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Gurudeen Verma

White शीर्षक- हे वतन तेरे लिए
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हे वतन तेरे लिए, हे वतन तेरे लिए।
अर्पण है जीवन हमारा, यह किसके लिए।।
हे वतन तेरे लिए---------------------।।

नहीं हमारा स्वार्थ कुछ, नहीं कोई और ख्वाब है।
तू रहे आबाद हमेशा, यही हमारा ख्वाब है।।
वीरों ने दी कुर्बानी, लेकिन वह किसके लिए।
हे वतन तेरे लिए--------------------।।

तू ही मालिक है हमारा, तू ही रहबर हमारा।
तू ही पूजा है हमारी, तू ही मंदिर हमारा।।
माँगते हैं हम दुहायें, रब से किसके लिए।
हे वतन तेरे लिए----------------------।।

नहीं किसी से प्यार इतना, जितना चाहते हैं तुम्हें।
सबसे प्यारा तू है हमें, यकीन हो हम पर तुम्हें।।
रोशन ये चिराग किये हैं, हमने मगर किसके लिए।
हे वतन तेरे लिए---------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आजाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक- जलजला, जलजला, जलजला आयेगा
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(शेर)- दे रही है संकेत हवा भी अब, शायद तूफ़ान आयेगा।
       होगा हर तरफ तबाही का मंजर, ऐसा भूचाल आयेगा।।
      शायद ही जिन्दा रहे मोहब्बत, जमीं पर किसी इंसान में।
     नफरत- दुश्मनी,हिंसा का कलयुग, अब जमीं पर आयेगा।।
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तप रही है जैसे धरती,आज इतनी आग से।
आ रही है यही ,अब हर राग से।।
आने वाला वक़्त कैसा काल लायेगा।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2)
तप रही है जैसे धरती---------------------।।

बेशर्म और लापरवाह, जब घर का मुखिया होगा।
भूख- प्यास से तड़पता, हर कोई घर में होगा।।
ऐसा ही मंजर नजर जब, देश में आयेगा।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2)
तप रही है जैसे धरती---------------------।।

कर लेंगे बन्द, आँख- कान- मुँह लोग जब।
यकीन दुराचारियों पर, करने लगेंगे लोग जब।।
भ्रष्टाचारी- पापियों का जब, राज हो जायेगा।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2)
तप रही है जैसे धरती---------------------।।

सरेराह होंगे चिरहरण, मूकदर्शक शासक होगा।
थानों- अदालतों पर जब, हैवानों का कब्जा होगा।।
अन्याय- रावण राज पर, नीरो जब बंशी बजायेगा।।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2)
तप रही है जैसे धरती---------------------।।

पाने को शौहरत- दौलत, कलमकार बिकने लगेंगे।
गरीबी- बेरोजगारी पर जब, लिखने से डरने लगेंगे।।
असत्य का गुणगान जब,मीडिया भी गाने लगेगा।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।
तप रही है जैसे धरती------------------।।

जाति- धर्म- क्षेत्र के जब, बलवें होने लगेंगे।
नफरत- दुश्मनी के जब, बीज बोने लगेंगे।।
रक्तबीजों- नरपिशाचों से, कैसा कलयुग आयेगा।
जलजला, जलजला, जलजला आयेगा।।-- (2)
तप रही है जैसे धरती----------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक - चमन यह अपना, वतन यह अपना
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चमन यह अपना, वतन यह अपना।
आबाद रहे कल भी, घर यह अपना।।
अपनी ये खुशियां, अपनी ये मौजें।
रोशन रहे कल भी, जीवन यह अपना।।
चमन यह अपना----------------------।।

तुमको क्या मिलेगा, ऐसे लड़ने से।
दुश्मनी ही बढ़ेगी, ऐसे लड़ने से।।
छोड़ो हठ यह तुम, भूलों दुश्मनी तुम।
जिन्दा रहे कल भी, याराना यह अपना।।
चमन यह अपना--------------------।।

गंगा- यमुना की यह, पवित्र जलधारा।
प्रहरी वतन का, यह हिमालय हमारा।।
सीखें हम सब भी, इनसे सरफरोशी।
सलामत रहे कल भी, वजूद यह अपना।।
चमन यह अपना--------------------।।

नेक मंजिल हो, अपने मकसद की।
सही सोहब्बत हो, अपने जीवन की।।
अमन यह अपना, ख्वाब हर अपना।
मुकम्मल रहे कल भी, गौरव यह अपना।।
चमन यह अपना--------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक - तारीफ तेरी और, क्या हम करें
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तारीफ तेरी और, क्या हम करें।
कैसे तुम्हारा दिल, खुश हम करें।।
तुम्हारे सिवा हमको, नहीं है पसंद और।
तारीफ तेरी और------------------।।

