझ को नज़र फेर के इक जाम दे साक़ी फिर कौन सँभालेगा अगर नश्शा हुआ तेज़ इंसान के हर ग़म पे 'सबा' चोट लगी है शीशे के चटख़ने की भी थी कितनी सदा तेज़ ©Jashvant deep poetry in urdu#Tez
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read moreRitu Nisha
White मेरा तुझे चाहना काफ़ी था, तेरा मेरा हो जाने की ज़रूरत न थी। मेरा तुझे बुलाना काफ़ी था, तेरे आने की ज़रूरत न थी। तू जिसके साथ था काफ़ी था, तेरा मेरा हो जाने की ज़रूरत न थी। जितना चला तालुक़ काफ़ी था, अब और निभाने की ज़रूरत न थी। जो कहा जो सुना सब काफ़ी था, बातों में बात उलझाने की ज़रूरत न थी। काफ़ी था वो प्यार वो वक़्त काफ़ी था, सदा के लिए पाने की ज़रूरत न थी। तेरा एक दफ़ा कह देना काफ़ी था, आगे कुछ समझाने की ज़रूरत न थी। जो दिया बस वही सब काफ़ी था, कोई वादा क़सम उठाने की ज़रूरत न थी। नेमत निशा के सब्र ओ शुक़्र काफ़ी था, किसीके आगे हाथ फैलाने की ज़रूरत न थी। ©Ritu Nisha #love_shayari deep poetry in urdu
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read moreJashvant
Unsplash मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला साक़ी मिरे मिज़ाज का मौसम नहीं मिला मुझ में बसी हुई थी किसी और की महक दिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिला बस अपने सामने ज़रा आँखें झुकी रहीं वर्ना मिरी अना में कहीं ख़म नहीं मिला उस से तरह तरह की शिकायत रही मगर मेरी तरफ़ से रंज उसे कम नहीं मिला एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए ये क्या हुआ कि वक़्फ़ा-ए-मातम नहीं मिला ©Jashvant #leafbook deep poetry in urdu
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read moreSudhar singh
a-person-standing-on-a-beach-at-sunset hiiiiiiiiiiiiiii ©Mr Arnav #SunSet deep poetry in urdu
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