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Shankar
फूलों की आँच पर आंसू उबाल कर तो देखो बनेंगे रंग किसी पर डाल कर तो देखो। आपके हांथो से भी आएगी गुलाब की ख़ुशबू, किसी के पांव का काँटा निकाल कर तो देखो।। ©Shankar किसी के पांव का काँटा #Butterfly
Dr. Sonam Rajput
कोशिश कर रहे थे, जहा को रोशन करने की, खुद ही बदनाम हो गए, आज फिर एक बार अपने ही, गुलिस्ता मे हम, कांटे के सामान हो गए..... #काँटा
Rashmi singh raghuvanshi "रश्मिमते"
कांटा कहता है गुलाब से- मुझे तुझसे तकलीफ नही , तुझे मुझसे तकलीफ नही ; फिर तकलीफ़ क्यो इंसानो को है। मेरा भी मन कोमल सा है है,अगर काटा है तो क्या हुआ । तुझे टुटने से बचाता हूँ। तेरा अधिकार छिन्न के नही ,तेरे साथ अपना अधिकार पाना चाहता हूँ। अपने प्राण निछावर कर - तुझे सजने देता हूँ ,;फिर क्यो नही मेरे त्याग का महत्व ,इंसानो को समझ मे आता है। #आहत काँटा
Rukhsar Khanam
मैं काँटा हुँ मुझे मुरझाने का खौफ नही, मगर किसी अपने को ना चुभ जाऊं, इसका डर जरुर रहता हैं, ✍️मेरे अल्फाज़✍️ ©Rukhasar Khanam #मैं काँटा हुँ मुझे मुरझाने का खौफ नहीं
शान-ए-शब
"कांटा" हूँ मैं, जिसे चुभ जाता हूं, उसी का हो जाता हूँ । फूल नही हूँ, जिसे हर "भवरा" चूमता फिरे ।। काँटा हूँ मैं
राजेन्द्र प्र०पासवान
काँटे वाले फूलों से लोग नज़रें चुराने लगे हैं । जबसे इन्सान के खून में दोष आने लगे हैं । #gif काँटा लगा #राज़
rajeshkumar
##फूल और काँटा## ############# काँटों से क्या गिला, चुभना तो उनकी फितरत है, मुझे तो गिला उन फूलों से है, जो कोमल होकर भी मुझे जख्मी कर जाते हैं। ए फूल मुझे गलत मत समझना, क्योंकि सारा दोष तो मेरे नज़रों का है, जहाँ देखते हैं खूबसूरती, वही फिसल जाते हैं।। काँटों की चुभन सहकर भी उन फूलों का मकरंद चूसा करता था, मैं भौरा बनकर। आज आंसू बहा रहा हूं , क्योंकि कोई मसल रहा है, उन फूलों को माली बनकर।। फूलों को मसलते हुए देखकर कलियाँ अब रो रहीं थी। अब मुझे खिलने मत देना, वह पत्तियों से कह रही थी।। अगर मैंने केवल तेरी परवाह की तो ये डंठल भी सुख जायेगा। मुझे तो चिंता उस माली की है कि वह बिन मारे हीं वह मर जायेगा।। पत्ती तुम कुछ भी कर लो, मैं(डंठल)अपना प्रकृति छोड़ नहीं पाउँगा। अगर मैं सुख भी गया तो, किसी न किसी का भला कर जाऊंगा।। Tr-Rajesh kumar फूल और काँटा
rajeshkumar
##फूल और काँटा## ############# काँटों से क्या गिला, चुभना तो उनकी फितरत है, मुझे तो गिला उन फूलों से है, जो कोमल होकर भी मुझे जख्मी कर जाते हैं। ए फूल मुझे गलत मत समझना, क्योंकि सारा दोष तो मेरे नज़रों का है, जहाँ देखते हैं खूबसूरती, वही फिसल जाते हैं।। काँटों की चुभन सहकर भी उन फूलों का मकरंद चूसा करता था, मैं भौरा बनकर। आज आंसू बहा रहा हूं , क्योंकि कोई मसल रहा है, उन फूलों को माली बनकर।। फूलों को मसलते हुए देखकर कलियाँ अब रो रहीं थी। अब मुझे खिलने मत देना, वह पत्तियों से कह रही थी।। अगर मैंने केवल तेरी परवाह की तो ये डंठल भी सुख जायेगी। मुझे तो चिंता उस माली की है कि वह बिन मारे हीं वह मर जायेगा।। पत्ती तुम कुछ भी कर लो, मैं(डंठल)अपना प्रकृति छोड़ नहीं पाउँगी। अगर मैं सुख भी गया तो, किसी न किसी का भला कर जाउँगी।। Tr-Rajesh kumar फूल और काँटा