यूँ तो हजारों फूल, गुलशन में हैं।
रोशन चिराग यहाँ, और भी है।।
मगर इतने हसीन ये, लगते नहीं।
होता नहीं है दिल, खुश और से।।
तारीफ तेरी और-----------------।।

सूरत तुम्हारी यहाँ, माहताब सी।
रोशन हो तुम, यहाँ आफ़ताब सी।।
महकते हैं फूल, जब तुम हंसती हो।
नूर जहां में तेरे जैसा और नहीं।।
तारीफ तेरी और-------------------।।

सरुर जो, तुम्हारी नज़रों में है।
नहीं ऐसी खूबी, औरों में है।।
मेरे दिल का ख्वाब, तुम ही हो।
तुम्हारे सिवा मोहब्बत, और से नहीं।।
तारीफ तेरी और-------------------।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक - इसकी वजह हो तुम, खता मेरी नहीं
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(शेर)- यह एक ऐसी कहानी है, जो खत्म कभी नहीं हो सकती।
           यह पहेली है कुछ ऐसी, जो बुझ कभी नहीं सकती।।
         तुम भूल सकते हो वो पल, वो दिन अपनी मुलाकात के।
         मगर यह नजीर उस वक़्त की, कभी मिट नहीं सकती।।
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इसकी वजह हो तुम, खता मेरी नहीं।
यह कहानी ऐसी, यार बनती नहीं।।
अब इसका अंत, कोई नहीं। कोई नहीं।।
इसकी वजह हो तुम--------------------।।

इतने नाराज हमसे, तुम क्यों हुए।
अपने होकर भी दूर, तुम क्यों हुए।।
यकीन था हमें तो, तुम पर बहुत।
हमपे यकीन तुमको, था कुछ नहीं। था कुछ नहीं।।
इसकी वजह तुम हो-------------------।।

तेरी बुराई जो, करते थे बहुत।
उनसे तुम प्यार, करते थे बहुत।।
बदनामी तुम्हारी, किसने की है।
हमने तो फजीहत, की थी नहीं। की थी नहीं।।
इसकी वजह हो तुम-------------------।।

हम तो दुश्मन बने, तुम्हारे लिए ही।
लहू हमने बहाया, तुम्हारे लिए ही।।
फिर भी हमको बदनाम, तुमने किया।
यह जख्म दिल पे, मिट सकता नहीं। मिट सकता नहीं।।
इसकी वजह हो तुम---------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक - सोचते हो ऐसा क्या तुम भी
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जैसा कि सोचते हैं हम।
सोचते हो ऐसा क्या तुम भी।।
चाहता है दिल तुम्हें जैसा।
चाहते हो हमें क्या तुम भी।।
जैसा कि सोचते हैं -----------------।।

तारीफ हम तुम्हारी, कितनी करते हैं।
और से प्यार इतना, नहीं करते हैं।।
देखते हैं खूबी, जैसी तुझमें।
देखते हो खूबी हममें, क्या तुम भी।।
जैसा कि सोचते हैं-------------------।।

करता है हमको दीवाना, हँसना यह तेरा।
कितना सुंदर दिलकश है, रूप यह तेरा।।
आते हैं जैसे ख्वाब, तुम्हारे हमको।।
देखते हो हमारे ख्वाब, क्या तुम भी।।
जैसा कि सोचते हैं----------------------।।

मानते हैं तुमको हम, बहारे- खुशी।
करीब पाकर दिल भी, होता है हसीं।।
लिखते हैं खत जैसे, तुमको हम।
लिखते हो हमको खत, क्या तुम भी
जैसा कि सोचते हैं-------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक- जब साथ छोड़ दें अपने, तब क्या करें वो आदमी
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(शेर)- मैं आज बदनाम हूँ वहाँ, जहाँ कल तक मुझको पूजा जाता रहा।
 कह सके किसी को कि सच क्या है, वहाँ नहीं कोई ऐसा अब रहा।।
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जब साथ छोड़ दें अपने, तब क्या करें वो आदमी।
जब हाथ छोड़ दें अपने, तब क्या करें वो आदमी।।
जब साथ छोड़ दें अपने----------------------------।।

ये जो सपनें हम अपने, संजोते हैं क्यों किसलिए।
यह जो घर हम अपना, बनाते हैं क्यों किसलिए।।
जब दिल तोड़ दें अपने, तब क्या करें वो आदमी।
जब साथ छोड़ दें अपने----------------------।।

