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Parasram Arora
कोई पुरखो को पानी पहुंचा रहा हैँ कोइ गंगाओ मे पाप धो रहा हैँ कोई पथर की प्रतिमाओं के सामने बिना भाव सर झुकाये बैठा हैँ धर्म के नाम पर हज़ार तरह की मूढ़ताएं प्रचलन मे हैँ धर्म से संबंध तो तब होता हैँ जब आदमी जागरण की गुणवत्ता हासिल कर लेता हैँ जहाँ जागरण होगा वहा अशांति कभी हो ही नहीं सकती क्यों कि जाग्रत आदमी विवेकी होता हैँ इर्षा क्रोध की वृतियो से ऊपर उठ चुका होता हैँ औदेखा जाय तो धर्म औऱ शांति पर्यायवाची शब्द हैँ धर्म औऱ शांति...... पर्यायवाची शब्द हैँ
Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
वो SabnamKhatoon
वह दिन वह नजारा भी आएगा समंदर अगर है ,तो किनारा भी आएगा जिंदगी की परेशानियों से हार न जाना दोस्त तुझसे मिले एक दिन वो सितारा भी आएगा।। ©वो SabnamKhatoon जिंदगी का किनारा
Anita Najrubhai
मे वो तितली नहीं हु जो आसमान में उडजाउ सपने देखने का हक है पर सपने पुरे करने का हक नहीं है किनारा ढूंड रही हु पर मंजिल का किनारा मिलता नहीं है जींदगी एक पहेली बन गई है उस पहेली को सुलझाना है यहाँ कई रास्ते है पर मंजिल का किनारा मिलता नहीं है ©Anita Najrubhai मंजिल का किनारा
Lavekush Kumar yadav
किनारा ना मिले तो कोई बात नहीं दूसरों को डुबाकर मुझे तैरना नहीं आता जो लम्हा साथ है उसे जी भर के जी लेंगे कमबख़्त ये जिन्दगी भरोसे के काबिल नहीं पसंद है मुझे उन लोगो से मुझे हारना जो लोग मेरे हारने से पहली बार जीते हो बड़ी से बड़ी हस्ती मिट गई मुझे हराने में बेटा तू तों कोशिश भी मत करना तेरी उम्र गुजर जाएगी मुझे गिराने में हम तो दुश्मनों को बड़ी शानदार सजा देते हैं हाँथ नहीं उठाते बस नज़रो से गिराते है Lavkush Kumar yadav जीवन का किनारा
Divyanshi K K
देखा है तेरी आखों में उम्मीद का एक किनारा लिखना है हवाओं में एक खामोश सा अफसाना उम्मीद का किनारा
ANKITA KUMARI YADAV
ज़िंदगी के इस सफर में चलते चल मुसाफ़िर मंजिल का रास्ता साफ है इस दुनियां में मुसाफ़िर को रास्तेें से बटकाने वाले लोग तेरा इतंजार कर रहे हैं तुझे मंजिल से बटकाने में सफर का किनारा
Ajay Chaurasiya
एक किनारे बैठा मै, नदी के एक किनारे तू, तुझे पानी में मैं दिखता हुआ, मुझे पानी में दिखती हुई तू.... -अजय चौरसिया नदी का किनारा
Sunil Kumar Maurya Bekhud
हम खड़े छत पर हमारे सामने समंदर है मिल गई दिल को सुकू बेहद हसीन मंजर है खेल कर लहरें हवाओं से कभी थक जाती है कुछ घड़ी आराम करने मेरे दर पे आती हैं खलबली मचती है उनसे मिल के दिल के अंदर है इश्क है कुदरत से हमको हम यहां पर आ गए घोंसला अपना बनाया यूं किनारे भा गए दिल हुआ गमगीन जब आती कोई बवंडर है हलचलें बेहद है प्यारी सुरमई संगीत है दिल को लगता है गुनगुनाती जलपरी कोई गीत है दिल्लगी इससे है बेखुद यह भले ही बंजर है ©Sunil Kumar Maurya Bekhud # समंदर का किनारा