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कवि आर डी उपाध्याय
मीर सुनाने निकला हु पीर सुनाने निकला हु। आंखों से बहता हुआ नीर सुनाने निकला हु।। कवि आर डी
कवि आर डी उपाध्याय
मुझे सारा शहर नसेमन लग रहा । हर शहर मेरा जानेमन लग रहा।। ना जाने कौन सा जादू कर दिया। दिल के अंदर वो हि अनमन लग रहा।। कवि आर डी
कवि आर डी उपाध्याय
नीद नही आ रही बेचैनी बढ़ गयी। इस दिल की तड़प तुम्हे बताऊ कैसे। दिल में एक अजब सी तड़पन हो रही है। हाले दिल मगर तुम्हे सुनाऊ कैसे।। कवि आर डी
कवि आर डी उपाध्याय
तिरे साये से भी डर है मैं दुर ही सहि अभी तुझसे। बहुत तकलीफ होती है तिरे छाये में रहने से।। अगर मौसम सुहाना आएगा तो लौट आऊंगा। तिरे आंखों कि काजल हूँ अश्क सँग बह भि जाऊंगा।। कवि आर डी
कवि आर डी उपाध्याय
इश्क का एहसास गजब होता है। यार का साथ भी अजब होता है।। कवि आर डी
कवि आर डी उपाध्याय
गरीबी पे जरा अपनी दुकाने यू चलाओ ना। चुनाओ में हमे हिन्दू मुसलमाँ फिर बनाओ ना। भरोसा है अगर खुद पर भरोसा हम पे भी कर लो। भरोसा नाम की साहिल किनारों पर डुबाओ ना।। कवि आर डी
कवि आर डी उपाध्याय
कितना दर्द छुपा है सीने में दिखाऊ तो कैसे? हा मैं मर मर कर जी रहा हूँ बताऊ तो कैसे? जमाने वाले लाकर छोड़ देंगे बीच रास्ते में। यही बात मैं अपने आप को समझाऊ तो कैसे? कवि आर डी