उनको गरूर हैं इसलिए, कि हम छोटे हैं उनसे।
इसी वजह शायद वो, करते हैं रश्क यूं हमसे।।
जब मुँह मोड़ लें अपने, तब क्या करें वो आदमी।
जब साथ छोड़ दें अपने---------------------।।

करते हैं क्यों सितम, अपनों पर अपने यहाँ।
करते हैं क्यों बदनाम, अपनों को अपने यहाँ।।
जब बर्बाद करें अपने, तब क्या करें वो आदमी।
जब साथ छोड़ दें अपने--------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक- तुम ऐसे उम्मीद किसी से, कभी नहीं किया करो
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तुम ऐसे उम्मीद किसी से, कभी नहीं किया करो।
ऐसे एतबार तुम किसी पर, कभी नहीं किया करो।।
तुम ऐसे उम्मीद किसी से--------------------------।।

जिसको चाहते हो इतना, मानकर उसको तुम अपना।
यकीन है तुमको जिसपे, क्या उसको है प्यार इतना।।
लेकिन दिल को ऐसे कुर्बान, कभी नहीं किया करो।
तुम ऐसे उम्मीद किसी से----------------------।।

खूबसूरत ये चेहरें कभी, होते नहीं है इतने वफ़ा।
इनका नहीं है कोई ईमान, ये नहीं हैं दिल से सफ़ा।।
तुम ऐसे इजहार दिल का, कभी नहीं किया करो।
तुम ऐसे उम्मीद किसी से---------------------।।

सभी के सपनें मुकम्मल, कभी भी होते नहीं हैं।
मतलबी है लोग बहुत, सगे जो कभी होते नहीं है।।
तुम ऐसे दोस्ती सभी से, कभी नहीं किया करो।
तुम ऐसे उम्मीद किसी से---------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक- मतलब हम औरों से मतलब, ज्यादा नहीं रखते हैं
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मतलब हम औरों से मतलब, ज्यादा नहीं रखते हैं।
करें नहीं नाहक बातें, उम्मीद यही हम करते हैं।।
मतलब हम औरों से मतलब--------------------------।।

हमको मिले हैं ऐसे भी, जो रूप बदलकर यहाँ अपना।
नाम कमाते हैं अपना, करते हैं मुकम्मल वो सपना।।
हमको मतलब कुछ नहीं इससे, हम अपनी राह चलते हैं।
मतलब हम औरों से मतलब--------------------------।।

आबाद तुम खुद को कहो, बर्बाद लेकिन हम भी नहीं।
परिवार तुम्हारे साथ है, लेकिन अकेले हम भी नहीं।।
आज़ाद हैं हम भी यहाँ, अपनी मर्जी की हम करते हैं।
मतलब हम औरों से मतलब------------------------।।

जब उनको नहीं फुरसत तो, जरूरत नहीं हमें उनकी भी।
नाम है उनका यहाँ इतना तो, नहीं कम हमारी हस्ती भी।।
क्यों करें हम इनकी फिक्र, हम भी अपनी सोचा करते हैं।
मतलब हम औरों से मतलब--------------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार

Gurudeen Verma

White शीर्षक - यह अपना धर्म हम, कभी नहीं भूलें
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वसुधैव कुटुम्बकम की, यह परम्परा।
यह अपना धर्म हम, कभी नहीं भूलें।।
जीने दें सबको जैसे, हम जीते हैं।
इस भावना को हम, कभी नहीं भूलें।।
वसुधैव कुटुम्बकम की----------------------।।

सपनें हो साकार, सबके यहाँ पर।
पैदा हुए हैं, हम सभी यहाँ पर।।
आबाद खुशियाँ, यहाँ सबकी रहे।
सन्देश मानवता का, हम नहीं भूलें।।
वसुधैव कुटुम्बकम की--------------------।।

लक्ष्य हम सभी का, कुछ ऐसा हो।
नफरत, अहम, जिसमें कुछ नहीं हो।।
चलना पड़े चाहे, काँटों पर भी।
सच्चाई और ईमान, हम नहीं भूलें।।
वसुधैव कुटुम्बकम की---------------------।।

ऋषियों- वीरों की जननी, यह जमीं।
फूले और फले है, यहाँ मजहब सभी।।
सर्वभूतेषु आत्मा: की यह तालीम।
जिंदगी में हम, कभी नहीं भूलें।।
वसुधैव कुटुम्बकम की--------------------।।





शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #साहित्यकार
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