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MohiTRocK F44
Dil_ se_06
White लाखों तारे देखे इस सुनहरे आसमान में, लेकिन प्यारा तो वो चंद्रमा ही लगता हैं। ©Dil_ se_06 #good_night #तारा #Chand #सितारा
SarkaR
White आसमान से इतना दिल ना लगाना दोस्त! अभी अभी एक तारा टूटते देखा है हमने! ©SarkaR #तारा
Devesh Dixit
टूटा हुआ तारा (दोहे) टूट रहा तारा कहे, कैसी मुझसे आस। मैं गिरा खुद ऊपर से, कौन रहा है पास।। गिरता मुझको देख कर, सबको रहती चाह। माँगे सभी मुराद भी, दिल से कहते वाह।। पीड़ा को समझें नहीं, हैं बालक नादान। घर भी अब ये छूटता, रहा नहीं आसान।। धरती पर जब भी गिरा, समा गया हूँ जान। कैसी मुझसे कामना, कहाँ रहा सम्मान।। अद्भुत है ये जिंदगी, अकसर करे कमाल। मैं भी था समझा नहीं, जिसका मुझे मलाल।। ............................................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #टूटा_हुआ_तारा #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi टूटा हुआ तारा (दोहे) टूट रहा तारा कहे, कैसी मुझसे आस। मैं गिरा खुद ऊपर से, कौन रहा ह
Internet Jockey
जो तुम्हारे दिल का चाँद है न वो अपनी माँ की आँख का तारा भी है ©Internet Jockey जो तुम्हारे दिल का चाँद है न वो अपनी माँ की आँख का तारा भी है moon quotes In Hindi
Internet Jockey
तारा टूट भी जाए तो नीचे नहीं गिरता, गिरती हैं नदियाँ सागर में, पर सागर कभी दरिया में नहीं गिरता ©Internet Jockey तारा टूट भी जाए तो नीचे नहीं गिरता, गिरती हैं नदियाँ सागर में, पर सागर कभी दरिया में नहीं गिरता
Dk Patil
Devesh Dixit
चूमकर अपने वतन की मिट्टी चूमकर अपने वतन की मिट्टी, हिंद की रक्षा को वह चला। धूल चटा कर शत्रु को उसने, टाली वतन के सर से बला। हमको सुरक्षित रखा है उसने, स्वयं ही दुश्मन से जा लड़ा। उन्हें गोलियों से छलनी करके, नाम कर लिया अपना बड़ा। सभी की आँखों का तारा है, देश का अपना वीर जवान। धरती माता भी इसको चाहे, ऐसा ही देखो ये है धनवान। नई - नई वे तरकीब लगाता, रिपु को दे मुंँह तोड़ जवाब। तिरंगे को देख जोश जगाता, पा जाता फिर वह खिताब। चूमकर अपने वतन की मिट्टी, हिंद की रक्षा को वह चला। हो गया छलनी गोलियों से पर, मुश्किल से नहीं वह टला। लड़ते लड़ते बलिदान दे दिया, ऐसा था वो कर्मठ बलवान। तिरंगा भी उससे लिपटा आया, पाया उसने ऐसा सम्मान। ........................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #चूमकर_अपने_वतन_की_मिट्टी #nojotohindi #nojotohindipoetry चूमकर अपने वतन की मिट्टी चूमकर अपने वतन की मिट्टी, हिंद की रक्षा को वह चला। धू
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल वो सभी तो धनी से मिलते हैं । वो कहाँ आदमी से मिलते हैं ।।१ रात दिन की बेकसी से मिलते हैं । फिर नहीं वो किसी से मिलते हैं ।।२ यार सागर समझ ले तू उनको । आजकल वो सभी से मिलते हैं ।।३ क्या उन्हें हम समझ ले अब कान्हा । इस तरह जो बासुरी से मिलते है ।।४ जाने क्या हो गया सनम को अब । आजकल बेरुखी से मिलते हैं ।।५ वो दिखाकर गये हमें तारा । लौटकर हम तुम्ही से मिलते हैं ।।६ ख़्व़ाब आकर चले गये सारे । अब गले हम ख़ुदी से मिलते हैं ।।७ अब कहीं और जी नहीं लगता । चल उसी जलपरी से मिलते हैं ।।८ यूँ तो घड़ियां गुजार दूँ तुम बिन । डर है की ज़िन्दगी से मिलते हैं ।।९ बीवियाँ अब नहीं सँवरती घर । चल खिली फिर कली से मिलते हैं ।।१० प्यार में इस तरह प्रखर पागल । छोड़ जग गृहिणी से मिलते हैं ।।११ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल वो सभी तो धनी से मिलते हैं । वो कहाँ आदमी से मिलते हैं ।।१